वित्तीय कटौती और एक पर्दानशीन रिपोर्ट

नीति आयोग के अध्ययन ने भारत की महिला सुरक्षा योजनाओं की दुर्दशा को रेखाँकित किया था। इस अध्ययन की रिपोर्ट को छुपा कर रखा गया और महिला सुरक्षा योजनाओं को मिशन शक्ति योजना के तहत नए रूप में पेश कर दिया गया। मिशन शक्ति योजना के लिए आवंटित बजट का ब्योरा यह दर्शाता हैं कि कैसे महिला सुरक्षा का विषय केंद्र सरकार की प्राथमिकता में नहीं था।

“15 अगस्त 2024 को भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था की ''एक समाज के नाते हमें हमारी माताओं, बहनों और बेटियों के ऊपर होनें वाले अत्याचारों के विषय में गंभीरता से विचार करना चाहिये''।

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा देश की महिलाओं का सशक्तीकरण किये जाने की बातें उनकी सरकार की महिला सुरक्षा से संबंधित नीतियों के रिपोर्ट कार्ड से मेल नहीं खाती हैं।

निर्भया केस ने सरकारों को महिला सुरक्षा पर विचार करने के लिए मजबूर किया था। हिंसा और दुर्व्यवहार से दो-चार होती महिलाओं की मदद के लिये एक के बाद एक योजनाएँ शुरू की गईं थी।

इस सीरीज को पहले दो भागों में हमनें महिला सुरक्षा से संबंधित दो योजनाओं का विश्लेषण किया है।


हमने कुछ एक्सक्लूसिव सरकारी दस्तावेज़ों को खँगालकर और दो राज्यों - दिल्ली और हरियाणा - का दौरा करके पाया कि प्रारंभिक रूप से एक दशक पहले शुरू की गई महिला सुरक्षा से संबंधित योजनाएँ एक दशक बाद भी महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान करने के अपने वादे को पूरा करने में असफल रही हैं। इस सीरीज की तीसरी कड़ी में हम इस बात का खुलासा करेंगे की कैसे सरकार ने  महिला सुरक्षा से संबंधित योजनाओं को नये-नवेले तरीके से मिशन शक्ति योजना के नाम से लॉन्च कर इन योजनायों की वित्तीय मदद में अड़ंगा लगाया। यहाँ पर अब हम नीति आयोग की एक ऐसी रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने जा रहे है जो केंद्र सरकार की महिला सुरक्षा संबंधी नीतियों की विफलता पर प्रकाश डालती है।

बजट में कटौती

वित्तीय वर्ष 2021-22 और वर्ष 2025-26 के बीच केंद्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने अपनी पंचवर्षीय योजना में महिला सुरक्षा से संबंधित चार योजनाओं के लिये मात्र 13% बजट बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा था।

बढ़ती हुई मँहगाई के कारण जब पैसे की कीमत प्रति वर्ष घट रही है और नागरिकों को कम से कम वस्तुओं को खरीदने के लिये अधिक से अधिक पैसा खर्च करने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है, महिला सुरक्षा संबंधी योजनाओं पर आगामी चार वर्षों के लिये मात्र 13% बजट बढ़ोतरी का प्रस्ताव यह दर्शाता है की अंतोगत्वा इतना बजट महिला सुरक्षा के ऊपर खर्च किये गये पैसे में की गई तथाकथित 'बढ़ोतरी' नहीं बल्कि संभावित 'कटौती' साबित होगा।

अगर हम बढ़ती हुई मँहगाई के संदर्भ में महिला सुरक्षा के लिये चार वर्षों के लिये प्रस्तावित 13% की बजट बढ़ोतरी को कमतर ना भी आँके तो भी वित्त वर्ष 2022 से 2025 तक सरकार के द्वारा जारी किये गये संपूर्ण बजट में 38.39% की बढ़ोतरी प्रस्तावित की गई थी लेकिन इसी समयावधि में महिला सुरक्षा के लिये प्रदान किये गये बजट में मात्र 7% की बढ़त का प्रस्ताव रखा गया। 

केंद्र सरकार के द्वारा महिला सुरक्षा संबंधी योजनाओं पर खर्च किये जाने वाले पैसे का प्रस्ताव

मिशन शक्ति योजना के संबल  नाम से प्रचारित महिला सुरक्षा वाले अवयव में वर्तमान में कुल चार  योजनाएं- महिला हेल्पलाइन, वन स्टॉप सेंटर, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ और नारी अदालत- शामिल हैं। 

अप्रैल 2015 में महिला हेल्पलाइन योजना की स्थापना पीड़ित महिलाओं को सहारा प्रदान करते हुये उनका पुलिस, अस्पताल और कानूनी सलाहकारों के संपर्क कराने के उद्देश्य से की गई थी। वर्तमान में सरकार के वित्तीय दस्तावेज़ दिखाते है की सरकार का इरादा महिला हेल्पलाइन को पूरी तरीके से कंगाल कर देने का है।

मिशन शक्ति योजना के लॉन्च होने के समय महिला हेल्पलाइन पर वर्ष 2021-22 में जितना पैसा खर्च करने का प्रस्ताव था वर्ष 2025-26 तक सरकार ने महिला हेल्पलाइन पर उसका मात्र एक तिहाई पैसा खर्च करने की योजना बनाई है। मिशन शक्ति योजना लागू होने के समय महिला हेल्पलाइन स्कीम पर प्रतिवर्ष 72 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव था लेकिन वित्तीय वर्ष 2025-26 तक इस स्कीम पर योजनानुसार मात्र 22 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे।

यहाँ तक तो हमनें ये देखा की सरकार ने महिला सुरक्षा संबंधी योजनाओं पर कितना पैसा खर्च करने का प्रस्ताव रखा है। लेकिन असल प्रश्न ये है की सरकार की तरफ़ से महिला सुरक्षा की प्रत्येक योजना पर वास्तव में कितना पैसा खर्च किया गया? इस प्रश्न का उत्तर दिया जाना संभव नहीं है क्योंकि वर्ष 2022 से सरकार ने मिशन शक्ति योजना के प्रत्येक अवयव पर खर्च किये जाने वाले पैसे का हिसाब देना बंद कर दिया है।

यदि कोई महिला सुरक्षा के वास्तविक खर्चे का ब्योरा देखना चाहता है तो उसके लिये मात्र इतना ही संभव है की वो मिशन शक्ति योजना के उपभाग- संबल - के वास्तविक खर्च की पड़ताल कर ले जिसमें महिला हेल्पलाइन को मिलाकर चार महिला सुरक्षा संबंधी योजनाओं शामिल है।

वर्ष 2024 के मध्य तक आते-आते सरकार महिला सुरक्षा के ऊपर प्रस्तावित बजट का 82.2% पैसा खर्च हो जाने की बात कह रही है। लेकिन चूँकि वित्त वर्ष के मध्य तक आते-आते सरकार सामान्य तौर पर प्रस्तावित बजट में से खर्च हुए पैसे की मात्रा को अक्सर बढ़ा-चढ़ा कर बताती है, इस बात की पूरी संभावना है की वर्तमान वित्त वर्ष में महिला सुरक्षा के ऊपर अब तक खर्च हुए पैसे की मात्रा 82.2% से कही नीचे हो। तथ्य ये है की किसी भी योजना पर असल में खर्च किये गये पैसे का वास्तविक आँकड़ा वित्त वर्ष समाप्त हो जाने के दो वर्षों के बाद ही पता चलता है इसलिये सामान्य तौर पर मीडिया और जनता दो साल पीछे जाकर इस बात को जानने की कोशिश नहीं करते की किसी योजना पर वास्तव में उतना पैसा खर्च भी किया गया की नहीं जितना सरकार ने खर्च करने का वादा किया था।

महिला सुरक्षा संबंधी नीतियों में वित्तीय कटौती के चलते इन योजनाओं के तिल-तिल कर के समाप्त होने की पुष्टि इस सीरीज के पहले दो भागों से होती है। सीरीज के पहले भाग में हमनें ये बताया है की पिछले कुछ सालों में कैसे वन स्टॉप सेंटर स्कीम पूर्णतः निष्प्रभावी हो गई है। इस पहले भाग को आप यहाँ पढ़ सकते है। वहीं दूसरे भाग में हमनें महिला हेल्पलाइन योजना के धराशायी होने की कहानी कही है। इस दूसरे भाग को आप यहाँ पढ़ सकते है।

ऐसा नहीं है की महिला सुरक्षा संबंधी योजनाओं की निष्क्रियता या विफलता की पड़ताल हम पहली बार कर रहे है। ये पड़ताल हमसे पहले सरकार के ख़ुद के विशेषज्ञ समूह, नीति आयोग, ने अपने अध्ययन में भी की थी लेकिन इस अध्ययन की रिपोर्ट को सरकार ने जनता की नज़रों से छुपाकर रखा था।

Prologue
Simran Rescued : not Every simran finds an escape.
Part 1
A Cold Shoulder: The Collapse of Government Help Centres Meant to Protect Women
Part 2
Tuned Out: Launched After Nirbhaya, Helpline Fails Women
Photo Essay
The Hidden Battle for Survival 

एक छिपी हुई रिपोर्ट

मार्च 2023 में तमिलनाडु से सांसद जी सेल्वम ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से महिला हेल्पलाइन स्कीम की स्थिति के बारे में सवाल पूछे थे।

सेल्वम के प्रश्नों के जवाब में उस समय की महिला एवं बाल विकास मंत्री, स्मृति ईरानी, ने दावा किया था की महिला हेल्पलाइन स्कीम की हालत बिल्कुल दुरुस्त है।

स्मृति ईरानी का सेल्वम को दिया गया जवाब वर्ष 2020-21 के नीति आयोग के अध्ययन पर आधारित था जिसमे महिला हेल्पलाइन स्कीम की हालत को ''संतोषजनक'' बताया गया था। हालाँकि इसी अध्ययन की रिपोर्ट में महिला हेल्पलाइन स्कीम की विफलता को भी विस्तार पूर्वक दर्ज किया गया था। क्योंकि सच से रूबरू होने के लिये इस पूरी रिपोर्ट को ऊपर से नीचे तक पढ़ा जाना जरूरी है यहाँ पर हम इस पूरी रिपोर्ट को जनता के समक्ष रख रहे हैं।

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने संसद में बताया की उसकी योजनाएँ अच्छे से काम कर रहीं हैं
आप नीति आयोग की इस पूरी रिपोर्ट को यहाँ पढ़ सकते है।

अगर आपके पास इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ने का समय नहीं है तो यहाँ पर हम आपको संक्षिप्त रूप से ये बता रहे है की नीति आयोग ने महिला सुरक्षा संबंधी योजनाओं की आलोचना में क्या कहा था:

वन स्टॉप सेंटर योजना

उत्पीड़ित महिलाओं को एक छत के नीचे बहुत प्रकार की सहायतायें, जैसे पुलिस एवं कानूनी सहायता, मानसिक स्वास्थ्य के लिये जरूरी परामर्श, कुछ समय रहने के लिये अस्थाई ठिकाना आदि, देने के लिए वन स्टॉप सेंटर (OSC) योजना की स्थापना की गई थी।

वन स्टॉप सेंटर योजना को अप्रैल, 2015, में प्रारम्भ किया गया था और वर्तमान में इस योजना के तहत देश में कुल 786 OSC केंद्र कार्यरत हैं।

हालाँकि नीति आयोग के अध्ययन के मुताबिक देश में अधिकाँश महिलायें OSC केंद्रों के विषय में जागरूक नहीं हैं और इन केंद्रों पर प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की घटिया गुणवत्ता के कारण यह पूरी योजना महिला सुरक्षा प्रदान करने के अपने कथित वादे पर खरी नहीं उतरती है। नीति आयोग का अध्ययन कहता है की OSC योजना के प्रचार के लिये आवश्यक सूचनात्मक, शैक्षणिक एवं संचारात्मक (IEC) गतिविधियों की कमी के चलते चिंताजनक तौर पर मात्र 4% जनता ही इस योजना को लेकर जागरूक है।

रिपोर्ट कहती है की वार्षिक तौर पर प्रति OSC केंद्र को दी जाने वाली 50,000 रुपये की राशि इन केंद्रों के द्वारा संचालित lEC गतिविधियों के समर्थन और जरूरी प्रशिक्षण के लिये अपर्याप्त है।

नीति आयोग ने रेखांकित किया की OSC स्कीम में किसी भीतरी निगरानी तंत्र की कमी है

नीति आयोग कहता है की ''OSC केंद्रों पर प्रदान की जाने वाली सुविधाओं के ब्योरे और इन सुविधाओं की गुणवत्ता पर की जाने वाली आलोचनात्मक टिप्पणियों को दर्ज करने के लिये किसी निगरानी तंत्र की कमी के चलते'' OSC स्कीम का मूल्याँकन कर पाना बेहद कठिन है।

उत्पीड़ित महिलाओं के द्वारा पुलिस को बयान दर्ज कराने के लिये मात्र 33% OSC केंद्रों पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उपलब्ध है वहीं मात्र 42% OSC केंद्रों पर पैंट्री की व्यवस्था है (OSC केंद्र के संचालन के लिये यह पैंट्री होना एक आवश्यक शर्त है)। साथ में नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार करीब 92% OSC केंद्रों पर पर्याप्त शौचालय और CCTV कैमरे कार्यरत है।

नीति आयोग के द्वारा बताई गई OSC केंद्रों की ये स्थिति उन 12 राज्यों की राजधानियों पर आधारित है जहाँ पर OSC केंद्रों की स्थिति को कथित तौर पर बाकी के देश से अच्छा बताया जाता है।

इसके अतिरिक्त नीति आयोग की रिपोर्ट इस बात को भी रेखाँकित करती है की OSC स्कीम के तहत प्रदान किये जाने वाले पैसे का ठीक से प्रयोग नहीं होता है, OSC केंद्रों पर तैनात कर्मचारियों को बेहद कम मेहताना दिया जाता है और सामान्यतः OSC केंद्रों की सुविधाओं के लिये उपलब्ध जानकारी में पारदर्शिता की कमी है I

नीति आयोग की रिपोर्ट समाज के हाशिये पर रहने वाले समुदायों में सबसे निचले पायदान से आने वाली किन्नर महिलाएं तक भी OSC केंद्रों की सुविधाओं का विस्तार करने की वक़ालत करती है।

महिला हेल्पलाइन

महिला हेल्पलाइन योजना को वर्ष 2015 में पूरे देश एक ऐसी योजना के रूप में लागू किया गया था जिसके तहत बनाये गये केंद्र उत्पीड़ित महिलाओं का पुलिस, OSC केंद्र और अस्पताल जैसे संस्थाओं से संपर्क करा कर इन संस्थाओं से उनकी मदद सुनिश्चित कराने के लिये समय रहते हस्तक्षेप कर सकते थे।

लेकिन नीति आयोग के द्वारा 3,048 महिलाओं का सर्वेक्षण करने पर पता चला की मात्र 23.5% महिलाएँ ही महिला हेल्पलाइन के बारे में जानती हैं। राजधानी दिल्ली में महिलायें की महिला हेल्पलाइन के विषय में सबसे ज्यादा (45%) जागरूक हैं वहीं उत्तर प्रदेश में महिलाओं की जागरूकता का स्तर सबसे कम (8.7%) है।

नीति आयोग ने कहा की महिला हेल्पलाइन को उसके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं की गुणवत्ता के आधार पर परखा जाना चाहिये

एक ओर तो नीति आयोग का अध्ययन कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के समय महिला हेल्पलाइन की भूमिका की प्रशंसा करता है लेकिन दूसरी ओर ये अध्ययन ये भी कहता है जिस प्रकार से सिर्फ़ महिला हेल्पलाइन को प्राप्त हुए कुल फ़ोनों की संख्या के आधार पर इस हेल्पलाइन की ज़मीनी सच्चाई का मूल्याँकन कर दिया गया है वह गलत है।

नीति आयोग कहता है की महिला हेल्पलाइन के द्वारा लाये गये सकारात्मक बदलाव का मूल्याँकन वह इसलिए नहीं कर सकता है क्योंकि उसके पास महिला हेल्पलाइन को प्राप्त हुये उन फ़ोनों का कोई ब्यौरा मौजूद नहीं है जिनकों अक्सर पुलिस, OSC केंद्र या अस्पताल जैसी किसी संस्था को अग्रेषित कर दिया जाता है।

नीति आयोग के सुझाव के अनुसार हेल्पलाइन को प्राप्त हुए उत्पीड़ित महिलाओं के फ़ोनों की इस प्रकार से गणना करनी चाहिए की पता चल सके की ''कितने मामले बंद हो गये, कितनी मामलों में पुलिसिया या कानूनी कार्यवाही हुई और कितनी महिलाओं को महिला हेल्पलाइन (WHL) या स्वाधार गृह (शेल्टर होम) भेजा गया''।

नीति आयोग महिला हेल्पलाइन की व्यवस्था में कोई शिकायत निवारण तंत्र ना होने की बात को भी उठाता है और साथ में आयोग हेल्पलाइन की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी करने वाली किसी निगरानी समिति की रिपोर्ट उपलब्ध ना होने के कारण हेल्पलाइन की जवाबदेही के प्रश्न को भी रेखांकित करता है।

महिला शक्ति केंद्र

वर्ष 2017 में ग्रामीण महिलाओं को सरकार के द्वारा उनके लिये चलाई जा रही योजनाओं और सुविधाओं के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने महिला शक्ति केंद्र स्कीम को लॉन्च किया था।

इस योजना के अन्तर्गत राज्यों, जिलों और ब्लॉक के स्तर पर महिला सशक्तीकरण संबंधी सुविधाएँ पहुँचाने और इन सुविधाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से महिला सशक्तीकरण केंद्रों की स्थापना की जानी थी। 

लेकिन अंतोगत्वा ये योजना धराशायी हो गई और केंद्र सरकार ने इसे समाप्त कर दिया।

नीति आयोग के द्वारा किये गये अध्ययन के अनुसार इस योजना को लेकर किये गये सर्वेक्षण में शामिल अधिकाँश लोग इस प्रकार की जागरूकता फैलाने वाली योजना को महत्वपूर्ण तो मानते थे लेकिन महिला शक्ति योजना की मौजूदगी से मात्र 13% लोग ही वाकिफ़ है।

सरकारी विशेषज्ञ समूह ने महिला शक्ति केंद्र योजना की कई खामियों को रेखाँकित किया

नीति आयोग ने पाया की महिला शक्ति योजना के ''फंड को लगातार कम किया जा रहा है'' और इस योजना को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में भी कई खामियाँ हैं।

महिला शक्ति योजना के दो साल बाद तक इस योजना को लागू करने के लिए अधिकाँश जिलों या ब्लॉकों में केंद्रों की स्थापना ही नहीं की गई थी। इस योजना की तकनीकी कमियों को इंगित करते हुए नीति आयोग ने कहा था की ''महिला सशक्तीकरण के ऊपर इस योजना की तकनीकी समझ काफ़ी सीमित है''।

चूँकि नीति आयोग ने ब्लॉक के स्तर इस योजना से लोगों के जुड़ाव को बेहद सीमित पाया था इसलिये इस योजना की प्रभावशीलता को नीति आयोग ने औसत की श्रेणी में रखा था।

कचहरी की फ़ाइलों, दफ्तरों के दस्तावेज़ों और साक्षात्‍कारों के माध्यम से द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने पाया की वर्तमान में मिशन शक्ति योजना में समाहित कर दी गई महिला सुरक्षा संबंधी योजनाएँ लगातार जनता के बीच अपनी सीमित पहुँच, कमज़ोर क्रियान्वयन और पैसे की कमी से जूझ रहीं हैं।

इस खोजी सीरीज़ को प्रकाशित करने में अप्पन मेनन मेमोरियल अवार्ड से मिली आंशिक मदद का प्रयोग  किया गया है।
Image by : Nitin Sethi

THE FOLKS
BEHIND THE Story

Author
Tapasya

Reporter

Editors
Furquan Ameen
Editor
Nitin Sethi
Founder
Contributors
Harshitha Manwani

Reporter

Shreegireesh Jalihal

Reporter

Translator
Alok Rajput

Writer

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