नारी सुरक्षा के लिए बनाए गए सरकारी सहायता केंद्रों का निर्णायक पतन
सेंट्रल दिल्ली में स्थित दिल्ली हाईकोर्ट में अगस्त का पहला दिन आम दिनों की तरह ही था। कोर्ट परिसर में चहलक़दमी कर रहे वकीलों और वकालत में हाथ आज़मा रहें लोगों की मौजूदगी से हमेशा की तरह कोर्ट भरा हुआ था।
इस कोर्ट के हॉल नंबर एक में मुक़दमों का आना-जाना लगा रहता है। कचहरी के इसी रोजमर्रा के बने-बनाए दैनिक जीवन के साथ कदमताल करते हुए बीती एक अगस्त को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायाधीश तुषार राव गेडेला ने महिला सुरक्षा के लिये बनाई गई एक महत्वपूर्ण वन स्टॉप सेंटर (OSC) स्कीम को दिल्ली सरकार के द्वारा दिल्ली में लागू किये जाने से संबंधित एक विवाद की सुनवाई की।
वर्ष 2015 में OSC स्कीम को संकट के दौर से गुजर रहीं उत्पीड़ित एवं हिंसाग्रस्त महिलाओं को आपातकालीन रूप से रहने की कोई जगह प्रदान करने के उद्देश्य से लांच किया गया था। इस स्कीम के तहत बनाये गये OSC केंद्रों पर उत्पीड़ित महिलाओं को कानूनी और चिकित्सीय सुविधाएं प्रदान करने का भी प्रावधान है। वर्ष 2012 में देश को दहला देने वाले निर्भया गैंगरेप के बाद सरकार की तरफ़ से बहुत से कदम उठाये गये थे, OSC स्कीम भी इन्हीं में से एक थी।
निर्भया केस ने सरकारों को महिला सुरक्षा पर विचार करने के लिए मजबूर किया था। हिंसा और दुर्व्यवहार से दो-चार होती महिलाओं की मदद के लिये एक के बाद एक योजनाएँ शुरू की गईं थी। तीन भागों की इस सीरीज़ में, द रिपोर्टर्स कलेक्टिव महिलाओं की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण योजनाओं का विश्लेषण और पड़ताल करेगा। पहले भाग में हम OSC स्कीम को लागू किये जाने की प्रक्रिया की जाँच करेंगे ।
हमने कुछ एक्सक्लूसिव सरकारी दस्तावेज़ों को खँगालकर और दो राज्यों - दिल्ली और हरियाणा - का दौरा करके पाया कि प्रारंभिक रूप से एक दशक पहले शुरू की गई महिला सुरक्षा से संबंधित योजनाएँ एक दशक बाद भी महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान करने के अपने वादे को पूरा करने में असफल रही हैं।
बीती 15 जुलाई को हुई सुनवाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में OSC स्कीम के क्रियान्वयन को लेकर अप्रसन्नता व्यक्त की थी। कोर्ट ने दिल्ली में खस्ताहाल OSC केंद्रों से संबंधित याचिका को कोर्ट लेकर पहुँची वकील, प्रभसहाय कौर, और मामले में दिल्ली सरकार के वकील को OSC केंद्रों का निरीक्षण कर अपनी रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया था।
एक अगस्त को इस मुक़दमे की अगली सुनवाई हुई और सुनवाई के दौरान दिल्ली स्थित बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम करने वाली एन.जी.ओ., बचपन बचाओ आंदोलन, की तरफ से प्रभसहाय कौर ने कहा की उन्होंने कुल जमा 11 OSC केंद्रों का निरीक्षण किया और अपने निरीक्षण में उन्होंने पाया की ''OSC केंद्रों का बहुत ही सीमित उपयोग किया जा रहा है''। न्यायाधीशों के समक्ष अपनी बात आगे बढ़ाते हुए प्रभसहाय ने कहा की OSC केंद्रों के कर्मचारियों को समय पर वेतन नहीं मिलता है और सबसे जरूरी बात ये है की ''OSC केंद्रों पर उत्पीड़ित महिलाओं के मामले में पुलिस कार्यवाही में सहयोग करने के लिए किसी को भी तैनात नहीं किया जा रहा है''।
कौर ने न्यायाधीशों को यह भी बताया की पुलिस के द्वारा महिलाओं को उत्पीड़ित करने वाले अपराधियों के ऊपर कार्यवाही करने का पहले का रिकॉर्ड भी बेहद खराब रहा है। कौर का कहना था की सामान्य तौर पर ''पुलिस महिलाओं की मदद करने के लिये आगे नहीं आती है'' और OSC केंद्रों को ''धर्मशाला'' की तरह प्रयोग करती है। कौर की बातों को सुनने के बाद कोर्ट ने फिर से एक बार OSC केंद्रों के कमजोर हालात पर अपनी नाख़ुशी व्यक्त की और कौर के तर्कों को अपने आदेश में शामिल किया।
दिल्ली सरकार के वकील उदय मलिक ने भी प्रभसहाय के साथ दिल्ली के 11 OSC केंद्रों का निरीक्षण किया था। और हाई कोर्ट की कार्यवाही के दौरान उदय ने प्रभसहाय के आरोपों के ऊपर हामी भरते हुए माना की दिल्ली के OSC केंद्र ठीक से संचालित नहीं हो रहे हैं।
अंत में जैसा की कोर्ट परिसर में हमेशा होता है वैसा ही हुआ। खस्ताहाल OSC केंद्रों की हालत के ऊपर न्यायाधीशों ने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की जिसका नौकरशाहों के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा और थक- हार कर OSC स्कीम का ये पूरा मुद्दा सरकारी कार्यालयों की शिथिलता की भेंट चढ़ गया।
ऐसा नहीं है की OSC स्कीम की विफलता का मुद्दा प्रभसहाय कौर और उदय मलिक के जरिये पहली बार उठा था। संसद की स्थाई समतियों के द्वारा यह मुद्दा संसद में और यहाँ तक की सरकार के खुद के OSC स्कीम के मूल्यांकन में उठाया जाता रहा है। लेकिन इसके बावजूद अब तक OSC केंद्रों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने कुछ अप्रकाशित औपचारिक दस्तावेज़ों और, जनता की नज़रों से अब तक छुपाकर रखे गई, नीति आयोग के द्वारा वर्ष 2021 में किये गये अध्ययन की एक रिपोर्ट की पड़ताल करके ये पाया की कैसे OSC स्कीम के संबंधित तथ्यों से छेड़खानी करने के साथ-साथ सरकार लगातार इस स्कीम की नाकामयबी पर पर्दा डालने के लिए जनता को आधी-अधूरी बातें बताती रही।
OSC स्कीम ठीक से लागू इसलिये नहीं हो पाई क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें इस स्कीम की जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ती रहीं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के कुछ अंदरूनी दस्तावेज ये दिखाते है की केंद्र सरकार द्वारा संसद में यह बताए जाने के बावजूद की उसने OSC स्कीम के संचालन के लिये राज्य सरकारों को फंड मुहैया कराने की व्यवस्था को दुरुस्त कर दिया है, केंद्र सरकार ने राज्यों को पैसा प्रदान करने में बहुत ज्यादा देर लगाई।
इसी के साथ-साथ राज्यों ने भी OSC स्कीम को ठीक से लागू करने में अपनी तरफ़ से पूरी मुस्तैदी नहीं दिखाई। और अंत में सरकारी उदासीनता और इस स्कीम को लेकर जनता के बीच जागरूकता की कमी के चलते ये पूरी स्कीम धराशायी हो गई।
केंद्र सरकार के द्वारा स्कीम को लेकर बहुत खरी-खरी तस्वीर पेश करने से इस बात पर पर्दा पड़ गया की वास्तव में कैसे इस स्कीम में किए गये वादें अभी तक पूरे नहीं किए गये हैं और कैसे ये स्कीम संस्थानिक असफलता का शिकार है। सरकार के ख़ुद के विशेषज्ञ संगठन, नीति आयोग, ने महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने वाली इस स्कीम के ऊपर एक अध्ययन किया था। रिपोर्टर्स कलेक्टिव को इस अध्ययन से जुड़े दस्तावेज़ प्राप्त हुए जिनके अनुसार:
नीति आयोग ने OSC स्कीम के संबंध में जो बातें कहीं वो इस प्रकार हैं:
- प्राथमिक तौर पर OSC स्कीम के संबंध में सवाल पूछे जाने पर मात्र 4% लोगों को ही इस स्कीम के विषय में जानकारी है।
- OSC स्कीम के अंतर्गत जारी किये गये फंड का मात्र 20% पैसा ही स्कीम संबंधी कार्यों के लिये प्रयोग किया गया है।
- OSC स्कीम के अंतर्गत प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता और वर्तमान गुणवत्ता के स्तर में सुधार के लिये मौजूद जानकारी की गंभीर रूप से बहुत भारी कमी है।
- OSC स्कीम के अंतर्गत स्कीम के लाभार्थियों की तरफ से शिकायत दर्ज कराने या स्कीम के तहत उपलब्ध सुविधाओं के ऊपर टिप्पणी करने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
इस पूरे किस्से में सबसे ज्यादा हास्यजनक बात ये रही की नीति आयोग ने अपने अध्ययन में OSC स्कीम के क्रियान्वयन में बरती जाने वाली ढीला- ढाली को लेकर सरकार की आलोचना की थी लेकिन इसी अध्ययन की रिपोर्ट का प्रयोग करके सरकार ने OSC स्कीम की अपनी सफलताओं को गिनवा दिया। सरकार ऐसा इसलिये कर पाई क्योंकि नीति आयोग की असली रिपोर्ट को उसने नागरिकों से छुपा कर रखा।
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर OSC केंद्रों के किए गये निरीक्षण की ही तरह नीति आयोग का अध्ययन भी दिखा रहा था की OSC केंद्रों को लेकर जनता के बीच कोई जागरुकता नहीं है, OSC केंद्रों के फंड को ठीक से प्रयोग नहीं किया जाता है और OSC केंद्रों पर तैनात कर्मचारियों को वेतन देने की कोई स्पष्ट नियमावली नहीं है। लेकिन इसके बावजूद सरकार ने एक ओर ये प्रमाणित करने के लिये की OSC स्कीम को बहुत मुस्तैदी से लागू किया गया है, नीति आयोग की रिपोर्ट का प्रयोग किया और दूसरी ओर चालाकी दिखाते हुए सरकार ने नीति आयोग की इसी रिपोर्ट को दबा कर रखा।
गौरतलब है की यह पूरा घटनाक्रम उस समय घटित हुआ जब पिछले कुछ-एक वर्षों में महिलाओं के ऊपर होने वाली हिंसा में रिकॉर्डतोड़ बढ़ोत्तरी हुई है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो का डेटा महिलाओं के ऊपर बढ़ते हुए अपराधों की बेहद गंभीर तस्वीर पेश करता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आँक़ड़ें के अनुसार देश मे वर्ष 2012 से 2022 के बीच महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की दर बढ़ गई है। पहले प्रति लाख महिलाओं में से 41.7 महिलाओं के साथ अपराध होता था वहीं अब प्रति लाख में 66.4 महिलाएं अपराधों का शिकार होती हैं। सिर्फ वर्ष 2022 में 31,912 महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया था जिसमें से 250 महिलाओं की दुष्कर्म करने के बाद हत्या भी कर दी गई थी। वर्ष 2022 में ही 6,516 महिलाओं को दहेज की माँग के चलते मौत के घाट उतार दिया गया था और पतिओं या सास, ससुर के द्वारा क्रमशः पत्नी या बहू के साथ क्रूरता करने के संदर्भ में 1,40,019 मुक़दमें दर्ज कराये गये थे।
महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के आँक़ड़े सिर्फ उन अपराधों की कहानी बयाँ करते है जो अपराध थाने-कोर्ट-कचहरी में औपचारिक रूप से सरकारी फाइलों में जगह पा जाते हैं अन्यथा सच्चाई ये है की महिलाओं के शोषण और दमन के अधिकांश किस्सों को देश में कहीं दर्ज ही नहीं किया जाता है।
हमनें दिल्ली और हरियाणा में लैंगिक और यौन हिंसा से गुजर रहीं बहुत सी ऐसी महिलाओं से बात कर यह जानने की कोशिश की आपराधिक हिंसा से निज़ात पाने की उम्मीद में उन्हें कैसे सरकारी सहायता के लिये दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है।
अधिकांश पीड़ित महिलाओं ने हमें बताया की चाहे OSC केंद्रों के कर्मचारियों से सहायता पाने की बात हो या फिर पुलिस के सामने शिकायत दर्ज कराने का विषय हो, प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर चारों तरफ पसरी असंवेदना से दो-चार होना पड़ता है। पीड़ित महिलाओं ने हमें बताया क्योंकि पुलिस उनसे कहती है की या तो वो मामले को बात-चीत करके रफ़ा-दफ़ा करे या फिर शोषण करने वाले पुरुष के पास वापस चली जाये, इसलिये पीड़ित महिलाओं को अक्सर OSC केंद्रों और पुलिस को छोड़कर अपनी फरियाद किसी और को जाकर सुनानी पड़ती है।
उदाहरण के तौर पर भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक हरियाणा स्थित नूँह जिले में हमने पाया की एक OSC केंद्र का प्रभारी एक पुरुष को बना दिया गया है जबकि सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार OSC केंद्र का प्रभारी सिर्फ़ किसी महिला को ही बनाया जा सकता है। नूँह में जब हमने महिलाओं से बात की तो उन्होंने हमें बताया की OSC केंद्र में पुरुषों की मौजूदगी के चलते वो खुलकर बात करने से हिचकिचाती हैं, जिसे वो अपनी न्याय पाने की राह में बाधा के रूप में देखती हैं।
हमने इस पूरे विषय में केंद्र और राज्य सरकारों को अपने सवाल भेजे थे। केंद्र सरकार के महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय से तो हमें कोई जवाब नहीं मिला और राज्यों में सिर्फ दिल्ली सरकार ने हमारे सवालों को दिल्ली के नौकरशाहों को भेजने की तकलीफ़ उठाई।
हरियाणा सरकार से हमारे द्वारा बार-बार कुछ निश्चित सवाल पूछे जाने के बावजूद हमें कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ बल्कि सरकार की तरफ से हमें राज्य सरकार के किसी बेनाम और अनिश्चित 'आला अधिकारी' से मुलाकात करने को कहा गया।
पहली प्रतिक्रिया की स्थिति
संकट के दौर से गुजर रहीं उत्पीड़ित महिलाओं को एक छत के ही नीचे बहुत सी सुविधाएं एक साथ प्रदान करने के लिए वन स्टॉप सेंटर (OSC) की पूरी व्यवस्था को ईजाद किया गया था। इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ये था की शोषण का शिकार महिलाओं को सहायता और न्याय पाने की राह में एक सरकारी ऑफिस से दूसरे सरकारी ऑफिस के चक्कर ना काटने पड़े। नियम के अनुसार हरियाणा के जिला कार्यालय के भीतर खड़ी कोई अकेली इमारत या फिर दक्षिणी दिल्ली के किसी अस्पताल जैसे स्थान को OSC केंद्र बनाया जा सकता था।
आदर्श रूप से किसी OSC केंद्र को इस तरीके से बनाने की योजना थी की संकटग्रस्त महिलाएं अपनी समस्या के निवारण के लिये सबसे पहले OSC केंद्र आये और वहाँ पर उनके रोजमर्रा के कामों में उनकी मदद करने के लिये एक व्यक्ति को नियुक्त किया जाये। इसके साथ-साथ नियम ये था की OSC केंद्र में भर्ती पीड़ित महिलाओं को थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिये एक पुलिस आफ़ीसर, कानूनी, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक सलाह देने के लिये एक परामर्शदाता और एक चिकित्सक की सेवाएं प्रदान की जाये। इसके अतिरिक्त नियमानुसार पीड़ित महिलाओं को OSC केंद्र में उनके पूरे मामले में उनकी सामूहिक रूप से मदद करने के लिये भी किसी एक व्यक्ति की सुविधाएं प्रदान किये जाने का प्रस्ताव था।
OSC स्कीम की अवधारणा के अनुसार OSC केंद्रों को महिलाओं के लिये एक ऐसे सुरक्षित माहौल प्रदान करने वाले केंद्र के रूप में परिकल्पित किया गया था जिसमें सभी उम्र की लड़कियां, महिलाएं एवं उनके बच्चे और साथ-साथ 12 साल से कम उम्र के लड़के करीब 5 दिन के लिये अस्थाई रूप से शरण ले सकते थे।
वर्ष 2012 में निर्भया मामले की प्रतिक्रिया में केंद्र सरकार ने 'निर्भया फंड' के नाम से एक फंड की स्थापना की थी। OSC स्कीम के लिये पैसे की आमद इसी 'निर्भया फंड' से पूरी होनी थी जबकि राज्यों की जिम्मेदारी थी की वो स्कीम को अपने-अपने राज्य में लागू करें। आज की तारीख़ में देश में कुल 786 OSC केंद्र कार्यरत हैं और OSC स्कीम की स्थापना से अब तक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को इस स्कीम के तहत कुल 853.78 करोड़ रुपये भेजे जा चुके है।
हालाँकि वर्ष 2022 में महिला सुरक्षा के लिये उठाये गये तमाम कदमों को 'मिशन शक्ति' के नाम से लाँच की गई एक नई योजना में समाहित करते समय सरकार ने 'OSC स्कीम', 'महिला हेल्पलाइन' और बहुप्रचारित 'बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओं' योजना को मिशन शक्ति योजना का घटक बना दिया था। 2022 में मिशन शक्ति योजना की लांचिंग के बाद से ही सरकार ने इस योजना के भिन्न-भिन्न घटकों के लिये उपलब्ध कराये गये पैसे का ब्योरा देना बंद कर दिया है।
सरकार की तरफ़ से मिशन शक्ति योजना के महिला सुरक्षा वाले संयुक्त भाग पर वित्तीय वर्ष 2021-22 और 2022-23 में जितना खर्चा करने का वादा किया था सरकार ने उसमे से क्रमशः 31.2% और 34.7% पैसा ही खर्च किया था। वहीं सरकार की तरफ से वित्तीय वर्ष 2023-24 में मिशन शक्ति योजना के इसी भाग पर जितना पैसा खर्च करने का वादा किया गया था 2024 के बीच तक आते- आते (रिवाइज्ड इस्टीमेट) सरकार उसमें से अब तक 82.2% पैसा खर्च कर देने की बात कह रही है। नियमानुसार ये दो वर्ष के आख़िरी में ही पता चलेगा की 2023- 24 में सरकार ने महिला सुरक्षा के ऊपर वास्तव में कितना पैसा खर्च किया।
नीति आयोग के द्वारा OSC स्कीम के मूल्याँकन में इस बात को रेखाँकित किया गया था की इस स्कीम के लिये आवंटित कुल पैसे में से मात्र 20% पैसे का ही प्रयोग हुआ है। आवंटित पैसे में से मात्र 20% पैसे के ही खर्च होने का कारण बताते हुए नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है की OSC स्कीम के अंतर्गत बहुत कम OSC केंद्रों का निर्माण किया गया है इसलिये इस स्कीम पर आवंटित पैसे में अधिकाँश पैसा बचा रह गया।
इसी बीच केंद्र सरकार ये कहती रही है की राज्यों को फंड की नई खेप प्राप्त करने के लिये पहले प्रदान किये गये पैसे का ब्योरा दो दस्तावेज़ों- यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट, स्टेटमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर- के माध्यम से देना होता है। केंद्र सरकार के अनुसार राज्य इन दोनों दस्तावेज़ों को समय पर जमा नहीं करते है इसलिये केंद्र की तरफ से राज्यों को फंड मुहैया कराने में देरी हो जाती है।
वर्ष 2023 के दिसंबर महीने में OSC स्कीम के तहत फंड मुहैया कराने के विषय पर संसद की स्थायी समिति के सामने अपनी बात रखते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा था की केंद्र की तरफ से राज्यों को महिला सुरक्षा की योजनाओं के लिए पैसा उपलब्ध कराने की पूरी विधा को अब सुव्यवस्थित कर दिया गया है। मंत्रालय के अनुसार पहले फंड को सीधे जिलों को भेजा जाता था लेकिन वर्ष 2022 से फंड को सीधे जिलों को भेजने की वजाये मिशन शक्ति योजना के राज्य सरकार द्वारा संचालित 'सिंगल नोडल अकाउंट' से होते हुए भेजा जायेगा। और इस प्रकार जिलों में स्थित OSC केंद्रों को फंड प्रदान करने के साथ-साथ OSC स्कीम को ज़मीनी स्तर पर लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। इन्हीं सभी सुधारों के मद्देनज़र राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को OSC स्कीम के तहत केंद्र से नियत समय पर फंड प्राप्त करने के लिये इंटरनेट पर एक्सपेंडीचर सर्टिफिकेट जमा करने हेतु एक विशिष्ट पेज की स्थापना भी कर दी गई थी।
लेकिन कुछ एक्सक्लूसिव दस्तावेज़ दिखाते है की इन सभी सुधारों के बाद जब केंद्र सरकार कह रही थी की राज्यों का फंड प्रदान करने की व्यवस्था को चाकचौबंद कर दिया गया है ठीक उसी समय केंद्र सरकार राज्यों को फंड प्रदान करने में देर लगा रही थी।
सरकार ने कैसे गुमराह किया
2023 के दिसंबर महीने में दिल्ली हाईकोर्ट में इस मुद्दे को उठाया गया की दिल्ली के OSC केंद्रों को फंड प्रदान करने में देर की जा रही है और इन केंद्रों के कर्मचारियों का वेतन अटका पड़ा है। इस मुद्दे के कोर्ट में उछलते ही दिल्ली सरकार के वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया की OSC केंद्रों के कर्मचारियों को एक हफ़्ते के अंदर-अंदर उनका वेतन दे दिया जायेगा।
15 जुलाई 2024 को जब इस मुक़दमे की अगली सुनवाई हुई तब जिम्मेदारी को दिल्ली सरकार के कंधों पर डालने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने सूचित किया की वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिये OSC स्कीम के तहत दिल्ली सरकार को 1.05 करोड़ रुपये प्रदान कर दिये गये थे।
लेकिन सरकार के मंत्रालय द्वारा कुछ अप्रकाशित दस्तावेज़ों की पड़ताल करने पर द रिपोर्टर्स कलेक्टिव को पता चला की केंद्र सरकार ने 15 जुलाई को मुक़दमे की सुनवाई के मात्र पाँच दिन पहले दिल्ली सरकार को OSC स्कीम के क्रियान्वयन के लिये फंड उपलब्ध कराया था।
10 जुलाई 2024 को मंत्रालय के अधिकारियों ने अपने आपसी पत्राचार में कहा की ''चूँकि OSC स्कीम के लिए इस वर्ष अभी तक कोई फंड प्रदान नहीं किया गया है राज्य और OSC केंद्रों में कार्य करने वाले कर्मचारी बार-बार हमसें संपर्क करके हमारे ऊपर वेतन और तमाम अन्य देनदारियों का भुगतान करने के लिये फंड प्रदान करने का दबाव बना रहे हैं'', मंत्रालय के एक दूसरे दस्तावेज़ से इस बात की पुष्टि होती है की OSC स्कीम के फंड से जुड़े इस पूरे मसअले पर दिल्ली की राज्य सरकार लगातार नज़र बनाई हुई थी।
वर्ष 2024 के सितंबर महीने तक दिल्ली स्थित 11 OSC केंद्रों ने कुल 18,490 महिलाओं को सहायता प्रदान की थी। चूँकि सिर्फ़ वर्ष 2022 में दिल्ली में महिलाओं के साथ हुए 14,247 अपराधों को दर्ज किया गया था, दिल्ली में OSC केंद्रों की स्थापना से अब तक मात्र 18,490 महिलाओं को सहायता प्रदान करने का आँक़ड़ा भी बेहद कम प्रतीत होता है।
अपने 10 जुलाई 2024 के आंतरिक पत्राचार में ये कहने के साथ-साथ की राज्य हमारे ऊपर OSC केंद्रों के लिये पैसा प्रदान करने का दबाव बना रहे है, मंत्रालय के भीतरी पत्राचार में एक सकारात्मक बात भी कही जा रहा थी की OSC स्कीम के तहत प्रदान किये गये फंड का अब थोड़ा अच्छी तरीके से उपयोग किया जाने लगा है। भीतरी पत्राचार में कहा जा रहा था की OSC स्कीम के फंड को सुचारू रूप से राज्यों तक पहुँचाने के लिये स्थापित किये गये ''नोडल अकाउंट के डेटा के अनुसार OSC केंद्रों की वार्षिक जरूरत के मुताबिक प्रदान किये जाने वाले पैसे में से प्रयोग ना हो सकने वाले पैसे का प्रतिशत अब 12.5% से नीचे आ गया है''।
लेकिन सच ये है की OSC स्कीम के फंड की प्रयोग की दर बढ़ जाने की बात कहने के साथ-साथ दिसंबर (2023) में संसद की स्थायी समिति के समक्ष मंत्रालय के द्वारा ये कहे जाने के बाद की राज्यों को OSC स्कीम का फंड प्रदान करने की व्यवस्था को दुरुस्त कर दिया गया है, दिसंबर (2023) के 6 महीने बाद, जुलाई (2024), तक मंत्रालय राज्यों को फंड प्रदान करने में आना-कानी करता रहा।
दिल्ली के OSC केंद्रों पर तैनात कर्मचारियों ने अपनी आप-बीती हम से साझा करते हुए हमें बताया की कैसे महीनों तक उनको अपना वेतन नहीं मिलता है। और कैसे कर्मचारियों को OSC केंद्र की जरूरतों को पूरा करने के लिये अपनी जेब से पैसा खर्च करना पड़ता है।
हम से बात करते हुए OSC केंद्र के एक कर्मचारी ने कहा की ''इन केंद्रों पर हमारी तैनाती पीड़ित व्यक्तियों की मदद करने के लिये की गई थी लेकिन अब हम ख़ुद पीड़ित व्यक्ति की श्रेणी में आ गये हैं''। कर्मचारी ने आगे कहा की ''समय पर वेतन मिलना तो हमारा अधिकार है तो हमें समय पर वेतन क्यों नहीं दिया जाता है? हम जैसे ठेके पर भर्ती हुये कच्ची नौकरी करने वाले कर्मचारियों को पुलिस आदि के अधिकारी ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते है''।
और OSC केंद्रों के कर्मचारियों के अतिरिक्त अंत में OSC स्कीम की इस संस्थानिक विफलता से सबसे ज्यादा नुकसान उन महिलाओं का हुआ जो संकट की घड़ी में दर-दर भटकते हुए सरकारी साहयता ढूंढ रहीं थी।
यह एक पुरुष प्रधान दुनिया है
भारत की संसद, जहाँ पर महिलाओं की सुरक्षा को पुख़्ता करने जैसे बड़े-बड़े दावें अक्सर किये जाते है, से दो घंटे की दूरी पर हरियाणा के मेवात क्षेत्र में गंभीर शांति से भरा जिला, नूँह, मौजूद है।
अगस्त के महीने में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की टीम ने नूँह स्थित बीबी* नाम की एक महिला के घर का दौरा किया। बीबी का घर एक गली में था जो रुके हुए पानी की वजह से जाम थी। हलाँकि बीबी के घर के आस-पास गली में काई से भरे पानी में मच्छरों की भरमार थी लेकिन वर्षों से इस बदहाली में भी लोगों का जीवन अपनी सामान्य गति से चलता रहा है। हमारी दिलचस्पी भी गली की बदहाली में कम और गली की एक निवासी, बीबी, में ज्यादा थी।
बीबी का पति दहेज की माँग को लेकर हमेशा से उसे पीटता और परेशान करता था। चार साल पहले बीबी के हालात और बिगड़ गये क्योंकि उसके पति ने उसे मिट्टी का तेल डालकर मारने की कोशिश की। वर्ष 2010 में जब से बीबी ने एक लड़की को जन्म दिया था उसके ऊपर की जाने वाली हिंसा का स्तर और ज्यादा बढ़ गया था। जब बीबी को उसके पति ने मारने की कोशिश की थी उससे पहले वो नूँह स्थित OSC केंद्र और एक महिला प्रधान थाने से सहयता माँगने पहुँची थी। लेकिन, बीबी ने हमें बताया की, उसकी किसी ने सहायता नहीं की।
बीबी ने कहा की ''उन्होंने मुझसे वादा किया था की वो मुआवज़े के लिए मुक़दमा दायर करने में मेरी मदद करेंगे लेकिन जब मैं जानकारी लेने के लिये कचहरी गई मुझे कुछ नहीं बताया गया। उन्होंने मुझसे झूठ बोला था''।
बीबी के द्वारा अपने पति की शिकायत दर्ज कराने के एक साल बाद उसने उसे जान से मारने की कोशिश की, यदि बीबी के द्वारा दर्ज शिकायत को तवज्जो देकर सही से कार्यवाही की गई होती तो उसके पति को समय रहते रोका जा सकता था। वर्तमान में एक निजी वकील की सहायता लेकर बीबी अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा करने का मुक़दमा लड़ रही हैं।
हमने नूँह में घरेलू हिंसा झेल रही और भी महिलाओं से बात की, अधिकांश महिलाओं ने हमें बताया की वो OSC केंद्र पर गई थी लेकिन अपने साथ दुर्व्यवहार करने वाले मर्द के ऊपर मुकदमा दर्ज कराने में OSC केंद्र से उनकों कोई मदद नहीं मिली। कुछ महिलाओं ने हमें बताया की OSC केंद्र पर उन्हें अपने हिंसाग्रस्त घर पर वापस लौट जाने के लिये उकसाया भी गया। हिंसा से प्रभावित इन महिलाओं में से किसी ने भी OSC केंद्र के बारे में तब तक नहीं सुना था जब तक इन केंद्रों के विषय में 'रेडियो मेवात' नाम के एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन ने जागरूकता फैलाना शुरू नहीं की थी। 'रेडियो मेवात' की स्थापना नूँह में वर्ष 2010 में की गई थी और तब से ये सामुदायिक रेडियो स्टेशन सामाजिक मुद्दों और सरकार की स्कीमों के बारे में जनता के बीच जागरूकता फैलाने का काम कर रहा है।
जिया* नूँह की ही एक स्थानीय निवासी है। जिया ने हमें बताया की ''क्योंकि नूँह के OSC केंद्र की स्थापना के समय से ही इसका प्रभारी एक मर्द है और परेशानी में पड़ी औरतें अपनी समस्या को मर्दों के सामने खुल कर नहीं बता पाती है''। जिया ने आगे जोड़ते हुए कहा की ''पुरुष प्रभारी का दृष्टिकोण हमेशा मर्दों वाला ही होता है, वो चाहते है की पीड़ित महिला को शोषण करने वाले के ऊपर मुक़दमा दायर करने की वजाए उससे समझौता कर लेना चाहिये''।
नूँह में हमने कम से कम दस लोगों का इंटरव्यू लिया और उन सबने OSC केंद्र का प्रभारी एक पुरुष के होने पर हैरानी व्यक्त की।
वर्ष 2017 की OSC स्कीम के दिशानिर्देशों के अनुसार ''OSC केंद्र का मुख्य प्रभारी आपेक्षित योग्यताओं को रखने वाली किसी महिला को होना चाहिये'' इसलिये नूँह जैसे OSC केंद्रों पर पुरूष को प्रभारी के रूप में तैनात किया जाना केंद्र सरकार के द्वारा बनाये नियमों का उल्लंघन है।
जब इस विषय पर हमने प्रभारी मोहम्मद अशफ़ाक अली से बात की तो अपना बचाव करते हुए उन्होंने कहा की ''केंद्र पर पीड़ित महिलाओं की मनोवैज्ञानिक या फिर सामाजिक रूप से काउंसलिंग करने के लिये एक महिला काउंसलर को नियुक्त किया गया है। और केंद्र पर महिला सिपाही की भी तैनाती की गई है''। हलाँकि OSC केंद्र के हमारे दौरे के दौरान केंद्र पर हमें कोई महिला सिपाही उपस्थित नहीं मिली।
OSC केंद्र प्रभारी ने अपना बचाव करते हुए आगे कहा की ''अब तक हमनें अपने केंद्र पर 1,205 महिलाओं को सहायता प्रदान की है और चूँकि कुछ पीड़ित महिलाओं की समस्या सिर्फ किसी घरेलू विवाद का हिस्सा होती है हम परिवारों के आपसी विवाद का निपटारा कराने में भी मदद करते हैं''।
पूरे हरियाणा में कुल 22 OSC केंद्र है और जून 2024 तक इन सभी केंद्रों ने कुल जमा 42,286 महिलाओं को सहायता प्रदान की है।
एक OSC केंद्र पर पीड़ित महिलाओं की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक परामर्श देने वाली काउंसलर, फरखुंदा खानम, ने हमें बताया की अधिकांश पीड़ित महिलाएं मुकदमा दर्ज कराना नहीं चाहती हैं बल्कि पीड़ित महिलाओं को ये उम्मीद रहती है की कोई उनके पतियों से बात करके उन्हें चेतावनी दे दे। खानम के अनुसार चूँकि अधिकांश पीड़िताएं वित्तीय रुप से किसी दूसरे के ऊपर निर्भर होती है इसलिये वो अपने वैवाहिक रिश्ते को तोड़ना नहीं चाहती हैं।
खानम ने निराशा व्यक्त करते हुये कहा की ''हम जितना हो पड़ता है पीड़िताओं की मदद करते है लेकिन हमारे पास किसी भी तरीके की आधिकारिक शक्ति ना होने के कारण हम पुलिस को आदेश नहीं दे सकते और ना ही अपराधियों को समन या नोटिस भेज कर नियत समय पर हाजिर होने के लिये बाध्य कर सकते है''।
हमारी पड़ताल बताती है की पुलिस की असंवेदनाशीलता को सिर्फ पीड़ित महिलाओं को ही नहीं बल्कि OSC केंद्रों के कर्मचारियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को एक समान रूप से झेलना पड़ता है।
अभी भी कुछ नहीं बदला है
30 वर्षीय पूजा* दक्षिणी दिल्ली हौज रानी क्षेत्र में अपने पति एवं 10 वर्षीय लड़के के साथ रहती हैं। उनका पति नियमित रूप से शराब पीकर उनकों मारता है।
पूजा ने बहुत बार अपने पति के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की लेकिन पुलिस के द्वारा उनकी शिकायत को दर्ज नहीं किया गया। पूजा ने कहती है की ''उन्होंने कहा है की बिना मैरिज सर्टिफिकेट के किसी भी प्रकार की शिकायत दर्ज नहीं की जा सकती''। पुलिस ने पूजा से कहा की ''अगर उसका पति उन दोनों की शादी के पंजीकरण के लिये मान जाता है तो वो फैमिली कोर्ट जाकर मुआवजे की अर्जी लगा सकती हैं''। पूजा ने कहा की ''पुलिस ने मुझे कभी OSC केंद्र या फिर किसी अन्य प्रकार की मदद के बारे में नहीं बताया जिसका मैं लाभ उठा सकती थी''।
अंत में ये हुआ की पूजा के पति ने उन दोनों की शादी का पंजीकरण कराने के ऊपर अपनी हामी नहीं भरी ओर वर्ष 2019 में उन दोनों को थोड़े समय के लिये समझाने-बुझाने के बाद पुलिस ने पूजा की फाइल बंद कर उससे ये कह दिया की अब वो फैमिली कोर्ट जाकर अपनी समस्या का समाधान खोजे।
पूजा कहती है की ''अब तो मैं हिम्मत हार गई हूँ। पति की तरफ से परेशान किये जाने पर जब भी मैं उससे कहती हूँ की मैं पुलिस को शिकायत कर दूँगी वो मेरे ऊपर हँसता है। उसको अब पुलिस का कोई डर नहीं है''।
हमनें जितनी भी पीड़ित महिलाओं से बात की वो सब भी पूजा की ही तरह थक-हार कर बैठी हैं। पीड़ित महिलाओं का कहना है की पुलिस और OSC केंद्रों की तरफ से सख़्त कारवाई नहीं किये जाने से अपराधी पुरुषों के हौसले और भी मजबूत हुये है।
दिल्ली हाईकोर्ट के मुक़दमे में अधिवक्ता प्रभसहाय कौर ने इस बात को रेखाँकित किया था की दिल्ली के OSC केंद्रों में पीड़ित महिलाओं के मामले की पुलिसिया कार्यवाही संपन्न कराने के लिये किसी व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जाता है। और कोर्ट के समक्ष कौर ने ये भी कहा था की OSC केंद्रों पर अपराधियों के खिलाफ ''अभियोग दर्ज करने की कार्यवाही भी नहीं की जाती है''।
प्रभसहाय कहती है की ''OSC केंद्रों को लेकर जनता के बीच जागरूकता नहीं है। पुलिस और अस्पताल ज्यादातर नाबालिग लड़कियों को OSC केंद्र भेज देते हैं। हालाँकि यौन हिंसा के शिकार नबालिक बच्चों (POSCO पीड़ित) को राहत पहुँचाना OSC स्कीम का मुख्य उद्देश्य था लेकिन कोई भी POSCO पीड़ित सीधी तौर पर OSC केंद्रों से संपर्क नहीं करता हैं''। कौर कहती है की ''पीड़ित लोग पुलिस के पास जाने से हिचकिचाते है, उन्हें पता होना चाहिए की उनकों पुलिस के पास जाने की कोई जरूरत नहीं है, वो सीधे OSC केंद्र जा सकते है''।
वर्ष 2021 में नीति आयोग के द्वारा किये गये अध्ययन में भी यहीं बात रेखांकित की गई थी की OSC केंद्रों को जनता के बीच प्रचारित करने के लिये अपेक्षित गतिविधियों की कमी के कारण ''मात्र 4% लोगों ही OSC केंद्रों के विषय में जागरूक हैं''। OSC स्कीम के बारे में दिल्ली में लोगों से सवाल पूछे जाने पर मात्र 0.8% लोग ही बता पाये की वो ऐसी भी किसी स्कीम की मौजूदगी से अवगत है।
नीति आयोग के द्वारा किये गये 2021 के इस अध्ययन के बाद से अब तक ज़मीनी हालातों में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
ऐसा नहीं है की OSC स्कीम के विषय में जागरूकता की कमी ही इस स्कीम की मात्र एक समस्या है। जागरूकता के अतिरिक्त जवाबदेही और पारदर्शिता के संदर्भ बिंदु से भी इस स्कीम में बहुत सी और भी समस्यायें व्याप्त हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर हिंसा की शिकार महिलाओं को सहायता प्रदान करने वाले गैर-सरकारी संगठन LLN (लाम-लिंती-चित्तारा निरालू) के द्वारा 5 राज्यों के संदर्भ में वर्ष 2019 में प्रकाशित रिपोर्ट सरकारी शेल्टरों में पारदर्शिता और शेल्टरों के क्रियान्वयन के विषय में जवाबदेही की कमी का प्रश्न उठाती है। LLN की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी शेल्टरों में LLN से सम्बद्ध शोधार्थियों को शेल्टर के कर्मचारियों के द्वारा 'बहुत प्रतिरोध' का सामना करना पड़ा और सरकारी शेल्टरों में गोपनीयता की कमी के चलते शेल्टर में रहने वाले ''पीड़ित व्यक्ति खुलकर बात तक नहीं कर सकते हैं''।
वर्ष 2019 में LLN ने अपनी रिपोर्ट में जो प्रश्न उठाये थे दो वर्ष बाद वही प्रश्न नीति आयोग ने अपने अध्ययन में OSC केंद्रों के क्रियान्वयन को लेकर उठाये। नीति आयोग ने भी LLN की तर्ज पर कहा की ''OSC स्कीम के तहत प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता और इन सुविधाओं में किस प्रकार के सुधारों की जरूरत है, इसका हिसाब लगाने के लिए कोई व्यवस्थित निगरानी तंत्र नहीं है'' इसलिये यह कह पाना कठिन है की कुल मिलाकर इस स्कीम की गुणवत्ता और इससे प्राप्त होने वाले लाभ वास्तव में कितने लाभकारी हैं।
यहाँ तक की आज भी OSC स्कीम से संबंधित विस्तृत विवरण को जनता की निगाह से छुपाकर रखा गया है। वर्तमान में देश में कार्यरत OSC केंद्रों की संख्या और इन केंद्रों में अब तक कितने पीड़ितों की मदद की गई, इसका आँक़ड़ा तो सार्वजनिक कर दिया गया है लेकिन इस विषय में कोई जानकारी नहीं है की OSC केंद्र पीड़ितों को किस प्रकार की और किस गुणवत्ता की सहायता प्रदान करते हैं।
कौर कहती हैं की ''वन स्टॉप सेंटरों की कार्यप्रणाली को समझ पाना बेहद कठिन है, दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिल्ली के OSC केंद्रों के ऊपर रिपोर्ट जमा करने के आदेश के बाद अब जाकर OSC केंद्रों का निरीक्षण करना संभव हो पाया है''।
जब हमनें दिल्ली स्थित OSC केंद्रों से संपर्क कर उनकें कर्मचारियों का इंटरव्यू करने का अनुरोध किया तो हमें साफ़-साफ़ मना कर दिया गया।
जब अगस्त के महीने में पूजा ने मदद मोहन मालवीय अस्पताल स्थित OSC केंद्र से संपर्क कर अपने पति की मार-पिटाई से निजात पाने की गुहार लगाई तो उससे कहा गया की वो अपना घर छोड़ कर पुलिस के पास चली जाये।
OSC केंद्र से लौटकर पूजा ने कहा की ''मैं पहले भी पुलिस के पास जा चुकी हूँ इसलिये मुझे पता है की पुलिस के पास जाने का कोई मतलब नहीं है''।
पूजा को OSC केंद्र का कोई भी कर्मचारी उसे पुलिस के पास लेकर नहीं गया। उससे कहा गया की अब उसका मामला कचहरी में चला जायेगा और अगले सोमवार को उसे अपने वकील से मिलने के लिये वापस आना चाहिये।
OSC स्कीम को बनाने का औचित्य यह था की सहायता प्रदान करने के एक तंत्र को विकसित किया जाये जिससे संकटग्रस्त महिलाओं के साथ खड़े होकर उनकी जरूरतों को समझते हुए उनकी मदद की जा सके। लेकिन अधिकाँश मामलों में पीड़ित महिलाएं पुलिसिया कार्यवाही या फिर मुक़दमेबाजी में नहीं फंसना चाहती है। पूजा भी इन्हीं महिलाओं में से एक है जो बस इतना चाहती है की कोई उसके पति को झड़प लगाने के लिये उसके साथ खड़ा हो जाये।
OSC केंद्र पर कभी ना जाने का मन बनाके पूजा कहती हैं की ''मेरे पास टाइम नहीं है। OSC सेंटर जाने का क्या मतलब अगर वो मेरी मदद ही नहीं कर सकते''।
*इस रिपोर्ट में किरदारों की पहचान छुपाने के लिए उनके असली नाम गुप्त रखे गए हैं।
इस खोजी सीरीज़ को प्रकाशित करने में अप्पन मेनन मेमोरियल अवार्ड से मिली आंशिक मदद का प्रयोग किया गया है।
हरियाणा सरकार की प्रतिक्रिया:
कलेक्टिव को 23 अक्टूबर 2024 को हरियाणा के महिला एवं बाल विकास विभाग से जवाब मिला। यह कहानी प्रकाशित होने के 19-20 दिन बाद था।
अपने जवाब में, राज्य सरकार ने कहा कि वन स्टॉप सेंटर कुशलतापूर्वक काम कर रहे थे और उनके कामकाज की निगरानी के लिए उचित जांच की गई थी।इसमें यह भी दावा किया गया कि नूंह में वन स्टॉप सेंटर प्रशासक का पद खाली था, लेकिन यह भी कहा गया कि एक पुरुष कानूनी परामर्शदाता केंद्र के प्रशासन की देखभाल कर रहा था।
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