सिमरन को तो बचा लिया गया

लेकिन प्रत्येक महिला सिमरन के जितनी भाग्यशाली नहीं होती

मार्च 2020 में कोरोना महामारी के दौरान देश में लगे लॉकडाउन के समय स्कूलों, दुकानों और यातायात  के सभी साधनों को बंद कर दिया गया था। उस समय जब किसी भी प्रकार की चहलक़दमी के ऊपर तमाम तरीके की पाबंदियाँ लगा दी गई थी, लैंगिक एवं यौन हिंसा झेल रहे लोगों को सहायता प्रदान करने वाले दिल्ली स्थित एन.जी.ओ., शक्ति शालिनी, को किसी ने छटपटाते हुए फ़ोन मिलाया। फ़ोन के दूसरी तरफ सुनील* नाम एक आदमी नेपाल से बात कर रहा था जो दिल्ली में रहने वाली अपनी बहन सिमरन* से संपर्क नहीं कर पा रहा था। कई संस्थानों से मदद की गुहार लगाने के बाद आख़िरी में सुनील शक्ति शालिनी समूह के चौबीस घंटे चालू रहने वाले सहायता केंद्र पर अपनी फरियाद लेकर पहुँचा था।

सुनील ने फ़ोन पर बताया की उसकी बहन सिमरन की 6 साल पहले शादी हुई थी और अब वो अपने ससुराल में पश्चिमी दिल्ली में रहती है। सुनील ने बताया की सिमरन दो बच्चियों की माँ है और उसके परिवार ने सिमरन के पति को चार्टर्ड एकाउंटेंट बनाने के लिये उसकी उच्च शिक्षा का खर्चा भी उठाया था लेकिन, अब सुनील का कहना था की, उसकी बहन कुछ बातों को लेकर बेहद डरी हुई है।

सुनील ने कहा की जब आख़िरी बार उसकी सिमरन से बात हुई थी तो वो बता रही थी की उसका पति और सास उसकी हत्या करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। सुनील ने कहा की उसका पति और सास बात कर रहे थे की 'हम कह देंगे की सिमरन कोरोना की वजह से मर गई और कोई भी मौत की असल वजह जानने के लिये पड़ताल भी नहीं करेगा'।

सिमरन के इस आख़िरी फ़ोन के बाद सुनील का सिमरन से संपर्क टूट गया था। सुनील बहुत घबड़ाया हुआ था, उसे डर लग रहा था की सिमरन की उसके ससुराल वालों ने हत्या कर दी है। 

शक्ति शालिनी समूह से मदद माँगते हुए सुनील ने विनती की कि 'मुझे डर लग रहा है, शायद सिमरन के साथ कुछ हो गया है, कुछ भी करके उसे ढूंढ लाओ।

सुनील का फ़ोन आते ही शक्ति शालिनी समूह के दो व्यक्ति जल्दी से अपने काम में लग गये। सामान्य तौर पर शक्ति शालिनी समूह के स्वयंसेवक महिलाओं को बताये गये पते से बचा कर ले आते हैं लेकिन सुनील के पास सिमरन का सटीक पता होने की वजाये उसे सिर्फ इतना पता था की सिमरन दिल्ली के किस इलाके में रहती है।

सिमरन के ससुराल का पता जानने के लिये शक्ति शालिनी के कार्यकर्ताओं ने पुलिस से मदद की गुहार लगाई लेकिन पुलिस ने लॉकडाउन से जुड़े अपने कामों को प्राथमिकता देने का हवाला देते हुए इस पूरे विषय में रुचि नहीं ली। 

पुलिस ने कहा की 'मैडम ये बहुत बड़ा एरिया है, यहाँ हम आप जिस औरत को खोजने के लिए बोल रही है उसे हम बिना पते के कैसे खोजेगे”।

शक्ति शालिनी समूह के जो दो लोग सिमरन को खोजने निकले थे उनके लिये पुलिस के द्वारा दिखाई जाने वाली इस प्रकार की क्रूर उदासीनता को झेलना रोज का काम है लेकिन फिर भी पुलिस के इस निर्दयी व्यवहार से रोज-रोज रूबरू होना उनको हताशा से भर देता है।

सिमरन को खोजते हुए जब शक्ति शालिनी के कार्यकर्ताओं को समझ आया की वो पुलिस पर भरोसा नहीं कर सकते है तब उन्होंने समस्या के समाधान के लिये ख़ुद ही कुछ उपाय निकालने की ठानी।

सुनील ने शक्ति शालिनी की टीम को सिमरन के पति का नंबर दिया था लेकिन उसके पति को सीधे फ़ोन करके उसका पता माँगने से उसको शक हो सकता था और सिमरन के लिए हालात और भी ज्यादा बिगड़ सकते थे इसलिये शक्ति शालिनी के सदस्यों ने ये निर्णय लिया की वो सिमरन के पति को सरकारी अफ़सर बनकर फ़ोन करेंगे।

अपने निर्णय के अनुसार शक्ति शालिनी ने सिमरन के पति को फ़ोन लगाया और कहा की 'लॉकडाउन के चलते हम मुफ़्त में राशन बाँट रहे हैं और हम कुछ राशन आपके पते पर भी पहुँचाना चाहते है'। सिमरन का पति झाँसे में आ गया और उसने अपने घर का पता बता दिया।

सिमरन के घर का पता मिलते ही शक्ति शालिनी के सदस्यों ने फिर से दिल्ली पुलिस के साथ-साथ दिल्ली कमीशन फॉर वूमेन (DCW) से संपर्क साधा लेकिन दिल्ली पुलिस अब एक और बहाना लेकर तैयार थी। अबकी बार पुलिस ने कहा की 'हमारे पास आपके बताये घर तक जाने का कोई साधन नहीं है'।

मामले की गंभीरता को समझाते हुए पुलिस के अधिकारियों को मनाने की कोशिश की गई, तब जाकर पुलिस मदद करने के लिये आगे आई।

आख़िरी में पुलिस और DCW की टीम ने सिमरन के ससुराल पहुँच कर उसको जिंदा लेकर बेहद सहमी हुई अवस्था में बरामद किया।

सिमरन ने पुलिस के सामने बिलखते हुए बोला की 'मेरे ससुराल वाले मुझे मार डालेंगे, मैं यहाँ पर नहीं रह सकती हूँ, भगवान के लिये मुझे यहाँ से ले चलो'।

सिमरन के पास रहने के लिए कोई अन्य स्थान नहीं था इसलिए उसको किसी शेल्टर हाउस की आवश्यकता थी, लेकिन सिमरन और उसकी दो बेटियों को किसी शेल्टर में ले जाने की वजाय पुलिस ने उनको थाने लाकर 'समझाना-बुझाना' शुरू कर दिया।

पुलिस ने सिमरन से कहा की 'घर वापस चली जाओ, इस महामारी के बीच तुम कहाँ जाओगी, तुम्हारे लिये घर ज्यादा सुरक्षित है, शेल्टर हाउस के लोग तुम्हें तस्करों को बेच देंगे'।

डरी हुई सिमरन को उसके हिंसात्मक ससुराल को वापस भेजने के उद्देश्य से एक पुलिस अधिकारी ने उसको समझाते हुए कहा की “अगर तुम्हारे ससुराल वाले सच में तुम्हारी हत्या करना चाहते है तो अब तक तुमको छोड़ते क्यों? अब तक तो वो तुम्हे मार ही चुके होते”।

पुलिस ने सिमरन की मर्जी के खिलाफ जाते हुये सिमरन और उसकी दोनों बेटियों को सरकारी शेल्टर हाउस में छोड़ने का भी सुझाव दिया लेकिन शक्ति शालिनी समूह की टीम सिमरन के साथ मुस्तैदी से खड़ी रही।

सिमरन शक्ति शालिनी के सदस्यों के साथ जाने की अपनी ज़िद पर अड़ी रही और आख़िरी में पुलिस को उसकी बात को मानना पड़ा और उसे शक्ति शालिनी समूह के द्वारा चलाये जाने वाले शेल्टर हाउस में छोड़ दिया गया।

बाद में शक्ति शालिनी के शेल्टर हाउस में रहते हुए सिमरन ने अपनी आपबीती सुनाई की वो कैसे लगातार हिंसा झेल रही हैं और वर्षों तक कैसे उसका पति उसको प्रताड़ित करता रहा।

शेल्टर हाउस में कुछ दिन बिताने के बाद सिमरन वापस अपने नेपाल स्थित घर पर अपने भाई के पास लौट गई।

सिमरन ख़ुशकिस्मत थी लेकिन भारत में हिंसा झेल रही अधिकाँश महिलायें सिमरन जितनी भाग्यशाली नहीं होतीं।

सिमरन की इस कहानी को द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के साथ मोनिका तिवारी ने साझा किया है। मोनिका, शक्ति शालिनी समूह के क्राइसिस इंटरवेंशन सेंटर में काउंसलर हैं।

हमारे देश में सिमरन की तरह अनगिनत महिलाएँ अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार और हिंसा से पीछा छुड़ाने का प्रयास करते हुए सुरक्षा और न्याय की तलाश में सरकारी मुलाज़िमो का दरवाज़ा खटखटाती है लेकिन अंत में मुलाज़िमों की उदासीनता के चलते हिंसा झेल रही महिलाओं को सिर्फ निराशा ही हाथ लगती है।

सिमरन की कहानी हमें उन लोगों ने बताई जो मौके पर उसको बचाने के लिये पहुँचे थे।

बर्बाद हो चुकी व्यवस्था पर से पर्दा उठाते हुए द रिपोर्टर्स कलेक्टिव आपके लिये कुछ ज़मीनी कहानियाँ लेकर आया है। इस सीरीज़ में हम आपको ये दिखाएंगे की निर्भया केस के 12 साल बाद भी हमारे देश में महिला सुरक्षा का मुद्दा कुछ खोखले वादों पर टिके होने के साथ-साथ कैसे उदासीन सरकारी तंत्र की उपेक्षा का दंश झेल रहा है।

 

*इस रिपोर्ट में किरदारों की पहचान छुपाने के लिए उनके असली नाम गुप्त रखे गए हैं।

इस खोजी सीरीज़ को प्रकाशित करने में अप्पन मेनन मेमोरियल अवार्ड से मिली आंशिक मदद का प्रयोग किया गया है।

Part 1
A Cold Shoulder: The Collapse of Government Help Centres Meant to Protect Women
Part 2
Tuned Out: Launched After Nirbhaya, Helpline Fails Women
Part 3
A Fiscal Choke, a Hidden Report
Photo Essay
The Hidden Battle for Survival 

THE FOLKS
BEHIND THE Story

Author
Tapasya

Reporter

Editors
Furquan Ameen
Editor
Nitin Sethi
Founder
Photos
Bhumika Saraswati

Photographer

Contributors
Harshitha Manwani

Reporter

Translator
Alok Rajput

Writer

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