फरीदाबाद, नई दिल्ली: अप्रैल 2015 में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बाबा रामदेव को राज्य के कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की पेशकश की। हरियाणा और देश पर शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए रामदेव साधनों से संपन्न एक संत थे। लेकिन रामदेव ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा, "अब पीएम हमारे हैं, पूरी कैबिनेट हमारी है, हरियाणा के सीएम हमारे हैं और उनकी कैबिनेट हमारी है, इसलिए बाबा (एक सन्यासी) को बाबा ही रहने दीजिए।"
रामदेव को इस पद की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने चुनावों के समय ही भाजपा और नरेंद्र मोदी का मजबूत समर्थन करके सत्ता से निकटता बना ली थी। बदले में उन्हें और उनके पतंजलि समूह को हरियाणा में भाजपा सरकार की नीतियों से फायदा मिला।
इसका सबूत हरियाणा में अरावली पर्वतमाला की वनभूमियों में मिलता है।
न्यायिक रिकॉर्ड, पॉलिसी पेपर्स और सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि हरियाणा सरकार ने संवेदनशील अरावली पर्वतमाला के कुछ हिस्सों को गैर-संरक्षित रखने का पुरजोर प्रयास किया। राज्य सरकार ने इन वनों को संरक्षित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 1996 और 2022 के दो महत्वपूर्ण आदेशों के पालन में आनाकानी की। साथ ही वनों की कटाई रोकने के लिए राज्य के कानून और दिल्ली और आसपास की इकोलॉजिकल दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमि को संरक्षित करने वाले केंद्र के एक कानून को भी कमज़ोर किया गया।
राज्य सरकार की इस टाल-मटोल के कारण ही अरावली के जंगलों में एक गुप्त रियल एस्टेट व्यवसाय के फलने-फूलने की जमीन तैयार हुई। रामदेव का पतंजलि समूह इसका सबसे अधिक फायदा पाने वालों में से एक था। लोगों की नज़रों में यह कंपनी केवल आयुर्वेद, सौंदर्य प्रसाधन, खानेपीने और दूसरे फ़ास्ट मूविंग कंस्यूमर प्रोडक्ट्स का व्यापर करती है। द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने जिन दस्तावेजों का अध्ययन किया है वे बताते हैं कि यह समूह अभी भी संदिग्ध संस्थाओं और शेल कंपनियों के माध्यम से अरावली में जमीन के बड़े हिस्सों को खरीद और बेच रहा है।
हमने मंगर गांव में जमीनों की खरीद-फरोख्त करने वाली बाबा रामदेव की कम से कम 14 कंपनियों और दो ट्रस्टों का पता लगाया। हमें सबूत मिले कि इन 14 कंपनियों में से कम से कम चार और दो ट्रस्टों में से एक ने मांगर में जमीनें ऐसी कंपनियों को बेचीं, जो रियल-एस्टेट डीलर होने का दावा करती हैं।
हरियाणा सरकार के नवीनतम भूमि रिकॉर्डों के अनुसार, इनमें से 12 कंपनियों और एक ट्रस्ट के पास मांगर में कुल मिलाकर कम से कम 123 एकड़ भूखंड हैं। (देखिए सूची 1, भाग 1)
इससे पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड ने रिपोर्ट किया था कि रामदेव की कंपनियों के पास फ़रीदाबाद के एक और गांव कोट में जमीनें हैं। और हरियाणा सरकार की कुछ चालों की ओर भी इशारा किया जिससे संभावित रूप से इन कंपनियों को फायदा हुआ। द कलेक्टिव की जांच में पता चला कि रामदेव ने भूमि-स्वामित्व का एक व्यापक साम्राज्य खड़ा किया है, और कैसे उनकी कंपनियां आपस में पैसे का लेन-देन करती हैं। जांच से यह भी पता चलता है कि कैसे हरियाणा के कई नीतिगत निर्णयों ने पतंजलि समूह सहित फरीदाबाद में ऐसे रियल-एस्टेट बिज़नेस को भारी मुनाफा कमाने में मदद की है।
किसी कंपनी को अपनी वार्षिक कॉर्पोरेट फाइलिंग में यह दिखाने की जरूरत नहीं होती कि किसी विशेष भूखंड को बेचने से उसे कितना लाभ हुआ। हालांकि, हमने एक मामले में इसकी गणना करने का एक तरीका निकाला। हमने पहले उस रियल-एस्टेट फर्म के रिकॉर्ड की जांच की जिसने यह भूमि खरीदी थी, और फिर इस संपत्ति को बेचनेवाली पतंजलि की शेल कंपनी, कनखल आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड, के रिकॉर्ड को जांचा। इससे हमें पता चला कि बाबा रामदेव का साम्राज्य गुप्त रूप से कितना अधिक मुनाफा अर्जित कर रहा है।
हमने पाया कि जिस एक भूमि सौदे को हम जांच सके, उसीमें कनखल आयुर्वेद को 365% का भारी लाभ प्राप्त हुआ। और, यह एक शेल कंपनी है जिसने कभी कोई ऐसा व्यवसाय नहीं किया है जिसके लिए रामदेव के दाहिने हाथ आचार्य बालकृष्ण सहित इसके प्रमोटरों ने आधिकारिक तौर पर इसकी स्थापना की थी। बाबा रामदेव के साम्राज्य की कोई अन्य कंपनी -- जिनके बारे में वह सार्वजनिक रूप से बात करते हैं -- इतना बड़ा मुनाफा करने में सक्षम नहीं है।
नीचे दिए गए मैप में राज्य के नवीनतम ऑनलाइन राजस्व रिकॉर्ड (जमाबंदी) के अनुसार मांगर गांव में पतंजलि की भूमि हिस्सेदारी दिखाई गई है। हरियाणा ने 2018-19 तक के अपने डिजिटल भूमि रिकॉर्ड को अपडेट कया है।
मानचित्र पर पीले बिंदु पतंजलि समूह से संबद्ध संस्थाओं की भूमि को दर्शाते हैं। हल्के हरे रंग का क्षेत्र पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम द्वारा रेगुलेटेड है। जो चमकीले हरे रंग में है उसे औपचारिक रूप से वन नामित किया गया है और जो भूरे रंग में है उसे 'गैर मुमकिन पहाड़' या बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पतंजलि समूह की कंपनियों की अधिकांश जमीनें, जिन्हें हमने मैप किया है, इसी श्रेणी में आती हैं -- ऐसी वनभूमियां जिन्हें हरियाणा सरकार ने संरक्षण कानूनों से बाहर रखा है, और इसे रियल-एस्टेट डीलरों के फायदे के लिए छोड़ दिया है।
इन्हें मैप करने के लिए हमने मांगर के एक राजस्व मानचित्र का सहारा लिया। यह राजस्व मानचित्र सैकड़ों भूखंडों का सटीक स्थान बताता है। फिर हमने यह देखने के लिए राज्य के डिजिटल भूमि रिकॉर्ड को खंगाला कि इन सैकड़ों भूखंडों का मालिक कौन है। इसमें से हमने पतंजलि की कंपनियों के स्वामित्व वाली जमीनों को छांटा। इसके बाद इन्हें राजस्व मानचित्र पर अलग-अलग जियोटैग किया और शैडो कंपनियों के जाल के माध्यम से मांगर में रामदेव की भूमि स्वामित्व की पूरी तस्वीर तैयार की।
सिंड्रेला के कांच के जूते
सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली गुजरात से राजस्थान होते हुए हरियाणा तक उत्तर-पूर्व में पहुंचती है, जहां यह दिल्ली के फेफड़ों के रूप में काम करती है।
हरियाणा सरकार ने अरावली के इन विशाल क्षेत्रों को मान्यता प्राप्त वनों की सूची से बाहर रखने के जो लगातार प्रयास किए, उनसे पतंजलि के लाभदायक भूमि सौदों को मदद मिली। हरियाणा में अरावली पहाड़ियों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा ही हरियाणा के संरक्षण कानून, पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1990 के तहत संरक्षित है। दिल्ली की सीमा से लगे गुड़गांव और फरीदाबाद में, जहां रियल एस्टेट बाजार फलफूल रहा है, वहां इस कानून के तहत जंगलों के बड़े हिस्से को संरक्षित नहीं किया गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, गुड़गांव में संभवतः 40% और फ़रीदाबाद में 36.8% पहाड़ियां वनों के रूप में अधिसूचित नहीं हैं और कानूनी रूप से असुरक्षित हैं।
ऐसा करने के लिए राज्य ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लागू करने में आनाकानी की।
"गैर मुमकिन पहाड़" या बंजर जंगलों और सामान्य भूमि वर्गीकरण पर भूमि स्वामित्व और नियंत्रण के लेकर विवाद होता रहा है। 1960 के दशक तक, इन भूमियों को 'सामान्य भूमि' के रूप में वर्गीकृत किया गया था जिसका स्वामित्व पंचायतों के पास था। कई अदालती आदेशों के माध्यम से भूमि स्वामित्व का निजीकरण कर दिया गया। बाद के दशकों में इन निजीकृत सामान्य भूमियों को बेच दिया गया।
अप्रैल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को आदेश दिया कि निजीकरण की गई सामान्य भूमि को पंचायतों को वापस सौंपा जाए। यह आदेश मांगर के जंगलों पर भी लागू हुआ। लेकिन राज्य के राजस्व और पंचायत विभाग और जिला प्रशासन इन आदेशों को लागू नहीं किया है।
चूंकि अरावली की वनभूमि को कानूनी संरक्षण नहीं मिला, पतंजलि और अन्य रियल-एस्टेट कंपनियों ने इन जमीनों पर सस्ते में भूखंड खरीदे। स्वामित्व को लेकर विवाद से हमेशा जमीनों की कीमतें गिराती हैं। आमतौर पर शक्तिशाली रियल-एस्टेट कंपनियां इन जमीनों को खरीद लेती हैं, और बाद में नेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत से उन्हें लाभप्रद बना देती हैं और अत्यधिक मुनाफे पर बेच देती हैं। अपनी फर्जी कंपनियों के माध्यम से पतंजलि समूह इन भूमि सौदों का एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया।
दूसरी ओर, हरियाणा सरकार ने 1996 के सुप्रीम कोर्ट के एक और ऐतिहासिक आदेश को कमजोर किया, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को भारत के सभी जंगलों की पहचान करने और उनका संरक्षण करने के लिए कहा गया था।
आदेश में इस बात पर फिर से जोर दिया गया कि केंद्रीय वन संरक्षण कानून के तहत किन भूमियों को वनों के रूप में संरक्षित किया जाएगा। इसके तहत, चाहे सरकार ने अपने रिकॉर्ड में किसी भूखंड को वनों के रूप में नहीं पहचाना हो, लेकिन अगर वह वन की परिभाषा के अंतर्गत आता है तो उसे संरक्षित किया जाएगा, भले ही उस भूखंड का मालिक कोई भी हो।
"गैर मुमकिन पहाड़" (बिना खेती योग्य वन भूमि) जिसे पतंजलि ने खरीदना शुरू किया, वह इस परिभाषा के तहत आती है। लेकिन हरियाणा सरकार ने 27 वर्षों तक अदालत के आदेश को रोक कर रखा, जिसके कारण कुछ 'गैर मुमकिन पहाड़' भूमियां प्रतिबंधों से मुक्त रहीं और रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिए उपलब्ध रहीं।
अन्य कानूनों के अनुसार भी राज्य सरकार का दायित्व था कि इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील इन पहाड़ियों और जंगलों का संरक्षण करे। पहले तो इन जंगलों को पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (यह कानून तब बना था जब हरियाणा पंजाब का हिस्सा था और यह अभी भी हरियाणा में लागू है) के अंतर्गत लाने की आवश्यकता है। और, इन वनों को 'प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र' के तहत संरक्षित करना आवश्यक है, जिसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड केंद्र सरकार के एक कानून के तहत लागू करता है। इन दोनों कानूनों का उद्देश्य है सीमित क्षेत्रों में वनों की कटाई और रियल-एस्टेट गतिविधियों पर अंकुश लगाना।
लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि हरियाणा ने अरावली जंगलों के बड़े हिस्से को इन दोनों विकल्पों के तहत भी संरक्षित होने से रोकने का लगातार प्रयास किया है।
पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम महत्वपूर्ण भूमि को वनों की कटाई और मरुस्थलीकरण से बचाता है।
मई 2013 में जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया कि पंजाब अधिनियम के तहत आनेवाली भूमि को वनों के रूप में माना जाना चाहिए और केंद्र सरकार के वन संरक्षण अधिनियम के तहत उच्च स्तर की सुरक्षा मिलनी चाहिए, तो हरियाणा ने इसमें रुकावटें पैदा कीं। राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और दावा किया कि एनजीटी के आदेश से गुरुग्राम और फरीदाबाद जिलों में तबाही मच जाएगी, जहां अरावली की पहाड़ियों में शहरीकरण ने जड़ें जमा ली हैं।
राज्य सरकार की दलील थी कि बड़े शहरी क्षेत्रों को वन घोषित कर दिया जाएगा। लेकिन कोर्ट ने सरकार का झूठ पकड़ लिया। पता चला कि हरियाणा के 22 जिलों की केवल 7.1% भूमि ही प्रभावित होगी।
जुलाई 2022 के एक आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के दावों को "भ्रामक और झूठा" बताया जिनसे शहरी निवासी संरक्षण के खिलाफ खड़े हो रहे थे। कोर्ट ने कहा कि पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम के तहत अधिसूचित भूमि में "जंगल के सभी गुण हैं" और उन्हें केंद्रीय वन संरक्षण कानून के तहत संरक्षण मिलना चाहिए।
हालांकि, इस आदेश के बाद भी हरियाणा में गैर-मान्यता प्राप्त जंगलों का एक बड़ा हिस्सा संरक्षण से छूट गया, जिसे पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम के तहत अधिसूचित नहीं किया गया था। इनमें झाड़-झंखाड़ वाले क्षेत्र (जैसे कि गैर मुमकिन पहाड़ या बंजर भूमि, जिसे रियल एस्टेट कंपनियों या पतंजलि की शेल कंपनियों ने हड़पना शुरू कर दिया था), खुले और घने वन क्षेत्र शामिल हैं, जिनके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इन्हें 1996 के आदेश के बाद "शब्दकोष की परिभाषा के अनुसार” 'मानित वन' या जंगलों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
2014 में केंद्र ने हरियाणा सरकार से प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र के तहत उन क्षेत्रों को वर्गीकृत करने के लिए कहा जिन्हें संरक्षित किया जाना है। और "डीम्ड फॉरेस्ट" को, जो वनों की शब्दकोश परिभाषा के तहत आते हैं, उन्हें इसी श्रेणी के अंतर्गत लाया जाए। तब तक हरियाणा ने 1996 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ऐसे जंगलों के सीमांकन के लिए पैरामीटर तय करने का काम नहीं किया था।
2015 में हरियाणा सरकार ने इन वनों को संरक्षण योजनाओं के तहत लाने के उद्देश्य से एक अलग "स्टेटस टू बी डिसाइडेड" की श्रेणी में डाल दिया। इसका खुलासा द कलेक्टिव की पिछली जांच में हुआ था। इसे यहां पढ़ा जा सकता है।
लेकिन उनके स्टेटस का निर्धारण कभी नहीं किया गया।
इसके बजाय, हरियाणा सरकार ने 2021 में एक क्षेत्रीय योजना का मसौदा तैयार किया, जिसमें अरावली पहाड़ियों को "प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र" की श्रेणी से बाहर रखा गया। ऐसा करने से पहले की क्षेत्रीय योजनाओं में इन क्षेत्रों में जो निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया था, वह हट जाता। इस श्रेणी का उद्देश्य एनसीआर के हरित क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करना है। लेकिन पिछली क्षेत्रीय योजना में अरावली जो संरक्षण प्राप्त था वह अब नहीं मिलेगा।
हमने हरियाणा सरकार और केंद्र सरकार को संरक्षण पर उनकी नीतियों और मांगर, फरीदाबाद में भूमि सौदों में शामिल पतंजलि से जुड़ी कंपनियों को विस्तृत प्रश्नावली भेजी। हमें अभी तक राज्य या केंद्र सरकार से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
इतना ही नहीं। जिन वनों को "स्टेटस टू बी डिसाइडेड" की श्रेणी में रखा गया था, वे अब अपनी कानूनी संरक्षण खो चुके हैं।
2023 में केंद्र सरकार ने 1996 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को कमजोर करते हुए वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया। नवीनतम संशोधनों ने 'मानित वन' यानि "डीम्ड फॉरेस्ट" को संरक्षण से बाहर रखा। अब यह कानून केवल उन क्षेत्रों का संरक्षण करेगा जो सरकारी दस्तावेजों में वनों के रूप में वर्गीकृत हैं। इससे पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शामिल नहीं की गई सभी भूमियां छूट जाएंगी, जिन्हें प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र तय करते समय हरियाणा द्वारा "स्टेटस टू बी डिसाइडेड" की श्रेणी में रखा गया था।
इससे पतंजलि समूह समेत उन सभी कंपनियों को फायदा होगा जो वनों में ऐसी भूमि खरीद रहे थे जो अब आधिकारिक तौर पर वन के रूप में वर्गीकृत नहीं की जाएंगीं।
भारी मुनाफा
इससे पतंजलि के मुनाफे में कितना इज़ाफ़ा होगा, यह समझने के लिए समूह की शेल कंपनी कनखल आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड की कॉर्पोरेट रजिस्ट्री और भूमि सौदे के रिकॉर्ड पर नजर डालें। इस कंपनी ने जमीनें खरीदी और बेचीं और बहुत बड़ा मुनाफा कमाया, बाद में इन पैसों को पतंजलि से जुड़ी दूसरी कंपनियों में लगाया।
कनखल आयुर्वेद की स्थापना अगस्त 2006 में पतंजलि के आचार्य बालकृष्ण और स्वामी मुक्ताननद ने की थी। कागज पर इसे आयुर्वेदिक, यूनानी, होमियोपैथिक और एलोपैथिक दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के निर्माण और बिक्री के लिए बनाया गया था। लेकिन अभी तक इसने ऐसा कोई सामान नहीं बनाया और फिर भी यह अमीर हो गई।
शुरुआती सालों में बालकृष्ण ने सीधे तौर पर और पतंजलि से जुड़ी अन्य कंपनियों के माध्यम से कनखल आयुर्वेद में पैसा लगाया। इन वर्षों के दौरान, कनखल आयुर्वेद मांगर के जंगलों में जमीनें खरीदती रही। कंपनी के दावों के आधार पर इसके लेखा-परीक्षकों ने बताया कि ये जमीनें "उसके उद्योग की स्थापना के उद्देश्य से खरीदी गई थीं जहां आयुर्वेदिक दवाएं और उत्पाद निर्मित किए जाएंगे"।
यह झूठ था। कंपनी ने कभी उद्योग स्थापित नहीं किया। इसके बजाय, उसने इस संचित भूमि का अधिकांश हिस्सा एक रियल एस्टेट कंपनी को भारी मुनाफे पर बेच दिया। इसके बाद जो भारी मुनाफा कमाया गया था उसे पतंजलि साम्राज्य से जुड़ी दूसरी शैडो कंपनियों में डाल दिया गया। फिर इन कंपनियों में धन और निवेश का आदान-प्रदान होता रहा।
इसका पूरा विवरण यहां हैं।
कनखल आयुर्वेद ने वित्तीय वर्ष 2009 और 2011 के बीच मांगर में 43 एकड़ से अधिक जमीन इकठ्ठा की। फिर अगस्त 2011 में उसने 41 एकड़ से अधिक जमीन दिल्ली स्थित निर्माण कंपनी टोपाज़ प्रोपबिल्ड प्राइवेट लिमिटेड को 2.66 करोड़ रुपए में बेच दी। टोपाज़ की बैलेंस शीट से पता चलता है कि जमीन 12.38 करोड़ रुपए में बेची गई थी। पतंजलि की कंपनी, जिसका राजस्व शून्य था, उसने 9.72 करोड़ रुपए (365%) का भारी मुनाफा कमाया।
पतंजलि समूह की कार्यप्रणाल
2008 में स्थापित टोपाज़ प्रॉपबिल्ड का राजस्व खुद भी शून्य है। इस कंपनी का संबंध गुड़गांव के विवादास्पद प्रॉपर्टी डीलर आइरियो से है। इसका और आइरियो विक्ट्री वैली प्राइवेट लिमिटेड का रजिस्टर्ड पता एक ही है। इसके आधे शेयर मयूर प्रॉपमार्ट प्राइवेट लिमिटेड के पास हैं। मयूर प्रॉपमार्ट का भी रजिस्टर्ड पता वही है जो आइरियो प्राइवेट लिमिटेड का है। चालू होने के बाद पहले साल में कंपनी को आइरियो से जुड़े मॉरीशस-आधारित फंड से 'शेयर एप्लीकेशन मनी' के रूप में 5,000 अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए।
कनखल आयुर्वेद उन शेल कंपनियों में से एक है जिनका हमने अध्ययन किया। हमने जिन दूसरी पतंजलि से जुड़ी संस्थाओं की समीक्षा की, उनमें से अधिकांश ने अरावली में जमीन खरीदने के लिए एक ही रणनीति अपनाई: पतंजलि से जुड़ी फर्जी और छिपी हुई कंपनियां, जो ज्यादातर रामदेव के करीबी व्यापारिक सहयोगियों और परिवार के सदस्यों द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित थीं, उन्हें संबंधित संस्थाओं से निवेश, असुरक्षित ऋण और अन्य मार्गों द्वारा बड़ी मात्रा में धन प्राप्त मुहैया कराया गया।
हालांकि ऑडिटर्स सालों तक दावा करते रहे कि कनखल आयुर्वेद मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए इन जमीनों को खरीद रही थी, वित्त वर्ष 2022 तक कंपनी के पास मांगर गांव में केवल 10,93,000 रुपए की जमीन थी और दावा किया गया कि यह कंपनी के "अपने उपयोग" के लिए है। लेकिन इसने कोई फैक्ट्री या दूसरी संपत्ति नहीं बनाई थी। जो व्यवसाय करने का कंपनी ने दावा किया था, उसके लिए एक कुर्सी तक नहीं खरीदी।
इसके बजाय, कंपनी ने जमीनों की बिक्री से प्राप्त राजस्व को पतंजलि से जुड़ी कम से कम 16 दूसरी कंपनियों और नेपाल स्थित एक एयरलाइंस, गुना एयरलाइंस, में निवेश किया। और भारत के अन्य हिस्सों में और भी जमीनें खरीदीं। इसके लिए भी कई व्यक्तियों को 'एडवांस' देने का संदिग्ध मार्ग अपनाया गया। कंपनी द्वारा की गई हालिया कॉर्पोरेट फाइलिंग के अनुसार, इसके पास अभी भी कई भूखंड हैं।
कनखल आयुर्वेद और उसे 'एडवांस' मुहैया कराने वाली कंपनियों को भी विस्तृत प्रश्नवाली भेजी गई। ईमेल की गई प्रश्नावली की कॉपी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) को दी गई थी। बाबा रामदेव के प्रवक्ता और आस्था टीवी के राष्ट्रीय प्रमुख एस के तिजारावाला को भी मेल की कॉपियां भेजी गईं।
हमें सभी कंपनियों से एक जैसी, कॉपी-पेस्ट की हुई प्रतिक्रियाएं मिलीं। उन्होंने अपने जवाब की कॉपी पतंजलि आयुर्वेद के सीओओ और तिजारावाला को भी भेजी, जिससे साबित हो गया कि यह सभी संस्थाएं रामदेव के पतंजलि समूह के अंतर्गत काम करती हैं और ऐसी स्वतंत्र संस्थाएं नहीं हैं जिनका सिर्फ संचालन रामदेव के दोस्तों और परिवार द्वारा होता है।
कंपनियों ने कहा कि उन्होंने “सभी निवेश कानून में दिए गए नियमों के अनुसार किए हैं" और "पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भूमि अधिग्रहण को नियंत्रित करने वाले लागू कानूनों और विनियमों का सावधानीपूर्वक पालन किया है"। (सभी प्रश्न और उनके उत्तर यहां पढ़े जा सकते हैं।)
ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है जिससे पता चले कि अधिकारियों ने रामदेव के पतंजलि समूह की इन शेल कंपनियों कोई जांच की हो, जिनकी स्थापना इसके गुप्त रियल एस्टेट व्यवसाय या वित्तीय लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। पतंजलि समूह द्वारा इस तरह के लेनदेन पिछली बार जांच के दायरे में 2012 में आए थे, जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी और रामदेव कथित भ्रष्टाचार के लिए उसकी कड़ी निंदा कर रहे थे।
देश की राजनीति में भाजपा के उदय के साथ-साथ पतंजलि समूह की किस्मत ने भी एक लंबी छलांग लगाई है। इसका रियल-एस्टेट अवतार फिलहाल जनता से छिपा हुआ है।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव के पूर्व प्रशिक्षु अग्गम वालिया ने इस स्टोरी के शोध और रिपोर्टिंग में योगदान दिया।
(श्रृंखला का भाग 1 यहां पढ़ें)