इस स्टोरी को द रिपोर्टर्स कलेक्टिव कि दूसरे राउंड की फेलोशिप के अंतर्गत रिपोर्ट किया गया है।
गुजरात जहाँ शराब के सेवन पर पाबंदी है वहाँ मध्यप्रदेश के बॉर्डर से होते हुए चोरी-छुपे लाखों लीटर अवैध शराब की तस्करी की जाती है। एक तरफ़ इस तस्करी को, शराब का अधिक मात्रा में उत्पादन करने वाली भट्ठीयाँ और ठेकेदारों के गिरोह खुल्लम-खुल्ला तौर पर अंजाम देते हैं, वहीं दूसरी तरफ़ आबकारी विभाग और पुलिस के सहयोग और आदिवासियों की मदद से अवैध शराब को मध्यप्रदेश की सीमा से होते हुए गुजरात ले जाया जाता है।
मध्यप्रदेश से गुजरात को होने वाली शराब की इस तस्करी को समझने के दौरान रिपोर्टर्स कलेक्टिव की पड़ताल मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र पहुँची। पिछले तीन दशकों से मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र अपने पड़ोसी राज्य गुजरात की शराब की जरूरत को पूरा कर रहा है।
वर्ष 1960 में जब नवनिर्मित राज्य, गुजरात, ने शराब के ऊपर पाबंदी लगाई थी तब गुजरात के पड़ोसी राज्यों- महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश- में शराब की काला बाजारी बढ़ने से तस्करों के लिये सुअवसरों की बाढ़ आ गई। महाराष्ट्र और राजस्थान की तुलना में शराब की इस काला बाजारी में मध्यप्रदेश ने 1980 के दशक के आख़िरी सालों में शिरकत करना शुरू किया था लेकिन वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश और गुजरात में एक ही राजनीतिक पार्टी की सत्ता आने के बाद मध्यप्रदेश से गुजरात को होने वाली अवैध शराब की तस्करी ने रफ़्तार पकड़ ली।
समय के साथ शराब की तस्करी की ये पूरी अर्थव्यवस्था मालवा क्षेत्र की बनावट के अनुरूप ढलती हुई नज़र आती है। मध्यप्रदेश की 11 शराब भट्ठियों (डिस्टिलरीज) में से 4 भट्ठियाँ मालवा में स्थित हैं। ये 4 भट्ठियाँ मध्यप्रदेश में उत्पादित होने वाली कुल शराब में से 43% शराब का उत्पादन करती हैं। वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश की 4 बियर बनाने वाली भट्ठियों (ब्रुअरीज) में से 3 भट्टियाँ भी मालवा में ही मौजूद हैं।
मालवा के सीमावर्ती जिलों, झाबुआ और अलीराजपुर, में ऐसी शराब की दुकानों की भरमार हैं जिनकी गुजरात की सीमा से दूरी मात्र 500 मीटर से लेकर 15 किलोमीटर के बीच है। इस क्षेत्र में गरीब आदिवासी अवैध शराब को छिपाने के लिये अपनी ज़मीन किराये पर देते हैं और साथ ही अवैध गतिविधियों के संचालन के लिए इन आदिवासियों का भाड़े के सैनिक की तरह इस्तेमाल किया जाता है।
आबकारी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी पहचान को गुप्त रखने की शर्त पर हमें बताया कि, एक ओर जहाँ झाबुआ और अलीराजपुर अवैध शराब तस्करी का द्वार है वही धार, खरगोन, शाजापुर और इंदौर शराब तस्करी की सप्लाई चैन में रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं।
लेकिन मध्यप्रदेश स्थित शराब भट्ठियों में उत्पादित लाखों लीटर मदिरा को गुजरात की सड़कों तक पहुँचाने में एक बहुत बड़े संगठित तंत्र की आवश्यकता होती है। मध्यप्रदेश स्थित शराब निर्माताओं के गोदामों से लेकर शराब को गुजरात पहुँचाने वाले ट्रांसपोर्ट नेटवर्क तक हमनें हर एक चीज को परखा।
और इस प्रकार हमनें शराब की तस्करी, मदिरा व्यवसाय के परिचालन और इसके रहस्यों के साथ- साथ इस तस्करी को रोकने के लिये तैनात सरकारी संस्थाओं के द्वारा अनमने ढंग से काम करने की पूरी व्यवस्था की पड़ताल की।
कट्ठीवाड़ा, अनेक प्रवेश द्वारों में से एक
शराब तस्करी की इस पूरी व्यवस्था की पड़ताल करने के लिये कलेक्टिव की टीम ने कट्ठीवाड़ा नाम के एक कस्बाई इलाके का दौरा किया। कट्ठीवाड़ा गुजरात से सटा हुआ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले का एक कस्बा है जिसकी कुल आबादी में से 86% आबादी आदिवासियों की है।
अलीराजपुर और इससे सटे गुजरात की सीमा से छूते हुए एक अन्य जिले, झाबुआ, की तमाम तहसीलों (जिनकों तालुका भी बोला जाता है) में से कट्ठीवाड़ा भी एक तहसील है जो अलीराजपुर में आती है। मध्यप्रदेश से गुजरात में शराब की तस्करी करने के लिये कट्ठीवाड़ा को एक प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
कट्ठीवाड़ा में रात होते ही जब आम लोगों के लिए दिन खत्म हो जाता है एक 32 वर्षीय भील आदिवासी वाल सिंह भूरिया (बदला हुआ नाम) के लिए दिन की शुरूआत होती है।
मालवा क्षेत्र में सुसंगठित रूप से चलने वाले शराब के गोरखधंधे में शामिल तमाम एजेंटों में से भूरिया मात्र एक निचले दर्जे के एजेंट हैं। कक्षा आठ में फेल होने के बाद गरीबी की दुश्वारियों के कारण भूरिया शराब तस्करों के गैंग में शामिल हो गये और खूब पैसे कमाए।
कट्ठीवाड़ा के पहाड़ी जंगल अवैध रूप से शराब बेचने वालों को सुरक्षित महौल प्रदान करते हैं। जब रात घिर जाती है तब भूरिया और उनके सहयोगी एजेंट्स के साथ शराब के बाक्सों को, कट्ठीवाड़ा की एक इकलौती सरकारी शराब दुकान से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर स्थित गोदाम से स्कॉरपियों, बोलेरों, थारों, विंगरों, एंबूलेंसों और SUV गाड़ियों में भरना शुरू कर देते हैं जिन पर अक्सर गुजरात की नंबर प्लेट चस्पा होती है।
शराब तस्करी के लिए तस्कर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत बनी सड़को का इस्तेमाल करते हैं और साथ में कट्ठीवाड़ा और गुजरात को जोड़ने वाले गाँवों और जंगली रास्तों का इस्तेमाल किया जाता है। ये रास्ते कट्ठीवाड़ा को गुजरात के छोटा उदयपुर, दाहोद और गोधरा के शहर, पंचमहल से जोड़ते हैं। इन रास्तों पर जाती हुई अवैध शराब से लदी हुई गाड़ियाँ या तो मध्यप्रदेश के उन सीमावर्ती गाँवों, जैसे कंछाला, घुट, ढकपुरा, और चिमाटा, को जाती हैं जो गुजरात की देवगढ़ बारिया तहसील से जुड़ते है और या फ़िर ये गाड़ियाँ गुजरात के छोटा उदयपुर के पास स्थित बड़ा खेड़ा, केवड़ी या कोलयारी जैसे गाँवों की तरफ़ चली जाती हैं।
इन सीमावर्ती गाँवों में वाल सिंह आदिवासियों से किराये पर ली गई ज़मीन पर टीन के बने गोदामों में शराब को उतार देते हैं। भूरिया और उनके साथियों के जाने के बाद एंबूलेंसों को मिलाकर बना 40 से 50 गाड़ियों का एक काफ़िला मौके पर पहुँचता है और शराब के डिब्बों को PMGSY के अंतर्गत बनी सड़कों से होते हुए गुजरात में तस्करी कर के ले जाता है।
45 वर्षीय पारसिंह भारिया जो कट्ठीवाड़ा तहसील के चार बार के सरपंच रह चुके हैं मध्यप्रदेश को गुजरात से अलग करने वाले कंछाला गाँव की सीमा पर खड़े होकर कहते हैं कि: ''शराब के गोरखधंधे में शामिल लोग आदिवासियों के परिवारों को या तो महीने का ₹10,000 से ₹15,000 रुपये देते है या फिर आदिवासियों के खेतों या उनकी ख़ाली जगहों को गोदाम की तरफ यूज करने की एवज में उनकों शराब के हर एक डिब्बे पर ₹10 से ₹15 रुपये दे दिया जाता है। ये तस्करों के साथ-साथ आदिवासियों के लिए भी फायदे का सौदा होता है।''
कट्ठीवाड़ा स्थित शराब की दुकान से कंछाला गाँव और फ़िर गुजरात के दाहोद को जोड़ते हुये रास्ते पर से हर रोज गुज़रने वाली शराब की गाँड़ियों के काफिले से गाँव वाले बहुत अच्छे से वाक़िफ़ हैं।
दिसंबर 24, 2023 को जब सरकारी शराब की दुकानों के गोदामों में होने वाली गतिविधियों का वीडियो वायरल हो गया था तो इस पूरे विषय पर क्षेत्रीय स्तर पर खूब बवाल भी हुआ था। एक मिनट लंबे इस वीडियो में गुजरात के नंबर प्लेट वाली 30 से अधिक कारों और SUVs को चकताला गाँव की शराब की दुकान के गोदाम के भीतर शराब लोड करते हुये देखा जा सकता था। सूचना ये थी की ये गाड़ियाँ अवैध शराब को बॉर्डर के उस पार गुजरात में ट्रांसपोर्ट कर रही थी। जिला अलीराजपुर का चकताला गाँव गुजरात बॉर्डर से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
मध्यप्रदेश में कुल 3,601 कंपोजिट शराब की दुकानें (जहाँ दोनों, देशी और भारत में बनी विदेशी ब्रांड की शराब को बेचा जाता है) हैं जिनका मालिकाना हक़ लॉटरी, ई-टेंडर या फ़िर पंजीकृत दुकान के रिन्यूवल के आधार पर वितरित किया जाता है। इस साल आबकारी विभाग ने कट्ठीवाड़ा की शराब की दुकान की नीलामी पिछले वर्ष से 15% अधिक मूल्य अर्थात् ₹5.45 करोड़ में की थी। वहीं 3200 से कम निवासियों वाले चकताला गाँव की शराब की दुकान को ₹4.96 करोड़ में नीलाम किया गया है।
सिर्फ़ कठ्ठीबाड़ा और चकताला में ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के आबकारी विभाग ने 'वन कांट्रेक्टर-वन डिस्ट्रिक्ट' योजना के अंतर्गत जिला अलीराजपुर की सभी 19 शराब की दुकानों का कॉन्ट्रैक्ट इंदौर स्थित खालसा एंड कंपनी को ₹97.35 करोड़ में दे दिया है।
क्षेत्र में आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिये काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, विभूति झा, कहते हैं कि, ''मध्यप्रदेश-गुजरात बॉर्डर पर स्थित सभी शराब की दुकानें इसलिए महंगी हैं (नीलामी में लगी बोली के अनुसार) क्योंकि इन दुकानों से शराब की तस्करी करना आसान है।''
जोबट, जिला अलीराजपुर में पड़ने वाला मध्यप्रदेश विधानसभा का एक निर्वाचन क्षेत्र है। जोबट के कांग्रेस पार्टी से आने वाली MLA, सेना पटेल कहती हैं कि, ''कस्बों की दूसरी दुकानों की तुलना में गाँवों (गुजरात की सीमा से सटे हुए) की शराब की दुकानें कही ज्यादा महंगी हैं।'' पटेल आगे कहती हैं कि, ''गुजरात से सटे हुए आदिवासियों के एक छोटे से कस्बे, उदयगढ़, की शराब की दुकान को ही देख लीजिये जिसकी इस साल ₹13.77 करोड़ रुपये में नीलामी की गई थी, वहीं अलीराजपुर के शहरी इलाके की दो दुकानों को ₹8.41 करोड़ और ₹1.24 करोड़ में नीलाम किया गया है।''
इसी प्रकार कट्ठीवाड़ा के पड़ोसी चाँदपुर गाँव की शराब की दुकान को ₹10.50 करोड़ रुपये में नीलाम किया गया था।
गुजरात के दाहोद ज़िले के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस, राजदीप सिंह एन झाला, कहते हैं कि, ''गुजरात में शराब अधिकाँशतः मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों से पहुँचायी जाती है, वहीं हरियाणा, पंजाब, राजस्थान या इंदौर से शराब की तस्करी के लिये राज्यीय या राष्ट्रीय राज्य मार्गों का इस्तेमाल किया जाता है।''
जिला अलीराजपुर की पुलिस का कहना है कि वो लगातार अवैध शराब की तलाश में रहती है। डिस्ट्रिक्ट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस राजेश व्यास ने द कलेक्टिव को बताया कि, ''हमनें खेतों से, गोदामों से, गाँवों और राज्यों के बीच बनी चेक पोस्टों से प्राप्त अवैध शराब को ज़ब्त किया है।''
व्यास ने बताया कि जनवरी 1, 2023 से दिसंबर 2023 तक पुलिस ने एक्साइज एक्ट 1915 के अंतर्गत 2,192 प्राथमिकियाँ (FIR) दर्ज की थीं और 75,080 लीटर भारत में निर्मित विदेशी शराब के साथ-साथ ₹20.08 करोड़ की देशी शराब को भी जब्त किया था। इसके अतिरिक्त जनवरी 2024 से सितंबर 2024 तक पुलिस ने 1,396 मामलों में ₹2.89 करोड़ की 90,000 लीटर शराब को जब्त किया है।
आबकारी विभाग के एक सूत्र ने बताया कि, ''शराब की दुकान तो एक बहाना है, शराब की दुकान से जितना मुनाफा वो कमाते हैं उससे दस गुना मुनाफा तो वो शराब और बियर की गुजरात में तस्करी कर के कमा लेते हैं।''
शराब पिए गुजरात, इल्ज़ाम मध्यप्रदेश पर
मध्यप्रदेश के शराब की बिक्री का आकड़ा एक बेहद रोचक विरोधाभास को दर्शाता है: गुजरात से सीमा से जुड़े जिले, अलीराजपुर और झाबुआ, अन्य पिछड़े जिलों की तुलना में अधिक शराब, खासकर महंगी विदेशी ब्रांड्स की शराब, का सेवन करते हुए प्रतीत होते हैं।
अलीराजपुर और झाबुआ की कुल आबादी का 85% भाग ऐसे आदिवासियों का है जिनमें से लगभग 70% आदिवासी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करते हैं। और मध्यप्रदेश के आबकारी विभाग के अनुमान के अनुसार इन दो जिलों में वर्तमान वित्तीय वर्ष में शराब की दुकानों की नीलामी से पिछले वर्ष की तुलना में 15% अधिक अर्थात् 338 करोड़ रुपये के राजस्व का उत्पादन होगा। यह उतनी राशि है जितनी राशि सरकार उम्मीद करती है की शराब के ठेकेदारों शराब की बिक्री से कमायेगे और इस राशि का अनुमान क्षेत्र विशेष में पिछले वर्ष की शराब बिक्री के साथ-साथ क्षेत्र की शराब सेवन की क्षमता को देखते हुये लगाया जाता है।
अलीराजपुर और झाबुआ में शराब की बिक्री की बढ़ती हुई रफ्तार कई सवाल पैदा करती है।
झाबुआ और अलीराजपुर के सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन में बच्चे के जन्म से लेकर शादीयों, धार्मिक कर्मकांड और अंतिम संस्कार तक महुआ निर्मित शराब या ताड़ी का विशेष महत्व है ना कि रम, व्हिस्की या बियर का। इसका अर्थ कही ना कही ये है कि इन जिलों में शराब की बिक्री के बढ़ने का कारण इन जिलों के भीतर ना होकर इन जिलों से बाहर स्थित है।
47 वर्षीय मथीयास भूरिया झाबुआ की राणापुर तहसील से आने वाले एक आदिवासी नेता हैं। अपने क्षेत्र में गैर कानूनी रूप से होने वाली शराब की तस्करी पर रोक लगाने के लिये मथीयास ने इंदौर हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है। मथीयास कहते हैं कि, ''रोजगार की तलाश में जो नौजवान दूसरे शहरों को जाते हैं उनकों बियर पीने का चस्का लग जाता है लेकिन इस बात की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है कि आदिवासी लोग जानी वाकर, रेड लेबल, ब्लैक डॉग, ग्लेनफ़िडिच या करोड़ो रुपये वाली कोई और शराब पीना शुरू कर दें।''
मथीयास प्रश्न करते हैं कि, ''अगर आदिवासी ख़ुद इतने ही ज्यादा संपन्न हैं कि वो विदेशी शराब पी सकते हैं तो वो अपने परिवार के साथ मजदूर के तौर पर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए पलायन ही क्यों करते हैं? अगर जिले में इतनी ही अमीरी है तो जिले की 70% जनता गरीबी रेखा से नीचे रहते हुए हर महीने मिलने वाले सरकारी गल्ले पर निर्भर क्यों है?''
मथीयास ने राणापुर (झाबुआ) से कांग्रेस के ब्लॉक प्रेसीडेंट रहते हुए जून 24, 2024 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिये जिम्मेदार सरकारी संस्थाओं पर शराब माफिया के साथ मिले होने का आरोप लगाया था। और साथ में अगस्त 5, 2024 को मथीयास ने शराब माफिया के विरोध में मार्च भी निकाला था।
ये सभी गतिविधियाँ करने के कुछ समय के ही बाद मथीयास को काँग्रेस पार्टी के पद से हटा दिया गया। और काँग्रेस के पद से हटाये जाने के एक महीने बाद झाबुआ के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ने मथीयास के ऊपर तमाम लंबित मामलों के साथ-साथ उनके ऊपर विभिन्न आपराधिक गतिविधियों, जैसे किसी पर हमला करने, वसूली करने, एक्साइज अधिनियम का उल्लंघन करने आदि का हवाला देते हुए उन्हें झाबुआ से जिला बदल कर दिया।
झाबुआ, दो ब्लाकों की कहानी
अलीराजपुर की ही तरह झाबुआ का एक बड़ा हिस्सा गुजरात से लगता है। झाबुआ की कुल आबादी में 87% जनसंख्या आदिवासियों की है। अनुमान है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में झाबुआ में शराब की बिक्री से ₹238 करोड़ का राजस्व जमा होगा। अपनी छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा झाबुआ मध्यप्रदेश का सबसे पिछड़ा जिला है।
हमारी पड़ताल दिखाती है कि झाबुआ की राणापुर और पिटोल तहसील को दाहोद तक शराब की तस्करी करने के लिये प्रवेश द्वार के रूप में प्रयोग किया जाता है।
पिटोल के इंटर-स्टेट बॉर्डर की चेक पोस्ट से कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित कलखूँट पंचायत के 45 वर्षीय सरपंच खुन सिंह गोंडिया ने बताया कि, “त्योहार के समय या फिर शादियों के मौसम में एक दिन में पिटोल बॉर्डर चेक पोस्ट से 100 से 200 ट्रक गुजरते हैं।''
मई 2024 में झाबुआ पुलिस ने पिटोल के इंटर-स्टेट चेक प्वाइंट पर फर्जी परमिट स्लिप दिखाकर गुजरात में घुसने की कोशिश करते हुए 15 करोड़ की शराब से लदे नौ ट्रकों को सीज किया था। इनमें से अधिकाँश ट्रकों के रजिस्ट्रेशन नंबर ग्वालियर या फिर उत्तर प्रदेश के थे। पुलिस और आबकारी विभाग ने ट्रकों के ड्राइवरों के खिलाफ FIR दर्ज की थी और उनके वाहनों को सीज किया था।
काँग्रेस के झाबुआ से MLA विक्रांत भूरिया पूछते है कि, ''आख़िर पुलिस ने गाड़ियों के ड्राइवरों के ऊपर FIR दर्ज क्यों की, शराब के ठेकेदारों या शराब की भट्टियों के खिलाफ FIR दर्ज क्यों नहीं की गई, शराब के ट्रकों को पकड़े हुए अब तक पाँच महीना बीत चुका है लेकिन अभी तक कोई कारवाई शुरू नहीं की गई है।''
विक्रांत पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि जिले में या राज्य के बाहर होने वाली शराब की भयंकर तस्करी की बहुत सी शिकायतों पर पुलिस/आबकारी विभाग गौर नहीं फरमाता है। विक्रांत कहते हैं कि, ''अब तो मैंने शिकायत करना भी बंद कर दिया है।''
राष्ट्रीय राजमार्ग 59 के उपरोक्त लिखित पिटोल स्थित इंटर-स्टेट चेक प्वाइंट पर गुजरात, हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश की नंबर प्लेट वाली सैकड़ो SUVs और ट्रकों को खड़े देखा जा सकता है।
पिटोल चेक पोस्ट पर तैनात गुजरात के दाहोद शहर के सिपाही मिठ्ठू सिंह डामोर ने कहा कि, ''इन सभी गाड़ियों को गुजरात तक शराब की तस्करी करने के चलते सीज किया गया है। खासतौर पर देर रात या जल्दी सुबह के समय जब सिक्योरिटी कम होती है इस चेक-पोस्ट से शराब से लदे चार पहिया वाहन या ट्रक गुजरते हैं लेकिन हम सिर्फ़ उन गाड़ियों को पकड़ते है जिन पर हमें या तो शक होता है या फ़िर जिनके बारे में हमें पहले से कोई तस्करी की जानकारी मिली होती है।''
दाहोद के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस राजदीपसिंह एन. झाला कहते हैं कि, ''शराब से भरे ज्यादातर ट्रक हरियाणा या पंजाब की ओर से आते हैं, इनमे से अधिकाँश ट्रक हाईवे से होकर गुजरते हैं और पकड़ लिये जाते है। क्योंकि हम सचेत हैं, अवैध शराब का गुजरात में प्रवेश रोकने के लिये बनाई गई राज्य की मॉनीटरिंग सेल ने पिछले 15 महीनों में सिर्फ़ दो ट्रको को पकड़ा है।''
अवैध शराब की तस्करी रोकने के लिये गुजरात पुलिस द्वारा किये गये प्रयासों को रेखाँकित करते हुये झाला ने कहा कि इस साल सितंबर में दाहोद पुलिस की क्राइम ब्रांच ने गुजरात में शराब की तस्करी करने के तीन मामलों में वांटेड मध्यप्रदेश के शराब ठेकेदार, रमेशचंद्र राय को धर दबोचा था।
राय उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के रहने वाले हैं जो मध्यप्रदेश में ठेकेदार के रूप में सूचीबद्ध होने के साथ-साथ शराब गिरोह का मुख्य सदस्य है। अपनी गिरफ्तारी के मात्र तीन दिन के भीतर राय बेल लेने में कामयाब हो गया था और इंदौर लौट आया था।
हालाँकि समय-समय पर इस तरीके की गिरफ्तारियाँ होती रहती है जिनमें सामान्य तौर पर छोटे स्तर पर काम करने वाले ड्राइवरों या एजेंटों को गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन सितंबर 2022 में हुई एक गिरफ्तारी से तस्करों और शराब के ठेकेदारों के बीच के गठ-जोड़ का पर्दाफाश हो गया था।
ये घटना तब घटित हुई थी जब अलीराजपुर बॉर्डर से नजदीक स्थित जिला बड़वानी से अलीराजपुर को शराब ट्रांसपोर्ट करते हुए टैंकरों को रोकने पर तस्करों ने धार जिले के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM) IAS नवजीवन परिहार और उनके सहायक के ऊपर हमला कर दिया था। इतना ही नहीं तस्करों ने अफ़सरों को मौके से अगवा करने की भी कोशिश की थी जिससे ये पूरा मामला जनता के बीच कुछ ज्यादा ही प्रकाश में आ गया था जिसे सिर्फ़ ट्रक ड्राइवरों को गिरफ्तार करके दबाया नहीं जा सकता था।
इस मामले में शराब गिरोह के इंदौर के एक बड़े ठेकेदार रिंकू भाटिया उर्फ मंजीत सिंह को मिलाकर 19 लोगों के ऊपर पुलिस ने आपराधिक मामला दर्ज किया था। जब्त की गई शराब और वाहनों का संबंध भाटिया से था इसलिए उसके गोदामों पर छापा मारकर उसको गिरफ्तार कर लिया गया था। हालाँकि बाद में भाटिया को दो महीने के भीतर बेल मिल गई थी।
शराब की तस्करी करने वाले समूह के नामी लोगों को सज़ा होना बेहद दुर्लभ रहा है। इस प्रकार की घटना आख़िरी बार 2011 में घटी थी जब जगदीश अरोड़ा और अजय कुमार अरोड़ा की स्वामित्व वाली सोम डिस्टलरीज से शराब को ले जा रहे ट्रकों को झाबुआ पुलिस ने रास्ते में रोक लिया था। सोम डिस्टलरीज नाम की ये शराब भठ्ठी भोपाल के बाहरी क्षेत्र में स्थित है और प्रति वर्ष 1,800 लाख लीटर शराब का उत्पादन करती है। आबकारी विभाग के सूत्रों और इस केस से संबंधित कचहरी में मौजूद कागजातों के अनुसार शराब की ये भठ्ठी मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ तक शराब तस्करी के नेटवर्क से जुड़ी हुई है।
जगदीश और अजय अरोड़ा के ऊपर 2012 में मामला दर्ज होने के साथ-साथ अरोड़ा बंधुओं को गिरफ्तार भी किया गया था। हालाँकि 2015 में हाई कोर्ट के आदेश के आधार पर अरोड़ा बंधुओं के नाम FIR से हटा दिये गये थे। लगभग 12 सालों के लंबी कानूनी लड़ाई के बाद इंदौर स्थित एक कोर्ट ने दिसंबर 2023 में आबकारी विभाग के पाँच अधिकारियों और सोम डिस्टलरीज़ के मैनेजरों को मिलाकर कुल 13 लोगों को अपराधी करार दिया था। कोर्ट के अनुसार ये लोग फर्जी परमिट के आधार पर शराब को अवैध रूप से गुजरात ट्रांसपोर्ट करने के अपराध में शामिल थे।
अपने आदेश में कोर्ट ने शराब तस्करी की प्रक्रिया को अमली जामा पहनाने में आबकारी विभाग की मिलीभगत को भी रेखाँकित किया था।
इस विषय पर जानकारी रखने वाले कानून के जानकार, राजेंद्र गुप्ता कहते हैं कि, ''यही कारण है कि पुलिस अक्सर शराब भरे ट्रकों के ड्राइवरों को पकड़ती है ना कि शराब के मालिकों या ठेकेदारों को।''
मॉडस ऑपरेंडी
उपरोक्त लिखित मामले ने पहली बार बहुत ही दुर्लभ तौर पर शराब के व्यापार में शामिल शराब की भट्टियों, शराब के ठेकेदारों, तस्करों, आबकारी विभाग और पुलिस की आपसी मिलीभगत पर प्रकाश डाला था। बाद में हमारी छानबीन और आबकारी विभाग के वर्तमान में कार्यरत और रिटायर हो चुके दोनों प्रकार के अधिकारियों, शराब के तस्करों, शराब व्यापार संगठन के सदस्यों और क्षेत्रीय एक्टिविस्टों से हुई बातचीत ने इस बात को उजागर किया की शराब उत्पादन से लेकर इसकी बिक्री तक का पूरा तंत्र तमाम ख़मियों से भरा पड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन ख़ामियों के कारण ही शराब की तस्करी का पूरा गोरखधंधा फलता-फूलता है।
शराब के व्यापार के चार मुख्य आधार हैं- शराब उत्पादन की भट्ठी, शराब को बोतलों में भरने का स्थान (बाटिलिंग यूनिट), गोदाम और फुटकर में शराब बेचने वाली दुकानें। जहाँ सरकार आबकारी नीतियाँ बनाती है वहीं पुलिस की सहायता से इन नीतियों को लागू करने का काम आबकारी विभाग का होता है। देशी शराब और बियर के उत्पादन की भठ्ठी, बाटिलिंग यूनिट और गोदामों का मालिकाना हक़ निजी लोगों के हाथों में होता है वहीं भारत में बनी विदेशी शराब के गोदामों का प्रबंधन आबकारी विभाग ख़ुद अपने आप करता है। इस पूरे तंत्र को बेहद समझ-बूझ के साथ विकसित किया गया है लेकिन इस तंत्र में भी सेंध लगाई जा सकती है।
मध्यप्रदेश की 11 शराब भट्ठीयाँ (डिस्टिलरीज) और चार बियर के कारखानें (ब्रुअरीज) जो वार्षिक रूप से 6,365 लाख लीटर शराब या फ़िर बियर का निर्माण करते हैं इस तंत्र के केंद्र में हैं। वार्षिक रूप से उत्पादित होने वाली इस शराब का लगभग आधा हिस्सा मालवा के धार और खरगोन में उत्पादित होता है।
एक समय परमारों, तुगलकों, मुगलों और मराठाओं के द्वारा चलाये जाने वाले प्रशासन का केंद्र बिंदु रहा धार अब अवैध शराब के कारोबार का मुख्य अड्डा है। धार की सामरिक एवं भौगोलिक स्थिति, सड़कों की इस जिले तक बेहतरीन पहुँच और इंदौर के साथ-साथ इसकी गुजरात से नजदीकी इस जिले को शराब के अंडरग्राउंड कारोबार का केंद्र बनाती है।
शराब उत्पादन की प्रक्रिया पर निगरानी रखने के साथ-साथ शराब की गुणवत्ता की जाँच और उत्पादित शराब के प्रत्येक बैच के रिकॉर्ड का हिसाब रखना शराब की भट्ठीयों पर तैनात आबकारी विभाग के अधिकारी के काम हैं। ये अधिकारी विभिन्न प्रकार की शराबों को बाटिलिंग यूनिट तक भेजने के रास्ते और समयसीमा को दर्शाता हुआ परमिट इशू करते हैं। जिन शराब की भट्ठीयों से शराब बाटिलिंग यूनिटों या गोदामों तक जाती है अधिकाँशतः उन यूनिटों या गोदामों के मालिक शराब के व्यापार में वर्चस्व रखने वाले ठेकेदार या ख़ुद शराब भट्ठी के मालिक होते हैं।
एक बार जब शराब को बोतलों में भर दिया जाता है तो ये बोतले गोदाम में भेज दी जाती हैं। इन गोदामों पर तैनात सरकारी अधिकारी का काम ये होता है कि वो सभी आने-जाने वाली चीजों के ऊपर नज़र रखे और प्रत्येक चढ़ाई-उतराई की समय सीमा निर्धारित करने के लिये परमिट इशू करे। एक बार जब गोदाम में शराब की बोतले रख दी जाती हैं तब फुटकर में शराब बेचने वाले दुकानदार या ठेकेदार अपने लाइसेंस और भुगतान की रसीद के साथ गोदाम पहुँचते हैं और वहाँ से माल को उठाते हैं। लेकिन किसी भी धाँधली से बचाव करने के लिये बनाई गई ये व्यवस्था ही वो बिंदु है जहाँ असल गड़बड़ी की जाती है।
जैसा कि सोम डिस्टलरीज़ वाले मामले से पता चलता है कि शराब की भट्ठी पर ही शराब तस्करी का पूरा क्रम शुरू हो जाता है। अक्सर होता ये है कि शराब भट्ठी पर तैनात आबकारी विभाग के अधिकारी को शराब उत्पादक घूस खिलाकर जितनी मात्रा में शराब बनाने की अनुमति है उससे ज्यादा मात्रा में शराब का उत्पादन कर लेते हैं। शराब ढोने के अनुमति पत्र की कई कॉपिया बना ली जाती हैं जिन्हें एक समान नंबर प्लेट वाले ट्रकों पर चस्पा कर दिया जाता है। इसके बाद इनमें से अवैध शराब से लदे कुछ ट्रकों को शराब की फुटकर दुकानों की तरफ़ भेज दिया जाता है और बाकी के ट्रक बॉर्डर पार करके गुजरात जैसे राज्यों को चले जाते हैं।
इसी प्रकार के छलबल का प्रयोग शराब की बाटलिंग यूनिटों और गोदामों में भी किया जाता है। आबकारी विभाग के अधिकारी की मिलीभगत के चलते शराब का ठेकेदार शराब के ट्रांसपोर्ट के परमिट की कई कॉपियाँ बना लेता है। इसके बाद इन कॉपियों को लेकर कई ट्रक बहुत सारी दिशाओं की ओर चल निकलते हैं। अगर किसी भी ट्रक को रास्ते में रोका जाता है तो ट्रक ड्राइवर वैध परमिट की फ़र्जी प्रतिलिपि दिखाकर निगरानी के लिये नियुक्त कर्मचारी को ऐसा प्रतीत कराता है कि मानो वो अपने ट्रक में वैध शराब को ले जा रहा है और इस प्रकार शराब की तस्करी को अंजाम दे दिया जाता है।
झाबुआ और अलीराजपुर जैसे गुजरात से सटे हुए जिलों में फुटकर में शराब बेचने वाली दुकानों के मालिक आबकारी अधिकारियों को अपने शराब भरे ट्रकों के लिए ज्यादा समयावधि का ट्रांसपोर्टेशन परमिट प्राप्त करने के लिए घूस खिलाते हैं। उदाहरण के तौर पर इंदौर से झाबुआ तक की दूरी 147 किलोमीटर है और शराब को 3 घंटे में इंदौर से झाबुआ ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है तो अधिकारी इसी ट्रांसपोर्टेशन के लिये आठ घंटे का परमिट इशू कर देता है जिसका उपयोग करके शराब तस्कर एक आज्ञा प्राप्त ट्रांसपोर्टेशन के अतिरिक्त अधिकारी द्वारा इशू किये गये परमिट को बार-बार दिखाकर इंदौर से झाबुआ तक अवैध शराब की सप्लाई के लिए ट्रकों के कई चक्कर लगवा देता है।
कुछ अनुमानों के अनुसार अवैध रूप से की गई शराब की इस तस्करी से प्रतिवर्ष राज्य को ₹1,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
शराब निर्माताओं की एक एसोसियेशन, मध्यप्रदेश देशी विदेशी मदिरा व्यवसायी एसोसियेशन, ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री, प्रिंसिपल सेक्रेटरी और आबकारी मंत्री को कई पत्र लिखकर इस बात की सूचना दी कि झाबुआ और अलीराजपुर की शराब और बियर की भट्ठीयों से गुजरात को अवैध शराब और बियर की तस्करी की जाती है जिससे प्रति वर्ष सरकारी खजाने को ₹1,000 करोड़ का चूना लगता है।
सितंबर 2020 में मुख्यमंत्री और चीफ सेक्रेटरी को भेजे गये एक पत्र के माध्यम से इस एसोसिएशन ने सरकार को सूचित किया था कि राज्य की कुछ शराब एवं बियर की भट्ठीयों और बाटिलिंग यूनिटों को छोड़कर सभी भट्ठीयों एवं यूनिटों से शराब को बिना टैक्स चुकाए बाहर भेजा जाता है और संस्थाओं की मदद से शराब की गुजरात तक तस्करी की जाती है।
इस पत्र में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया था कि जिन जिलों में शराब के ये प्लांट या फैक्ट्रियाँ मौजूद हैं उन जिलों की शराब की दुकानों के मालिक अधिकाँशतः शराब फैक्ट्रियों या बाटिलिंग यूनिटों के ही लोग हैं। ये लोग शराब या बियर को फैक्ट्री से सीधे दुकान तक बिना टैक्स भरे सप्लाई करते हैं और साथ में शराब की गुजरात तक तस्करी भी करते हैं।
देशी विदेशी मदिरा व्यवसाय एसोसिएशन के एक मुख्य सदस्य, जगजीत सिंह भाटिया, वर्ष 1984 से ही शराब के व्यापार से जुड़े हुए हैं। भाटिया कहते हैं कि, ''घोर भ्रष्टाचार, राजनीतिक भागीदारी, तस्करी और नियमों में हेर-फेर ने शराब के परंपरागत व्यापारियों को कारोबार से बाहर का रास्ता दिखा दिया है क्योंकि वो 60% ठेकेदार जो अवैध तरीकों से अपनी शराब की बिक्री बढ़ाने का रास्ता नहीं चुनते हैं उनकों नुकसान उठाना पड़ता है।''
जगजीत आगे कहते हैं कि, ''अगर गुजरात शराब के ऊपर से पाबंदी हटा ले तो मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में शराब से आने वाले राजस्व में 50% की कमी आ जायेगी।''
जनवरी 2022 की टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के बावजूद 2021 में गुजरात पुलिस प्रति मिनट भारत में बनी विदेशी शराब (IMFL) की 11 बोतलों को सीज कर रही थी। वर्ष 2020 में गुजरात में प्रोहिबिशन एक्ट के अंतर्गत 1.53 लाख मामले दायर किये गये थे और 2021 आते-आते इन मामलों की संख्या बढ़कर 1.69 लाख पहुँच गई थी।
वर्ष 2024 में 16 मार्च को चुनाव आयोग के द्वारा आदर्श आचार संहिता लगाये जाने के बाद पुलिस ने बहुत तेज़ी से शराब को सीज करना शुरू कर दिया था। 13 अप्रैल, 2024 आते-आते संस्थाओं द्वारा 21.9 करोड़ रुपये की 7,60,062 लीटर शराब को जब्त किया गया था, ये उस समय मात्रा के लिहाज से देश में कुर्क की गई शराब की 11वें नंबर की सबसे बड़ी कुरक़ी थी।
जिस तरीके से शराब के गिरोह मध्यप्रदेश में सक्रिय हैं ठीक वैसे ही गिरोह गुजरात के सीमावर्ती जिलों जैसे दाहोद, छोटा उदयपुर या पंचमहल के गोधरा में पाये जाते हैं। एक बार जब शराब से भरा ट्रक मध्यप्रदेश की सीमा पार करके गुजरात में घुस जाता है तब गुजरात के शराब के गिरोह मोर्चा संभाल लेते हैं और शराब के ट्रांसपोर्टेशन के अलावा इसका वितरण सुनिश्चित करते हैं।
शराब नीतियों का उलटफेर
शराब की इस तस्करी को बढ़ावा देने का संबंध मध्यप्रदेश की उन शराब नीतियों से भी हैं जो बदलती हुई राजनीतिक सत्ता और सत्ता के एजेंडे के साथ बदलती रही हैं। पिछले कुछ सालों में मध्यप्रदेश की शराब नीति का चक्का एकाधिकार स्थापित करने वाले वन डिस्ट्रिक्ट-वन कान्ट्रेक्टर और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने वाले वन शॉप-वन कान्ट्रेक्टर नीति के बीच घूमता रहा है।
मध्यप्रदेश में शराब की संगठित तस्करी की शुरुआत वन डिस्ट्रिक्ट-वन कॉन्ट्रैक्टर नीति से हुई थी। शराब के उत्पादन पर सरकारी पकड़ को मजबूत करने के लिये ये नीति 2002-03 तक लागू थी। इस नीति ने पूरे जिले के व्यापार को सिर्फ़ एक ठेकेदार को प्रदान करते हुए आपसी प्रतिस्पर्धा को ख़त्म करके शराब के बड़े व्यापारियों को फायदा पहुँचाया था।
लगभग दो दशक तक इंदौर में तैनात रहे रिटायर्ड आबकारी अधिकारी एल.ए. खान. सूरी याद करते हैं कि एक दशक के काँग्रेसी राज के बाद जब दिसंबर 2003 में बीजेपी को मध्यप्रदेश की सत्ता हासिल हुई तो मुख्यमंत्री उमा भारती ने शराब की लॉबी की तरफ़ से काँग्रेस को मिलने वाली सहायता पर दबिश देने के उद्देश्य से 2003 में पुरानी नीति को ध्वस्त करके नई वन कांट्रेक्टर-वन शॉप नीति की शुरूआत कर दी। लेकिन बाद में, जैसे खराब फलों को फल विक्रेता नए पैकेट में करीने से सजाता है, राजस्व को बढ़ाने के लिये नये मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वन कांट्रेक्टर-वन शॉप नीति में नवंबर 2006-07 में कई बदलाव किये और शराब ब्रिकी की समस्या से जूझ रहीं दुकानों को सहारा प्रदान करने वाली ग्रुप डिस्ट्रीब्यूशन नीति को लागू किया।
जब 2018 में काँग्रेस की सत्ता वापस आई तो झाबुआ, अलीराजपुर और धार को मिलाकर कुल 17 जिलों में तो वन डिस्ट्रिक्ट-वन कॉन्ट्रेक्टर नीति को पुनः लागू कर दिया गया गया लेकिन बाकी के जिलों में शराब की दुकानों की नीलामी ग्रुप डिस्ट्रीब्यूशन नीति के ही तहत जारी रही। मार्च 2020 में कॉंग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी जब मध्यप्रदेश में फ़िर से सत्ता में लौटी तो 2021 में जहरीली शराब से प्रदेश में 47 लोगों की मृत्यु होने तक बीजेपी, काँग्रेस की 2018 की शराब नीति पर ही चलती रही।
वर्तमान में हालाँकि मध्यप्रदेश की बीजेपी द्वारा संचालित सरकार ग्रुप डिस्ट्रीब्यूशन नीति के तहत काम कर रही है लेकिन यदि किसी विशेष जिले में ठेकेदार या कंपनियाँ आबकारी विभाग के द्वारा निर्धारित किये गये रेट पर शराब की दुकानों को खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं तों आबकारी विभाग के पास ये विशेषाधिकार है कि वो कुछ चुनिंदा जिलों की शराब की दुकानों को बोली के जरिये किसी एक कंपनी या ठेकेदार को दे सकता है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 51 जिलों में 8 जिलों की नीलामी वन डिस्ट्रिक्ट-वन कॉन्ट्रेक्टर नीति के अंतर्गत की गई थी। इन 8 जिलों में 5 जिले-झाबुआ, अलीराजपुर, धार, उज्जैन और नीमच- मालवा क्षेत्र में स्थित हैं।
यहाँ पर आश्चर्यजनक बात ये है कि चाहे काँग्रेस का राज हो और चाहे बीजेपी का गुजरात की सीमा से लगने वाले मध्यप्रदेश के जिलों में शराब की दुकानों की नीलामी हमेशा उन नियमों के ही तहत होती है जो नियम नीलामी प्रक्रिया में अपने आप में अपवाद हैं।
आबकारी विभाग ये तर्क करके अपना बचाव करता है कि झाबुआ, अलीराजपुर और धार की शराब की दुकानों को किसी एक कंपनी को इसलिये दे दिया गया क्योंकि दुकानों को खरीदने वाले खरीददार बहुत कम थे और यदि वन डिस्ट्रिक्ट-वन कॉन्ट्रैक्टर के तहत दुकानों की नीलामी नहीं की जाती तो विभाग को प्राप्त होने वाले राजस्व पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था।
1970 से शराब के व्यापार से जुड़े हुए 63 वर्षीय जिला बड़वानी के हरिचरन भाटिया कहते हैं कि वन डिस्ट्रिक्ट-वन कॉन्ट्रैक्टर नीति से शराब के व्यापार में कुछ लोगों का एकाधिकार बढ़ जाता है और आपसी प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। जिला बड़वानी, झाबुआ और धार का पड़ोसी है। भाटिया कहते हैं कि, ''एक समय पर एक ठेकेदार से ना सिर्फ़ डील करना आसान होता है बल्कि इससे राजनीतिक गोपनीयता को बरकरार रखने के अलावा प्रशासनिक संरक्षण और मुनाफे में हिस्सेदारी की गोपनीयता को भी बरकरार रखा जा सकता है।''
स्टेट एक्साइज कमिश्नर अभिजीत अग्रवाल कहते हैं कि,''क्योंकि पूरे प्रदेश में हमारे पास बेहद मजबूत निगरानी तंत्र है इसलिये अप्रैल 2022 से 2023 (दिसंबर तक) तक (अंदाजन 18,000 केस प्रति माह की दर से) 3.60 लाख केस दर्ज किये गये थे।''
लेकिन इन दर्ज केसों में कोई भी केस शराब के किसी बड़े ठेकेदार या किसी बड़ी शराब भठ्ठी के मालिक पर दर्ज नहीं किया गया।
अग्रवाल आगे कहते हैं कि,''चौकसी के लिये वर्तमान ऑफलाईन व्यवस्था को हटाकर विभाग 'कॉमन कंट्रोल सेंटर' को लांच करने जा रहा है जिससे शराब और बियर की भट्ठियों और बाटिलिंग यूनिटों को एक ही स्थान से मॉनीटर किया जा सकता है।''
जब अधिकारी शराब के गोरखधंधे पर अपनी पकड़ के मजबूत होने का दावा कर रहे हैं हमें शाहरुख खान के द्वारा फ़िल्म रईस में निभाया हुआ पात्र नज़र आता है। ''व्हाट अबाउट इंदौर हाईवे'' कह कर रईस का वो पात्र मध्यप्रदेश से गुजरात को की जाने वाली शराब तस्करी में शामिल तस्करों की चतुराई को एक झटके में पकड़ लेता है।
काशिफ काकवी TRC इन्वेस्टिगेटिव रिर्पोटिंग फेलोशिप के दूसरे राउंड के स्पेशल ग्रांटी हैं। रिपोर्टिंग करने के करीब एक दशक के अनुभव के साथ काशिफ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से रिपोर्ट करते हैं।