महिला सुरक्षा के लिये बनाई गई वो दूरभाष व्यवस्था जिससे महिलाओं को दूर कर दिया गया
वर्ष 2012 के दिसंबर महीने में निर्भया गैंगरेप जैसी वीभत्स घटना के कारण जनता के बीच पसरे अभूतपूर्व गुस्से को शांत करने के उद्देश्य से दिल्ली सरकार ने बहुत आनन-फानन में महिलाओं की सुरक्षा के लिये एक योजना बनाई थी। उस समय दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की तरफ़ से मात्र 15 दिन के भीतर उत्पीड़ित महिलाओं की सहायता के लिए एक हेल्पलाइन नंबर, 181, को जनता के बीच जारी कर दिया गया था।
ये हेल्पलाइन नंबर सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय से संचालित होता था। हिंसाग्रस्त महिलाओं की मदद करना और उनका पुलिस, कानूनी सलाहकारों और अस्पतालों से संपर्क कराना, इस हेल्पलाइन नंबर का मुख्य उदेश्य था।
सरकारें अक्सर जनता के दबाव और गुस्से के सामने जल्दी से फुर्ती में आ जाती हैं और प्रतिक्रिया देती हैं इसलिये निर्भया मामले के बाद जनता के बीच पसरे गुस्से के मद्देनज़र दिल्ली सरकार के द्वारा महिला सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये इस हेल्पलाइन नंबर को जारी किया जाना कोई अद्भुत घटना नहीं थी। नागरिकों के प्रतिरोध के चलते अस्तित्व में आई इस हेल्पलाइन नंबर की सुविधा को, दो साल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा संचालित केंद्र सरकार की नुमाइंदगी तले दिल्ली के साथ-साथ, पूरे देश में जारी कर दिया गया था।
महिला सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये इस देशव्यापी हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत होने के पहले विभिन्न राज्यों या शहरों में छिटपुट तौर पर मौजूद इस प्रकार के हेल्पलाइन नंबरों के बारे में केंद्र सरकार का कहना था की महिलाओं की सुरक्षा के लिये इधर-उधर जारी किये गये नंबरों का परिचालन बेहद समस्या पूर्ण है और इस पूरी व्यवस्था से अक्सर भ्रम का माहौल बना रहता है।
इस समस्या के निदान के लिये अप्रैल, 2015, में केंद्र सरकार ने 'यूनिवर्सलाइजेशन ऑफ वूमेन हेल्पलाइन' (WHL) के नाम से एक केंद्रीय महिला हेल्पलाइन स्कीम लॉन्च कर दी। निर्भया प्रकरण के बाद दिल्ली सरकार के द्वारा जारी किये गये महिला सहायता नंबर की ही तरह WHL स्कीम के तहत भी महिलाओं के लिए चौबीसों घंटे समर्पित एक नंबर, 181, को जारी किया गया था।
लेकिन अपनी लॉन्चिंग के एक दशक के भीतर ही WHL स्कीम धराशायी हो गई।
निर्भया केस ने सरकारों को महिला सुरक्षा पर विचार करने के लिए मजबूर किया था। हिंसा और दुर्व्यवहार से दो-चार होती महिलाओं की मदद के लिये एक के बाद एक योजनाएँ शुरू की गईं थी। तीन भागों की इस सीरीज़ में, द रिपोर्टर्स कलेक्टिव महिलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं का विश्लेषण और पड़ताल करेगा। इस सीरीज के पहले भाग में हमनें वन स्टॉप सेंटर (OSC) स्कीम को लागू किये जाने की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला था।
हमने कुछ एक्सक्लूसिव सरकारी दस्तावेज़ों को खँगालकर और दो राज्यों - दिल्ली और हरियाणा - का दौरा करके पाया कि प्रारंभिक रूप से एक दशक पहले शुरू की गई महिला सुरक्षा से संबंधित योजनाएँ एक दशक बाद भी महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान करने के अपने वादे को पूरा करने में असफल रही हैं। इस सीरीज के दूसरे भाग में हम महिला हेल्पलाइन नंबर, 181, की कार्यप्रणाली की पड़ताल करेंगे।
महिला हेल्पलाइन की इस स्कीम की अवधारणा के अनुसार सरकार को कुछ ऐसे केंद्रों की स्थापना करनी थी जिनमें प्रदान की जानी वाली सुविधाओं पर समुचित रूप से भरोसा जताते हुए उत्पीड़ित महिलाएं इन केंद्रों पर बेझिझक फ़ोन कर सकती थी। लेकिन वर्तमान में इस स्कीम के तहत स्थापित हेल्पलाइन केंद्रों का हालत ये हो गई है की ये केंद्र मात्र उत्पीड़ित महिलाओं के फ़ोन को राज्यों के द्वारा संचालित वन स्टॉप सेंटर (OSC केंद्र) या पुलिस तक आगे बढ़ाने का अड्डा बन कर रह गये हैं, हालाँकि सच्चाई ये है की परेशानी के दौर से गुजर रही अधिकाँश महिलाएं OSC केंद्र या पुलिस के पास जाने में संकोच करती हैं।
वर्तमान में WHL स्कीम सिर्फ़ उपरोक्त लिखित समस्या से नहीं गुजर रही है बल्कि सरकारी कागज़ातों की पड़ताल करने पर पता चलता है की इस स्कीम में और भी बहुत सी समस्यायें मौजूद हैं।
वर्तमान में यूनिवर्सल महिला हेल्पलाइन नंबर उत्पीड़ित महिलाओं की समस्या या उनकी समस्या के समाधान के लिये किसी जिम्मेदार संस्था से प्राप्त हुई मदद की जानकारी सीधे उनसे लेने की वजाए उनके हाल-चाल का संज्ञान पुलिस या OSC केंद्र के माध्यम से लेता है। इस हेल्पलाइन नंबर के पास महिलाओं के द्वारा की गई शिकायतों का संज्ञान लेने की या पुलिस या अन्य संस्थाओं के द्वारा महिलाओं की उचित सहायता को सुनिश्चित कराने की जो शक्ति हुआ करती थी वो शक्ति भी अब इस हेल्पलाइन नंबर से वापस ले ली गई है।
कुछ समय में हुआ ये है की जो शक्तियाँ महिला हेल्पलाइन नंबर के पास हुआ करती थी उन शक्तियों को OSC केंद्रों के कंधों पर डाल दिया गया है। और समस्या जनक बात ये है की OSC केंद्रों के कंधों पर डाले गये इस अतिरिक्त भार के अनुपात में इन केंद्रों में मौजूद संसाधनों की मात्रा में कोई बढ़ोतरी ना करके इनकी क्षमता को जस का तस रखा गया है।
इसके साथ ही महिला हेल्पलाइन पर खर्च होने वाले पैसे की लागत को कम करने के लिये, इस हेल्पलाइन को फंड प्रदान करने वाली केंद्र सरकार, बच्चों को सहायता प्रदान करने संबंधी चाइल्ड हेल्पलाइन और महिला हेल्पलाइन को एक ही छत के नीचे ले आई है। महिला और चाइल्ड हेल्पलाइन को एक ही छत के नीचे से संचालित करते समय इन दोनों विभागों की नियमावली और प्रक्रियाओं में कोई स्पष्ट भेद ना करने से पूरी व्यवस्था को महिलाओं की जरूरत की हिसाब से खराब कर दिया गया है।
महिला हेल्पलाइन का अपने तरफ़ से परीक्षण करने के साथ-साथ उत्पीड़ित महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात करके हमें पता चला की महिला सशक्तीकरण और महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित उपलब्ध सुविधाओं और स्कीमों की जानकारी ना प्रदान करके ये हेल्पलाइन ख़ुद अपने दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही है।
हमने इस पूरे विषय में केंद्र और राज्य सरकारों को अपने विस्तृत सवाल भेजे थे। केंद्र सरकार के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय से तो हमें कोई जवाब नहीं मिला और राज्यों में सिर्फ दिल्ली सरकार ने हमारे सवालों को दिल्ली के नौकरशाहों को भेजने की तकलीफ़ उठाई।
हरियाणा सरकार से हमारे द्वारा बार-बार कुछ विस्तृत और निश्चित सवाल पूछे जाने के बावजूद हमें कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ बल्कि सरकार की तरफ़ से हमें राज्य सरकार के किसी बेनाम और अनिश्चित 'आला अधिकारी' से मुलाकात करने को कहा गया।
हेल्पलाइन की एक वास्तविक जाँच
बीती 18 अगस्त को द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने दिल्ली के महिला हेल्पलाइन नंबर, 181, पर फ़ोन किया, फिर जो हुआ चलिए हम आपको बताते है।
इस लेख को लिखने वाली संवाददाता ने फ़ोन उठाने वाली ऑपरेटर को कहा की इस बात के मद्देनज़र की वो किसी के साथ लिव-इन-रिलेशन में थी वो ये जानना चाहती है की इस प्रकार के रिश्ते में रहने वाली महिलाओं के कानूनी संरक्षण के लिये क्या प्रावधान है।
रिपोर्टर की प्रश्न को सुनकर फ़ोन उठाने वाली ऑपरेटर ने कहा की ''अगर आप लिव-इन रिलेशन के रिश्ते में रहने वाली औरतों को मिलने वाले कानूनी संरक्षण के बारे में जानना चाहती है तो अच्छा होगा आप किसी कानूनी सलाहकार से बात करें, हम सिर्फ़ औरतों के साथ हुई मारपीट या छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज करते है''। जब रिपोर्टर ने पूछा की कानूनी सलाहकार से कैसे संपर्क किया जा सकता है तो फ़ोन उठाने वाली ऑपरेटर ने छूटते ही बोला की ''आप साकेत कोर्ट में स्थित DLSA जा सकती हो'' हलाँकि महिला हेल्पलाइन से फ़ोन पर जवाब दे रही महिला ने ये नहीं बताया की DLSA का अर्थ 'डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी' होता है जहाँ पर नागरिकों को मुफ़्त कानूनी सुविधायें प्रदान की जाती है।
आगे जब रिपोर्टर ने मदद करने का अनुरोध किया तो फ़ोन के दूसरी तरफ़ मौजूद ऑपरेटर ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए DLSA का नंबर इंटरनेट पर खोज कर रिपोर्टर को थमा दिया।
WHL स्कीम की वर्ष 2016 में जारी किये गये दिशानिर्देशों के अनुसार महिला हेल्पलाइन पर मौके पर मौजूद व्यक्ति को फ़ोन करने वाली औरत को महिला सुरक्षा से संबंधित कानूनों, मौजूदा स्कीमों और सरकार के द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के विषय में बताना चाहिये। और यदि फ़ोन उठाने वाली ऑपरेटर के पास ये सब जानकारियाँ नहीं हैं तो वो मामले की जिम्मेदारी किसी अन्य संस्था को सौंपते हुये पीड़ित महिला के फ़ोन को आगे किसी अन्य संबंधित संस्था की ओर बढ़ा सकती है।
लैंगिक हिंसा झेल रहे पीड़ितों को सहायता प्रदान करने के साथ-साथ अपनी एक स्वयं की हेल्पलाइन चलाने वाली NGO शक्ति शालिनी की संयोजक और काउंसलर मोनिका तिवारी कहती है की ''पीड़ित महिलाओं को महिला हेल्पलाइन की तरफ़ से ये बताये जाने के पहले की हेल्पलाइन से उनको कोई मदद मुहैया नहीं कराई जा सकती है या फिर उनकों कहीं और जाकर मदद माँगने का सुझाव देने के पहले ये समझना चाहिये की पीड़ित महिला आख़िर किस प्रकार की मदद चाहती है''। मोनिका कहती है की ''जब रिपोर्टर्स कलेक्टिव की संवाददाता ने महिला हेल्पलाइन पर फ़ोन किया तो मौके पर मौजूद व्यक्ति ने 'लिव-इन' शब्द सुनते ही निर्णय ले लिया की इस मामले का संज्ञान DLSA को लेना चाहिये''।
कायदे से WHL स्कीम के दिशानिर्देशों के अनुसार WHL केंद्र में मौजूद कर्मचारियों को उन सभी संसाधनों की सूचीबद्ध जानकारी होनी चाहिये जिनकी किसी संकटग्रस्त महिला को जरूरत पड़ सकती है।
हमारी रिपोर्टर से हुई बात को महिला हेल्पलाइन के द्वारा रफ़ा-दफ़ा किये जाने के बाद हमने एक दूसरी महिला के वास्ते हेल्पलाइन से कुछ जानकारी लेने की कोशिश की। अबकी हमनें हेल्पलाइन से कहा की दक्षिणी दिल्ली में रहने वाली एक महिला को उसका पति दैनिक रूप से ''मारता है और उसके ऊपर शारीरिक संबंध (शादीशुदा महिलाओं के साथ उनके पति के द्वारा किये जाने वाले दुष्कर्म को प्रायः इसी प्रकार से संबोधित किया जाता है) बनाने के लिए दबाव बनाता है''। हमनें हेल्पलाइन से कहा की ये पीड़ित महिला और उसका 10 वर्षीय पुत्र चाहता है की उसका पति घर छोड़ कर चला जाये लेकिन वो घर से निकलने को तैयार ही नहीं है। पीड़ित महिला की पूरी व्यथा बताने के बाद हमनें हेल्पलाइन से पूछा की उसे क्या करना चाहिये?
अबकी हेल्पलाइन पर बात करते हुए फ़ोन पर दूसरी तरफ़ से बोल रही ऑपरेटर ने हमें बताया की पीड़ित महिला फैमिली कोर्ट में काउंसलिंग के लिये जा सकती है और यदि वो घरेलू हिंसा का मुक़दमा दर्ज कराना चाहती है तो उसको दिल्ली पुलिस की महिला शाखा से संपर्क करना चाहिये। लेकिन जैसे ही हमनें हेल्पलाइन को बताया की पीड़ित महिला एक बच्चे की माँ भी है पलटकर हमसे ही सवाल पूछ दिया गया की एक बच्चे की माँ होते हुए पीड़ित महिला अपने पति की अनुपस्थिति में अकेले अपने बच्चे की देखभाल कैसे करेगी।
आगे जब हमने हेल्पलाइन पर मौजूद ऑपरेटर की बात काटते हुए कहा की पीड़ित महिला अपने रहगुज़र के लिये पैसा कमा लेती है तो इस पर हमसें कहा गया की ''अभी अपना पैसा कमाने के बावजूद पीड़ित महिला को भविष्य में वित्तीय सहायता या अपने पति से गुजारा भत्ता लेने की जरूरत पड़ेगी'' इसलिए पीड़ित महिला को फैमिली कोर्ट की शरण में जाना चाहिये।
इस मामले में तिवारी स्वीकार करती है की हेल्पलाइन की तरफ़ से पीड़ित महिला को सही दिशा दिखाई गई लेकिन पूरी बात के दौरान हेल्पलाइन की तरफ़ से पीड़ित महिला से यह कही नहीं पूछा गया की आख़िर उसे ख़ुद अपने लिये किस प्रकार की मदद की जरूरत है।
तिवारी कहती है की ''पीड़ित महिलाओं का हेल्पलाइन से पूछे जाने पर ही, क्या उनकी शिकायत दर्ज हो सकती है, हेल्पलाइन का शिकायत दर्ज करने के लिये आगे आना एक गलत अभ्यास है। आदर्श रूप से हेल्पलाइन पीड़ित महिला को किसी दूसरे कार्यालय को दौड़ाये उससे पहले हेल्पलाइन केंद्र को अपनी तरफ़ से पीड़ित महिला को ये जानकारी देनी चाहिये की हेल्पलाइन केंद्र ख़ुद उसको किस प्रकार की मदद प्रदान कर सकता है''।
पीड़ित महिला जिसके लिये हम हेल्पलाइन से जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे थे उसकों हेल्पलाइन केंद्र पर उपलब्ध सुविधाओं की जानकारी थी लेकिन इस जानकारी को लेकर वो आश्वत नहीं थी। वो हेल्पलाइन के चक्कर में पहले भी पड़ चुकी थी और पुलिस ने उसे समझाने-बुझाने के बाद बिना किसी सकारात्मक परिणाम के उसके मामले को बंद कर दिया था।
मौलिक फ़ेरबदल
WHL स्कीम के वर्ष 2016 में जारी किये गये दिशानिर्देशों के अनुसार महिला हेल्पलाइन केंद्र पर मौजूद कर्मचारियों में अन्य व्यक्तियों के अतिरिक्त मैनेजरों, सुपरवाइजरों, फ़ोन उठाने वाले और तकनीकी सहायता प्रदान करने वाले व्यक्तियों को शामिल होना चाहिये। और नियमानुसार हेल्पलाइन केंद्र के इन सभी कर्मचारियों में मैनेजर को राज्यों के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को रिपोर्ट करना होता है।
पीड़ित महिला जब हेल्पलाइन केंद्र पर फ़ोन करती है तो केंद्र पर फ़ोन उठाने के लिये नियुक्त की गई महिला फ़ोन को उठाती है और पीड़ित महिला के मामले की गंभीरता के स्तर के अनुसार हेल्पलाइन केंद्र के ऊपरी अधिकारियों को सूचित कर दिया जाता है।
यहाँ पर एक जरूरी बात ये है की महिला हेल्पलाइन को पीड़ित महिलाओं के मामलों को आगे पुलिस, अस्पताल, कानूनी सलाहकारों आदि को सौंप देने के लिये नहीं स्थापित किया गया था बल्कि महिला हेल्पलाइन का काम ये था की वो फ़ोन कर के मदद की गुहार लगाने वाली पीड़ित महिला के पूरे मामले पर लगातार नज़र बना कर रखे और यह सुनिश्चित करे की उस तक मदद पहुँच गई है की नहीं।
यदि पुलिस पीड़ित महिला की शिकायत दर्ज करने में आनाकानी करती है तो WHL स्कीम के वर्ष 2016 के दिशानिर्देशों के अनुसार महिला हेल्पलाइन केंद्र को ये शक्ति प्रदान की गई थी की वो इस बात को सुनिश्चित कर सकता था की पुलिस ने पीड़ित महिला की FIR को समय रहते दर्ज किया है की नहीं। हेल्पलाइन केंद्र को पंजीकृत FIR की एक प्रतिलिपि प्रदान की जाती थी और पुलिस की तरह हेल्पलाइन के कर्मचारी पीड़ित महिला को सहायता प्रदान करने के लिये जिम्मेदार अन्य संस्थाओं से पूछ सकते थे की उन्होंने समय रहते पीड़ित महिला को मदद मुहैया करा दी है की नहीं।
लेकिन जब जुलाई, 2022, में महिला सुरक्षा के लिये मौजूदा योजनाओं, जैसे वन स्टॉप सेंटर (OSC केंद्र) या फिर बहु-प्रचारित बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं योजना, को केंद्र सरकार ने मिशन शक्ति योजना में समाहित करते हुए इस नई योजना को नये-नवेले तरीके से लाँच किया तो महिला हेल्पलाइन केंद्रों की कार्य पद्धति पूरी तरीके से बदल गई।
मिशन शक्ति योजना के भीतर महिला हेल्पलाइन में चुपके से कुछ ऐसे मौलिक बदलाव कर दिये गये जिनसे हेल्पलाइन की कार्यपद्धति को अब जनता के द्वारा ठोक-बजा कर नहीं परखा जा सकता था।
मिशन शक्ति योजना के तहत महिला हेल्पलाइन के संचालन के लिये WHL स्कीम के 2016 के दिशानिर्देशों को हटाकर नये स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) को लागू कर दिया गया। इस नये SOP को जनता के बीच कभी जारी नहीं किया गया हलाँकि इसकी वजह से जिस उद्देश्य के साथ महिला हेल्पलाइन की पूरी योजना को शुरू किया गया था वो पूरा उद्देश्य ही मिट्टी में मिल गया। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव अब इस SOP को जनता के बीच रखना चाहता है।
महिला हेल्पलाइन की स्थापना एक ऐसा संस्था के रूप में की गई थी जो संकटग्रस्त महिलाओं की सहायता के लिये सार्थक हस्तक्षेप कर सकती थी लेकिन उपरोक्त लिखित नई SOP के आने के बाद महिला हेल्पलाइन पीड़ित महिलाओं के फ़ोन को मात्र एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय तक सरकाने का अड्डा बनकर रह गई।
नई SOP के बाद से महिला हेल्पलाइन पर आने वाले ऐसे फ़ोनों को जिनमें अक्सर आपातकालीन मदद माँगी जाती है उनको इमरजेंसी रिस्पान्स सपोर्ट सिस्टम (ERSS)- जिनका संचालन पुलिस करती है- और OSC केंद्रों को भेजा जाने लगा।
आश्चर्य की बात ये है की महिला हेल्पलाइन की तरफ़ से पीड़ित महिलाओं को मदद प्रदान करने का इस तरीके का रवैया तब अपनाया जा रहा था जब हेल्पलाइन की स्थापना मात्र फ़ोन करने वाले को पुलिस आदि के संपर्क में डाल देने के लिये नहीं बल्कि मदद की तलाश में संकटग्रस्त व्यक्ति को पुलिस सरीखी संस्थाओं से दो-चार होते समय सहायता प्रदान करने के लिये की गई थी। संस्थाओं से मदद जुगाड़ने में किसी की सहायता को ख़ास तौर पर हम कम इसलिए नहीं आँक सकते क्योंकि आये दिन मदद माँगने पहुँची महिला के साथ पुलिस की असंवेदनशीलता की खबरें सामने आती रहती हैं।
शक्ति शालिनी NGO की काउंसलर मोनिका तिवारी कहती हैं की ''सरकार के द्वारा संचालित होने वाली हेल्पलाइनों पर अक्सर बहुत ज्यादा भार होता है। अगर आप 112 (ERSS) पर फ़ोन करें तो वो आपके लिये PCR वैन या फिर एम्बुलेंस भेज देंगे। मुख्य बात ये है की ये हेल्पलाइनें आपकों तुरंत आपातकालीन सुविधा तो उपलब्ध करा सकती हैं लेकिन उन आपाकालीन सुविधाओं के आने के पहले ख़ुद का बचाव करते हुये आने वाली मदद के लिये ख़ुद को तैयार कैसे करना है, ये हेल्पलाइनें आपको ये नहीं बताती हैं''।
मोनिका अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है की ''बहुत सी महिलाओं के लिये डर और हिचकिचाहट के चलते पुलिस से बात करना बेहद कठिन होता है इसलिये अक्सर महिलाओं और पुलिस के बीच सामंजस्य के लिये महिलाओं को सहारे और समर्थन की आवश्यकता होती है''।
वर्ष 2016 के महिला हेल्पलाइन के दिशानिर्देशों के अनुसार पुलिस या एंबुलेंस जैसी त्वरित सुविधा उपलब्ध करा देने के बाद हेल्पलाइन केंद्र परेशानी से गुज़र रही महिला से सीधे उसका हाल-चाल पूछा करता था लेकिन नई SOP जारी होने के बाद अब हेल्पलाइन केंद्र महिला का हाल ERSS और OSC केंद्र से पूछता है।
इसके अतिरिक्त नई SOP के तहत यदि हेल्पलाइन केंद्र पीड़ित महिला को किसी संस्था के पास मदद प्राप्त करने के लिए भेजता है और उस संस्था से ठीक प्रकार से मदद ना पाने पर महिला संस्था के खिलाफ शिकायत दर्ज कराती है तो इस शिकायत का संज्ञान लेने की जो शक्ति हेल्पलाइन केंद्र के पास होती थी उसे भी वापस ले लिया गया है। नये फरमान के तहत हेल्पलाइन केंद्र की इस अतिरिक्त शक्ति को OSC केंद्र को सौंप दिया गया है और आश्चर्यजनक तौर पर OSC केंद्र की क्षमता को हेल्पलाइन केंद्रों से आने वाले अतिरिक्त भार के अनुपात में नहीं बढ़ाया गया है। नई SOP के अनुसार OSC केंद्रों में महिला हेल्पलाइन यूनिट की स्थापना की जानी थी लेकिन OSC स्कीम के दिशा निर्देश OSC केंद्रों के लिये प्रस्तावित इस प्रकार की महिला हेल्पलाइन यूनिट के कार्य और जिम्मेदारियों की विवेचना नहीं करते हैं।
इस सीरीज के भाग एक में हमनें इस बात पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला है की OSC केंद्र कर्मचारियों की कमी और पैसे की कमी से जूझ रहे हैं। कुल जमा बात ये है की OSC केंद्रों को लेकर जनता के बीच जागरूकता की कमी और इन केंद्रों पर प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की खराब गुणवत्ता के चलते OSC स्कीम से महिलाओं को कोई फायदा नहीं हुआ है।
महिला सुरक्षा प्रदान करने की इस पूरी व्यवस्था के लक्षणों पर गौर फरमाने से ये स्पष्ट हो जाता है की सरकार महिला हेल्पलाइन में सुधार करने के उलट इस पर खर्च होने वाले पैसे में कटौती करने पर उतारू है।
महिला हेल्पलाइन के संचालन में सरकार के द्वारा बरती जाने वाली कोताही को इस बात से समझा जा सकता है की नई नियमावली के तहत महिला हेल्पलाइन के महत्व को कम आँकते हुए केंद्र सरकार ने इसके संचालन के लिये चाइल्ड हेल्पलाइन के स्थान और बुनियादी ढाँचे का प्रयोग करने का आदेश दिया था। ये बात तो कुछ हद तक जायज़ प्रतीत होती है की महिला हेल्पलाइन के संचालन में होने वाली खपत को सरकार कम करना चाहती है लेकिन जिस तरीके से इसके लिये बनाये गये SOP को चाइल्ड हेल्पलाइन से नकल कर बनाये जाने से इस हेल्पलाइन के द्वारा प्रदान की जाने वाला सुविधाओं में कमज़ोरी आई है वो सरकार की असल मंशा को प्रकट करता है।
उदाहरण के तौर पर महिला हेल्पलाइन की SOP में नाबालिगों के लिये प्रयोग होने वाली शब्दावली जैसे ''चाइल्ड कनफ्लिक्ट विद लॉ'' की नकल करके ''वूमेन कनफ्लिक्ट विद लॉ'' जैसे शब्दों को लिख दिया गया है, हलाँकि चार वकीलों से बात करने पर हमें पता चला की महिला सुरक्षा संबंधी कानूनों के हिसाब से ''वूमेन कनफ्लिक्ट विद लॉ'' जैसे शब्दों की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है।
इसी तरीके से, महिला हेल्पलाइन की SOP को बनाने से पहले इस पर ठीक से विचार नहीं किया गया है, इस बात की पुष्टि कुछ अन्य बातों से भी होती है। जैसे की SOP हेल्पलाइन केंद्र को दिशा निर्देश देता है की यदि कोई महिला ''दुर्व्यवहार से बचाव'' की गुहार लगाती है तो केंद्र को इस विषय में पुलिस और OSC केंद्र को सूचित कर देना है।
हलाँकि तथ्य ये है की ''दुर्व्यवहार से बचाव'' एक व्यापक शब्द है क्योंकि पीड़ित महिला जिस प्रकार के दुर्व्यवहार से बचाव की गुहार लगा रही है वो दुर्व्यवहार भावनात्मक, शाब्दिक, वित्तीय या शारीरिक दुर्व्यवहार में से कुछ भी हो सकता है जिसके बारे में ये पुख़्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता की महिला प्रारम्भिक स्तर पर पुलिस का हस्तक्षेप चाहती भी है की नहीं।
संतोषजनक से कम
केंद्र सरकार के दावे के अनुसार अप्रैल, 2015, में महिला हेल्पलाइन स्कीम लाँच होने से अब तक हेल्पलाइन केंद्र को लगभग 1.53 करोड़ लोगों ने फ़ोन किया और देश भर में हेल्पलाइन केंद्र की तरफ़ से कुल 76.02 महिलाओं को सहायता प्रदान की गई। हलाँकि नीति आयोग के द्वारा वर्ष 2021 में किया गया एक अध्ययन केंद्र सरकार के दावों के उलट महिला हेल्पलाइन स्कीम में व्याप्त तमाम खामियों को गिनानें के साथ-साथ इस स्कीम के निगरानी तंत्र और जनता के बीच इसकी जागरूकता के स्तर को रेखांकित करता है।
181 नंबर से जाने जानी वाली महिला सुरक्षा से संबंधित इस स्कीम को पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने लागू कर दिया था। और अगस्त 2024 में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री, अन्नपूर्णा देवी, ने पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा इस महिला हेल्पलाइन स्कीम को ना लागू किये जाने को लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की खिंचाई भी की थी।
इस सीरीज के भाग एक में हमनें नीति आयोग के द्वारा महिला हेल्पलाइन के ऊपर किये गये अध्ययन का हवाला देते हुए बताया है की कैसे नीति आयोग ने 12 राज्यों की राजधानी में महिला हेल्पलाइन के प्रभाव को ''औसत'' करार देते हुए इस बात को रेखाँकित किया था 4 में से मात्र 1 महिला ही इस स्कीम के विषय में जागरूक है। नीति आयोग ने महिला हेल्पलाइन की दुर्गति पर इस प्रकार की टिप्पणी करने से पहले कुल 12 स्थानों पर 3,048 महिलाओं का सर्वक्षण किया था।
लेकिन नीति आयोग की उपरोक्त लिखित अध्ययन के मात्र एक भाग का हवाला देते हुए केंद्र सरकार ने संसद के भीतर कह दिया की नीति आयोग के मूल्याँकन के अनुसार महिला हेल्पलाइन बेहद संतोषजनक तौर पर प्रासांगिक, प्रभावशाली एवं टिकाऊ है। हलाँकि संसद में बोलते समय नीति आयोग के अध्ययन की रिपोर्ट में जहाँ पर महिला हेल्पलाइन के दोष गिनायें गये थे रिपोर्ट के उस भाग से केंद्र सरकार ने किनारा कर लिया था।
महिला हेल्पलाइन स्कीम, WHL, की आलोचना में नीति आयोग ने जो बातें कही थी वे बिंदुवार हैं:
- पारिवारिक सर्वे के अनुसार WHL स्कीम के विषय में मात्र 23.5% जनता ही जागरूक है।
- महिला सुरक्षा की स्कीम के लिये प्रदान की जाने वाले पैसे का बहुत कम प्रयोग हो पाता है। चार वर्षों में इस स्कीम के लिये निर्धारित बजट में से मात्र 56% पैसा ही राज्यों को मुहैया कराया गया।
- इस स्कीम के तहत प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता को मापने के लिये कोई निगरानी तंत्र मौजूद नहीं है।
नीति आयोग का अध्ययन महिला हेल्पलाइन की इस बात को लेकर प्रशंसा भी करता है कि कोरोना महामारी के दौरान लगाए गए लॉकडाउन के समय इस हेल्पलाइन ने पुलिस, वन स्टॉप सेंटरों (OSC केंद्र) और कानूनी सहायता प्रदान करने वाली संस्थाओं के साथ ''मजबूत गठजोड़'' बनाकर कार्य किया था। लेकिन इसी के साथ नीति आयोग का अध्ययन यह भी कहता है की ''इस बात का कोई ब्योरा मौजूद नहीं है की महिला हेल्पलाइन, WHL, से कितनी पीड़िताओं के फ़ोनों को आगामी कार्यवाही के लिये OSC केंद्र, पुलिस या स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं को सौंपा गया।
सरकार का ख़ुद का विशेषज्ञ समूह, अर्थात् नीति आयोग, कहता है की ''महिला हेल्पलाइन स्कीम की प्रभावशीलता का मूल्याँकन इस स्कीम के तहत प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता के आधार पर किया जाना चाहिए'' ना की प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के आधार संख्या पर।
दस साल की देरी
महिला हेल्पलाइन को वन स्टॉप सेंटरों (OSC केंद्रों) के साथ जोड़कर सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लिये एक विस्तृत व्यवस्था की स्थापना करना चाहती थी।
जहाँ सरकार 2022 में महिला सुरक्षा की नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन करके महिला हेल्पलाइन को OSC केंद्रों से जोड़ने (इमरजेंसी रिस्पान्स सपोर्ट सिस्टम- ERSS- से) की कवायद को एक सफल कदम के रूप में देखती है वहीं महिला हेल्पलाइन के नये स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) से ऐसा इंगित होता है की 2022 के बाद से महिला हेल्पलाइन को एक ऐसे अड्डे में तब्दील कर दिया गया जहाँ से पीड़ित महिलाओं के फ़ोनों को सिर्फ़ उन OSC केंद्रों की ओर बढ़ा दिया जाता है जिनकी क्षमता में हेल्पलाइन का अतिरिक्त भार वहन करने के लिए कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है।
अगस्त, 2024, में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने औपचारिक रूप से बताया था की महिला हेल्पलाइन को ERRS से जोड़ने का कार्य पूर्ण हो गया है वहीं अभी तक 786 कार्यरत OSC केंद्रों में से मात्र 300 केंद्र ही महिला हेल्पलाइन से जुड़ पाए हैं। हलाँकि ये बात कितनी तथ्यात्मक है हम इसकी पुष्टि नहीं कर सकते है।
हरियाणा के जिला नूँह के OSC केंद्र के प्रभारी मोहम्मद अशफ़ाक़ ने कहा की ''हमें पीड़ित महिला के मामले की जानकारी महिला हेल्पलाइन से फ़ोन पे या व्हाट्सएप पे मिलती है और फिर हम पीड़ित महिला से संपर्क कर लेते है''।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार हेल्पलाइन को सभी OSC केंद्रों से जोड़ने का कार्य प्रगति पर है ''और हेल्पलाइन को OSC केंद्रों से पूरी तरह से जोड़ देने के बाद हेल्पलाइन पर आने वालें फ़ोनों को मानवीय सहायता से OSC केंद्र भेजने की वजाय सीधे ऑनलाइन माध्यम से OSC केंद्रों को स्थानान्तरित किया जा सकेगा।
वर्ष 2015 में OSC केंद्रो के लॉन्च होने के बाद से ही OSC केंद्रों के आने वाले प्रत्येक दिशा निर्देश में महिला हेल्पलाइन, 181, को OSC केंद्रों से जोड़ने की बात कही जाती है लेकिन सच्चाई ये है की इन दोनों संस्थानों को आपस में जोड़ने की कार्यवाही ज़मीन पर कारगर नहीं है
शुरूआती दिनों में OSC केंद्रों को महिला हेल्पलाइन से जोड़ने के लिये केंद्र सरकार एक प्राइवेट ट्रस्ट के द्वारा बनाये गये और छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा प्रयोग किये जा रहे सॉफ्टवेयर को प्रयोग करने का सुझाव दे रही थी। इसी सॉफ्टवेयर का प्रयोग जम्मू, कश्मीर, मेघालय और असम में हुआ था।
सॉफ्टवेयर बनाने वाले प्राइवेट ट्रस्ट के संस्थापक राजेंद्र कचरू कहते है की ''महिला हेल्पलाइन पर आये फ़ोनों को किसी अन्य संस्था को बढ़ा देने वाली व्यवस्था से उलट हम अपने सॉफ्टवेयर के माध्यम से पीड़ित महिला को सीधे OSC केंद्र, पुलिस, वकील या संरक्षण अधिकारियों (घरेलू हिंसा अधिनियम में जैसा परिभाषित किया गया है) के सामने पेश करते थे''।
लेकिन सितंबर, 2023, आते-आते राजेंद्र कचरू के निजी ट्रस्ट के द्वारा बनाये गये सॉफ्टवेयर से सभी राज्यों ने किनारा कर लिया।
वर्ष 2016 तक केंद्र सरकार यह कहती रही की नेशनल इनफॉरमेटिक्स सेंटर की तकनीकी विषयों को देखने वाली एक शाखा OSC केंद्रों और महिला हेल्पलाइन को जोड़ने के लिये सॉफ्टवेयर का निर्माण कर रही है। फिर इसके बाद इस सॉफ्टवेयर को विकसित करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने एक दूसरी एजेंसी के कंधे पर डाल दी।
वर्तमान में OSC केंद्रों को ERSS से जोड़ने का कार्यभार इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रोद्यौगिकी मंत्रालय के भीतर कार्य करने वाले संस्थान, सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कम्प्यूटिंग, को दिया गया है। आठ साल बीत जाने के बाद OSC केंद्रों को ERSS से पूरी तरीके से जोड़ा जाने का कार्य पूर्ण नहीं हुआ है और इस काम में प्रयोग होने के लिये प्रस्तावित सॉफ्टवेयर को अभी भी सुबह का सूरज देखने का इंतजार है।
इस खोजी सीरीज़ को प्रकाशित करने में अप्पन मेनन मेमोरियल अवार्ड से मिली आंशिक मदद का प्रयोग किया गया है।
हरियाणा सरकार की प्रतिक्रिया:
कलेक्टिव को 23 अक्टूबर 2024 को हरियाणा के महिला एवं बाल विकास विभाग से जवाब मिला। यह कहानी प्रकाशित होने के 19-20 दिन बाद था।
अपने जवाब में, राज्य सरकार ने कहा कि वन स्टॉप सेंटर कुशलतापूर्वक काम कर रहे थे और उनके कामकाज की निगरानी के लिए उचित जांच की गई थी।इसमें यह भी दावा किया गया कि नूंह में वन स्टॉप सेंटर प्रशासक का पद खाली था, लेकिन यह भी कहा गया कि एक पुरुष कानूनी परामर्शदाता केंद्र के प्रशासन की देखभाल कर रहा था।
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