देहरादून: बीमा कंपनियों ने बैंकों के कर्मचारियों को महंगे उपहार, विदेश की सैर और नकद का लालच दिया ताकि वह ग्राहकों पर उनके इंश्योरेंस प्रोडक्ट लेने के लिए दबाव डालें, द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की एक जांच में ऐसा सामने आया है।
कॉल रिकॉर्डिंग, वीडियो क्लिप और बैंक कर्मचारियों के साथ बीमा एजेंटों की बातचीत से पता चलता है कि इंश्योरेंस की बिक्री बढ़ाने के लिए रिश्वत और अनैतिक इंसेंटिव के बारे में खुलेआम चर्चा की जा रही है, और बैंकों के वरिष्ठ अधिकारी टारगेट पूरा करने के लिए कर्मचारियों पर दबाव डाल रहे हैं। यह स्पष्ट रूप से बैंकों की आचार संहिता और बीमा नियामक के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है, जो साफ़ तौर पर ऐसे प्रलोभनों पर रोक लगाते हैं क्योंकि इससे बीमा पॉलिसियां जबरन बेची जा सकती हैं, धोखाधड़ी होती है और ग्राहकों का पैसा खतरे में पड़ सकता है।
बैंकिंग व्यवसाय में लेनदार अक्सर चाहते हैं कि कर्ज लेने वालों का बीमा करा दिया जाए। यदि कर्ज लेने वाला वापस भुगतान करने में विफल रहता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो बीमा के द्वारा कर्ज की रकम चुकाई जा सकती है। ऐसा बीमा करने के लिए बैंकों का बीमा कंपनियों, या कभी-कभी अपनी ही सहयोगी फर्मों के साथ गठजोड़ होता है। कागज पर तो ऐसा लगता है कि ग्राहक के पास बीमा लेने या नहीं लेने का या पालिसी चुनने का विकल्प है, लेकिन व्यावहारिक रूप से बैंक ऐसा कोई विकल्प नहीं छोड़ते हैं।
बीमा कंपनियों का टारगेट हासिल करने और कमीशन के साथ मोटा इनाम घर ले जाने के लिए, बैंक अपने ग्राहकों को धोखे से पॉलिसियां बेच रहे हैं। कभी-कभी तो यह अवैध रूप से लोन अकाउंट्स एक्सेस करके उनसे बीमा की किश्त काट लेते हैं, जिससे कई ग्राहकों की ईएमआई बाउंस हो जाती है और क्रेडिट स्कोर ख़राब हो जाता है। ऐसे ग्राहकों को भविष्य में लोन मिलना कठिन हो जाता है, और उन्हें लोन के लिए अधिक भुगतान भी करना पड़ता है।
जांच में पता चला है कि कैसे कुछ बीमा कंपनियों के कर्मचारी बैंक के कर्मचारियों को मोटी रिश्वत देकर ज्यादा जानकारी न रखने वाले ग्राहकों को अपना शिकार बनाते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि कैसे यह अवैध वित्तीय लाभ बैंक कर्मचारियों को आंतरिक नियमों और आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए लुभा रहे हैं।
ट्विटर ऐसी शिकायतों से भरा पड़ा है जिनमें लोगों ने आरोप लगाया है की बैंकों ने उन्हें लोन (यहां, यहां, यहां), लॉकर सुविधा (यहां, यहां) या खाता खोलने के लिए अनिवार्य रूप से बीमा खरीदने के लिए मजबूर किया। बैंकों पर यह भी आरोप लगाया गया है कि वह उन ग्राहकों को सेवा नहीं देते जो ऐसा नहीं करते हैं (यहां, यहां, यहां)। यह ठीक वैसा ही है जैसे दवा कंपनियां अपनी दवाई लिखने के बदले में डॉक्टरों को कई तरह के उपहार देती हैं।
अशिक्षित ग्रामीणों से लेकर शहरी मध्यम वर्ग तक, हर कोई अवांछित बीमा लेने के कारण बड़ी मात्रा में पैसे गंवा सकता है। अक्सर, फिक्स्ड डिपॉजिट में निवेश करने के इच्छुक भोले-भाले ग्राहकों को धोखे से बीमा बेच दिया जाता है। इनमें से कई पॉलिसियों की कीमत लाखों रुपए है।
उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख सरकारी बैंक द्वारा समर्थित एक ग्रामीण बैंक के एक अधिकारी ने द कलेक्टिव को एक कॉल रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराई जिसमें एक बीमा कंपनी के अधिकारी द्वारा रिश्वत देने के निर्देश दिए जा रहे हैं। इन रिकॉर्डिंग्स में बीमा कंपनी के उस अधिकारी को अपने एजेंटों से ग्रामीण बैंक के एक कर्मचारी को रिश्वत देने के लिए पैसे इकट्ठा करने का आग्रह करते हुए सुना जा सकता है।
"अगर आप अकेले काम करेंगे तो आपको एक रुपए का भी बिज़नेस नहीं मिलेगा। जब तक [इस बैंक में] यह रीजनल मैनेजर है, मान लीजिए कि आपकी लॉटरी लगी है," एक बीमा अधिकारी ने कॉन्फ्रेंस कॉल में अपने एजेंटों से कहा। "इस रीजनल मैनेजर की एक मांग है। जब इनकी पहली पोस्टिंग यहां हुई थी तो हमने तय किया था कि हम उनके लिए हर महीने 10,000-12,000 रुपए का इंतजाम करेंगे।"
इस कॉल में बीमा कंपनी का अधिकारी अपने एजेंटों से जानना चाहता है कि क्या उन्हें बैंक मैनेजर की हथेली गर्म करने के लिए हर महीने 2,000-2,500 रुपए देने में कोई दिक्कत है। अधिकारी उन एजेंटों के प्रति रोष व्यक्त करता है जो अपने परिवार को छुट्टी पर ले जाने और बच्चों की जन्मदिन पार्टियों पर खर्च करते हैं लेकिन अपना बिज़नेस बढ़ाने वाले किसी व्यक्ति को पैसे देने के इच्छुक नहीं हैं।
"ऐसे लोग हमें नहीं चाहिए," इंश्योरेंस अधिकारी सख्ती से कहता है। फिर वह एक एजेंट से कहता है कि सभी का "योगदान" इकट्ठा करके उसे एक लिफाफे में डालकर रीजनल मैनेजर के साथ उसकी अगली बैठक से पहले उसे सौंप दे।
दूसरी क्लिप में एक उत्तेजित एजेंट अपने सीनियर से पूछ रहा है कि वह अपनी मेहनत की कमाई में से हिस्सा क्यों दे।
इन कॉल्स में मौजूद बीमा कंपनी के कर्मचारियों से द कलेक्टिव की बात नहीं हो सकी। कॉल में शामिल कर्मचारियों में से एक ने हमसे बात करने से इनकार कर दिया, इसलिए उनकी कंपनी और संबंधित बैंक का नाम गुप्त रखा गया है।
हालांकि, हमने इस बीमा कंपनी के एक पूर्व कर्मचारी से बात की जिनका नाम इन दोनों कॉल रिकॉर्डिंग में आया था। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने माना कि बैंक के अधिकारियों को नियमित रूप से कमीशन दिया जाता है। उन्होंने कहा कि उन्होंने खुद कंपनी की ओर से कुछ बैंक कर्मचारियों को आईफोन गिफ्ट किए हैं।
महंगे उपहार
उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में आंध्र प्रदेश, पूर्व में त्रिपुरा से लेकर पश्चिम में गुजरात तक -- देश भर के बैंक कर्मचारियों ने हमें ऐसे सबूत दिखाए जिनसे पता चलता है कि उनके बैंकों में कर्मचारियों को विदेश यात्रा, उपहार और रिश्वत का प्रलोभन देकर जबरन इंश्योरेंस प्रोडक्ट बेचने के लिए प्रेरित किया गया।
यह सबूत सात बैंकों से संबंधित हैं, और इनमें शामिल हैं: दो व्हिसलब्लोअर शिकायतें जिनमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है; जबरन बीमा बेचने की तीन ग्राहकों की शिकायतें; तीन कॉल रिकॉर्डिंग; बीमा कंपनियों द्वारा आयोजित छह पार्टियों की तस्वीरें और वीडियो; और बैंक अधिकारियों और बीमा कंपनी के कर्मचारियों से जुड़े 13 व्हाट्सएप समूहों में बातचीत के स्क्रीनशॉट। बैंक कर्मचारियों का कहना है कि वरिष्ठ प्रबंधक टारगेट निर्धारित करते हैं, जिससे अधीनस्थ कर्मचारियों पर दबाव पड़ता है कि वह महंगी बीमा पॉलिसी खरीदने के लिए ग्राहकों को धोखा दें या मजबूर करें।
द कलेक्टिव ने बैंक ऑफ बड़ौदा के जिन अधिकारियों से बात की उन्होंने कहा कि बीमा एजेंट उनके सीनियर्स को आईफोन उपहार में देते हैं। बैंक के पांच रीजंस के कर्मचारियों ने अपने संबंधित रीजन के बैंकिंग व्हाट्सएप ग्रुप्स के स्क्रीनशॉट हमें दिए, जिसमें इंडियाफर्स्ट लाइफ इंश्योरेंस के अधिकारी सेल्स टारगेट पूरा करने के लिए बैंक कर्मचारियों को आईफोन, मैकबुक, टैबलेट और स्मार्टवॉच जैसे पुरस्कारों का वादा कर रहे हैं।
इंडियाफर्स्ट बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और बड़ौदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक की इंश्योरेंस पार्टनर है। इंडियाफर्स्ट के 65% शेयर बैंक ऑफ बड़ौदा के पास हैं।
बैंक ऑफ बड़ौदा अधिकारी कर्मचारी (आचरण) विनियम के अनुसार, बैंक कर्मचारियों का उपहार स्वीकार करना प्रतिबंधित है। विनियमों में कहा गया है: "इन विनियमों में किसी अन्य प्रावधान के अलावा, कोई भी अधिकारी-कर्मचारी कोई उपहार स्वीकार नहीं करेगा न ही अपने परिवार के किसी भी सदस्य या अपनी ओर से कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति को कोई उपहार स्वीकार करने की अनुमति देगा।" इसमें आगे कहा गया है: "सामान्य व्यवहार के अनुरूप एक अधिकारी अपने साथ आधिकारिक व्यवहार रखने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्थान से कोई उपहार स्वीकार नहीं करेगा।"
बैंक के नियमानुसार जितने मूल्य के उपहार स्वीकार किए जा सकते हैं, उनकी तुलना में इन उपहारों की कीमत कहीं अधिक है। नियम स्पष्ट रूप से कहते हैं, "यदि उपहार का मूल्य 75/- रुपए से अधिक है तो अधिकारी सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना कोई उपहार स्वीकार नहीं करेगा।" जबकि नवीनतम आईफोन के एंट्री-लेवल मॉडल की कीमत 75,000 रुपए है, और सबसे सस्ते मैकबुक की कीमत 80,000 रुपए है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के एक कर्मचारी ने हमें पिछले साल सितंबर में हुई एक वीडियो कॉन्फ्रेंस का फुटेज दिया, जिसमें एक वरिष्ठ अधिकारी को शाखा प्रबंधकों को "इंडियाफर्स्ट" अभियान के "महत्वपूर्ण कार्य" के लिए तैयार रहने के लिए कहते हुए सुना जा सकता है।
"अगर कोई ग्रामीण शाखा 50 लाख रुपए का बिज़नेस करती है, तो उसे एक आईपैड मिलेगा। ध्यान से सुनिए, यह [ऑफर] केवल एक बार के लिए है। हमेशा के लिए नहीं रहेगा; सिर्फ़ एक बार। एक करोड़ रुपए का बिजनेस, तो आईफोन मिलेगा। 1.5 करोड़ रुपए का बिज़नेस करने पर मैकबुक। इस पर एक नजर रखें।"
भारत का इंश्योरेंस मार्केट तेज़ी से बढ़ रहा है और दुनिया में सबसे बड़े बाज़ारों में से एक बनने के लिए तैयार है। वर्तमान में 57 बीमा कंपनियां हैं, जिनमें से 24 जीवन बीमा व्यवसाय में और 34 गैर-जीवन बीमा व्यवसाय में हैं। इस आकर्षक उद्योग में अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए उत्सुक बीमा कंपनियां अपने सेल्स कर्मचारियों पर दबाव डालती हैं, जो त्वरित परिणामों के लिए शॉर्टकट ढूंढते हैं। यदि बैंक मैनेजर की सहायता मिले तो एजेंट अपने सेल्स टारगेट को आराम से पूरा कर सकता है।
छत्तीसगढ़ के एक बड़े सरकारी बैंक के ब्रांच मैनेजर ने नाम न छापने की शर्त पर हमें एक व्हाट्सएप स्क्रीनशॉट दिया, जिसमें एक बीमा कंपनी के एजेंट ने उन्हें बिज़नेस देने के बदले में "कमीशन", एक तरह से रिश्वत, की पेशकश की थी।
जांच में पाया गया कि इस तरह के प्रलोभन बैंक वालों पर जादू की तरह काम करते हैं। भारत के तीसरे सबसे बड़े सरकारी लेनदार पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के कर्मचारियों को भी बैंक के बीमा पार्टनर, पीएनबी मेटलाइफ द्वारा आईफोन और दूसरे इनामों की पेशकश की गई।
और देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई में एक मैनेजर ने अपने कर्मचारियों को बीमा बेचने के इनाम के रूप में एसबीआई लाइफ द्वारा दिए गए सभी चांदी के सिक्कों को प्राप्त करने के लिए कहा।
रिश्वत और इनाम की ऐसी पेशकश बैंकों के आधिकारिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले व्हाट्सएप समूहों में की जाती है, जिनमें बैंकों के वरिष्ठ प्रबंधक भी होते हैं। भले ही बैंकों के नियम कहते हैं कि कोई भी संगठनात्मक कार्य व्हाट्सएप पर नहीं किया जाना चाहिए, यह प्लेटफॉर्म कर्मचारियों के साथ बातचीत करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों का पसंदीदा माध्यम बना हुआ है। हालांकि कर्मचारी यूनियन लगातार मांग करते रहे हैं कि आधिकारिक संचार केवल आधिकारिक माध्यमों के द्वारा हो, व्हाट्सएप पर नहीं। बैंक के कर्मचारियों ने बताया कि बीमा कंपनियों के एजेंट और मार्केटिंग मैनेजर न केवल बैंकों के व्हाट्सएप ग्रुप बल्कि उनकी आंतरिक समीक्षा बैठकों का भी हिस्सा होते हैं।
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने इस बात की पुष्टि की है कि इस तरह के ऑफर देने वाले एजेंट बीमा कंपनियों के कर्मचारी हैं, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि वे यह काम एक व्यवस्थित कॉर्पोरेट नीति के तहत कर रहे थे। कर्मचारी या एजेंट जब व्हाट्सएप जैसे अनौपचारिक चैनलों का इस्तेमाल करते हैं, तो कंपनियों के लिए आसान हो जाता है कि वह किसी गलत काम के आरोप लगने पर उक्त कर्मचारी के कार्यों से खुद को अलग कर सकें।
बीमा कंपनियों ने अपने जवाब में कहा कि उन्होंने बिक्री बढ़ाने के लिए ऐसी योजनाओं को बढ़ावा नहीं दिया और जो भी कर्मचारी ऐसा करते हुए पाया गया, उसके खिलाफ वे कार्रवाई करेंगे।
पिछले 18 महीनों में बैंक ऑफ बड़ौदा के कर्मचारी यूनियनों ने इस गिफ्ट कल्चर और/या इंडियाफर्स्ट की पॉलिसियों की अनैतिक बिक्री की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए बैंक प्रबंधन को छह पत्र भेजे। ये यूनियनें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल में स्थित हैं।
केरल यूनियन के पत्र में कहा गया है कि एक रीजनल मैनेजर ने बीमा सेल्स टारगेट को पूरा करने के लिए शाखा प्रमुखों पर इतना दबाव डाला कि कुछ को इन्हें पूरा करने और मालिकों से पीछा छुड़ाने के लिए अपने लिए ही पॉलिसी खरीदनी पड़ी।
द कलेक्टिव ने बैंक ऑफ बड़ौदा के दो कर्मचारियों के खातों के विवरण देखे हैं, दोनों में इंडियाफर्स्ट पॉलिसी के लिए 50,000 रुपए का डेबिट दिखाया गया है। बैंक के कर्मचारियों ने द कलेक्टिव को बताया कि उनके सीनियर्स उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उन्हें इतना परेशान करते हैं कि कर्मचारी अपने टारगेट को पूरा करने के लिए अनैतिक शॉर्टकट का सहारा लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
लेकिन कभी-कभी वे पैसे वापस पाने के लिए जुगाड़ का सहारा लेते हैं। टारगेट पूरा करने के लिए कर्मचारी अपनी जेब से पैसे देकर पॉलिसी खरीदते हैं, लेकिन वे पॉलिसी के लिए जरूरी डेटा प्रदान नहीं करते हैं। इस डेटा के अभाव में उनका बीमा 'आवेदन' अस्वीकार कर दिया जाता है और पैसे वापस मिल जाते हैं।
द कलेक्टिव ने इंडियाफर्स्ट को एक ईमेल भेजकर बैंक ऑफ बड़ौदा कर्मचारी यूनियनों के पत्रों के बारे में पूछा, जिनमें कंपनी पर बैंक कर्मचारियों को महंगे उपहार देने का आरोप लगाया गया है। इंडियाफर्स्ट ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा: “हमारी बिज़नेस प्रैक्टिस के बारे में लगाए गए यह आरोप दुर्भावनापूर्ण और असत्यापित हैं। यह इंडियाफर्स्ट लाइफ और बैंक ऑफ बड़ौदा को बदनाम करने के लिए लगाए जा रहे हैं। इन आरोपों में कोई मेरिट या आधार नहीं है, और हम अपनी प्रतिष्ठा और छवि की रक्षा के लिए कार्रवाई करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।”
इंडियाफर्स्ट ने कहा कि वह गिफ्ट या सैर-सपाटे के रूप में कोई इंसेंटिव नहीं देती है। कंपनी ने आगे कहा: “हमें ऐसे किसी भी मामले की जानकारी नहीं है। यदि हम अपने किसी कर्मचारी को ऐसी गतिविधियों में लिप्त पाते हैं तो हम उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई करेंगे।”
बैंक ऑफ बड़ौदा के एक प्रवक्ता ने द कलेक्टिव को बताया कि “एक जिम्मेदार कॉर्पोरेट एजेंट के तौर पर, बैंक नियमों का पालन करता है और इंश्योरेंस बिज़नेस के संबंध में भी उद्योग के सभी दिशानिर्देशों का पालन करता है।”
द कलेक्टिव ने कई बैंकों के कर्मचारी संघों द्वारा भेजे गए दर्जनों पत्रों की समीक्षा की और सभी बैंकों के कर्मचारियों से बातचीत की, जिससे इन अनौपचारिक योजनाओं के एक पूरे इकोसिस्टम का पता चला। नियम और कानून कागजों पर ही हैं, और वरिष्ठ प्रबंधक उनकी पूरी तरह से उपेक्षा करते हुए सारा खेल चलाते हैं और कर्मचारियों को उनके गैरकानूनी आदेशों का पालन करने के लिए धमकाते हैं।
मैनेजमेंट को लिखे पत्रों में कर्मचारी संघों ने आरोप लगाया है कि सीनियर मैनेजर असंभव बिज़नेस टारगेट पूरा करने के लिए शाखा कर्मचारियों को इस तरह की धमकियां देकर मजबूर करते हैं, जैसे: “यदि टारगेट पूरा नहीं हो रहा है तो धोखाधड़ी करो”, “या तो अपना गला काटो या किसी ग्राहक का”, “अगर कोई स्टाफ किसी बात का विरोध करता है तो उसकी फ़ाइल खोल दो”, “तुम्हें उठाकर दूर-दराज के किसी गांव में फेंक दूंगा”।
यूनियनों का दावा है कि उन्होंने अपने पत्रों में मैनेजमेंट को बेईमानी के सबूत भेजे हैं। उनकी मांग है कि इसकी जांच हो और बीमा व्यवसाय को बैंकों से अलग किया जाए।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2000 में बैंकों के माध्यम से बीमा प्रोडक्ट्स की बिक्री की अनुमति दी थी, जिसका उद्देश्य था बैंकों के ग्राहकों की संख्या और लोगों के उनपर विश्वास की सहायता से अधिक से अधिक लोगों तक बीमा कवर पहुंचाना।
विलासितापूर्ण यात्राएं, पार्टियां
उपहार और कमीशन के अलावा, बीमा कंपनियां बैंक के कर्मचारियों को हॉलिडे स्पॉट्स की यात्रा और लक्जरी होटलों में ठहरने का भी प्रलोभन देती हैं। ये कंपनियां बैंक कर्मचारियों को न केवल भारत में बल्कि विदेशों -- दुबई, स्विट्जरलैंड, सिंगापुर, थाईलैंड -- के पर्यटन स्थलों पर भी ले जाती हैं। कुछ बीमा कंपनियां इन यात्राओं पर फ़िल्मी सितारों और खिलाड़ियों से मिलने-जुलने की व्यवस्था भी करती हैं।
कंपनियां इन्हें 'ट्रेनिंग प्रोग्राम' कहती हैं। हमने ऐसे एक प्रोग्राम पर नजर डाली। इसमें 'ट्रेनिंग' केवल एक बाहरी आवरण था। ऐसा ही एक 'लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम' पिछले फरवरी में केरल के कोच्चि में बैंक ऑफ बड़ौदा के अधिकारियों के लिए रखा गया था, जिसे एक इवेंट मैनेजमेंट फर्म ने तैयार किया था।
82 पेज के इस इवेंट प्लान में कहा गया है कि बैंक के 200 कर्मचारियों को हवाई जहाज से ले जाकर एक पांच सितारा होटल में ठहराया जाना था। तीन दिन, दो रात का यह कार्यक्रम मनोरंजक गतिविधियों से भरा हुआ था जैसे कॉकटेल इवनिंग, डीजे नाइट, बैकवाटर क्रूज़, बोट रेस, डांस शो, बैंड परफॉरमेंस, सेल्फी पॉइंट और ड्रोन फोटो शूट आदि। शेड्यूल में केवल एक स्लॉट ट्रेनिंग के लिए था, लेकिन उसे भी एक पुरस्कार समारोह, मनोरंजन कार्यक्रम और रात्रिभोज के साथ जोड़ दिया गया था।
इवेंट प्लान के प्रतिभागियों की सूची में बैंक ऑफ बड़ौदा के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक जॉयदीप दत्ता रॉय भी थे, जिन्हें एक प्रेसिडेंशियल सूट और एक लक्जरी कार आवंटित की गई थी। प्लान में बैंक के वेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रमुख वीरेंद्र सोमवंशी और अन्य अधिकारियों को भी लक्जरी निवास आवंटित किए गए थे। द कलेक्टिव इस बात की पुष्टि नहीं कर सका कि क्या यह कार्यक्रम उसी प्रकार हुआ या नहीं जैसा अपेक्षित था।
इसी तरह, द कलेक्टिव के पास पिछले अक्टूबर में तमिलनाडु की एक यात्रा की तस्वीरें हैं जिसे बीमा कंपनी एसबीआई लाइफ ने एसबीआई बैंक के कर्मचारियों के लिए आयोजित किया था। इस कार्यक्रम को एसबीआई अचीवर्स संगमम कहा गया था। कर्मचारियों को एक चार सितारा रिसॉर्ट में ठहराया गया और उनकी मुलाकात एक भारतीय क्रिकेट दिग्गज से कराई गई। हमारे पास पिछले साल बैंक ऑफ इंडिया द्वारा प्रायोजित उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक आर्यावर्त बैंक के कर्मचारियों के लिए आयोजित दो पुरस्कार समारोह-पार्टियों की तस्वीरें भी हैं। इनमें से एक दिसंबर 2022 में लखनऊ के एक पांच सितारा होटल में रखी गई थी।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत, द कलेक्टिव ने इन बैंकों से पूछा कि इन कार्यक्रमों के लिए बिल का भुगतान किसने किया। आर्यावर्त बैंक ने कहा कि उसे इन पुरस्कार समारोहों के बारे में कुछ भी पता नहीं है और इसलिए उसे कोई जानकारी नहीं है। एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा ने कहा कि उनके बीमा पार्टनर -- क्रमशः एसबीआई लाइफ, और निवा बूपा और स्टार हेल्थ -- ने इन आयोजनों पर खर्च किया।
चूंकि इन बैंकों की नैतिकता नीति स्पष्ट रूप से कहती है कि बैंक के कर्मचारियों को किसी भी तरह का आतिथ्य या मनोरंजन स्वीकार नहीं करना चाहिए, और यदि उन्हें कोई उपहार मिले तो उसके बारे में बैंक को बताया जाना चाहिए, द कलेक्टिव ने सूचना के अधिकार के तहत एसबीआई से उसके कर्मचारियों एसबीआई लाइफ से प्राप्त उपहार और आतिथ्य का विवरण मांगा। बैंक ने जवाब दिया कि ऐसा करने से उसकी 'कॉम्पिटेटिव पोजीशन' खतरे में पड़ जाएगी।
भारतीय स्टेट बैंक की आचार संहिता, जो सभी कर्मचारियों पर लागू होती है, उसमें कहा गया है: “हम अपनी आचार संहिता में निर्दिष्ट [नियमों] के अलावा कोई उपहार, मनोरंजन या अन्य लाभ न स्वीकार करेंगे, न पेशकश करेंगे या देंगे। हम अपनी संहिता का पूरी तरह से पालन करेंगे और प्राप्त उपहारों की घोषणा करेंगे।”
लेकिन वर्जित होने के बावजूद ऐसी यात्राएं और पार्टियां बहुत आम हैं। बैंक कर्मचारियों ने द कलेक्टिव को व्हाट्सएप ग्रुप के स्क्रीनशॉट दिखाए, जिनमें बीमा कंपनियां सेल्स टारगेट पूरा करने के लिए ऐसी यात्राओं का वादा करती हैं।
चार्टर्ड अकाउंटेंट और फॉरेंसिक अकाउंटिंग फर्म इंडियाफॉरेंसिक के निदेशक मयूर जोशी ने द कलेक्टिव को बताया कि बैंक कर्मचारियों द्वारा अपने संगठन के व्यावसायिक भागीदारों से उपहार लेना या यात्राओं पर जाना अनैतिक और अवैध है। जोशी निजी बैंकों के ऑडिटर के रूप में भी काम करते हैं।
द कलेक्टिव ने एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा के अधिकारियों जॉयदीप दत्ता रॉय और वीरेंद्र सोमवंशी को लिखा, जिन्होंने उपरोक्त कार्यक्रम में भाग लिया था और इस तरह के भव्य आतिथ्य को स्वीकार करने की नैतिकता पर उनसे सवाल किया। द कलेक्टिव ने आर्यावर्त बैंक, यूनियन बैंक और उनके बीमा पार्टनर्स को भी मेल भेजे, जो इन यात्राओं और उपहारों की पेशकश करते हैं। उनकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतजार है।
इस तरह के आकर्षक प्रलोभनों का दूसरा पहलू यह है कि वरिष्ठ बैंक मैनेजर टारगेट पूरा करने के लिए अपने अधीनस्थों पर दबाव डालते हैं, जिससे वह अवैध तरीके अपनाने के लिए मजबूर होते हैं। कई बैंकों के कर्मचारियों ने द कलेक्टिव को बताया कि उनके संगठनों ने एक अवैध शॉर्टकट का सहारा लिया: वे टारगेट पूरा करने के लिए ग्राहकों की सहमति के बिना ही बीमा के लिए उनके लोन अकाउंट से पैसे काट लेते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि किसी होम लोन ग्राहक की ईएमआई 35,000 रुपए की है और उसके बैंक खाते से ऑटो डेबिट चालू है और ऐसे में यदि बैंक ग्राहक को सूचित किए बिना लोन राशि के साथ 7,000 रुपए की बीमा राशि डेबिट कर देता है, तो दो संभावनाएं हैं: या तो ग्राहक को पता नहीं चलेगा और धोखाधड़ी हो जाएगी या अपर्याप्त धन के कारण ईएमआई बाउंस हो सकती है।
त्रिपुरा में एसबीआई के एक चीफ मैनेजर ने पिछले साल इस घोटाले को उजागर किया था। उन्होंने आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजे गए एक संदेश में कहा, "ऐसा हमारे संज्ञान में आया है कि हमारी अधिकांश शाखाएं बीमा करने के लिए लोन अकाउंट से डेबिट कर रही हैं।" एसबीआई के एक कर्मचारी ने हमारे साथ उस ग्रुप के स्क्रीनशॉट शेयर किए जिसमें यह संदेश भेजा गया था।
इसके परिणामस्वरूप कई खातों में कर्ज का पुनर्भुगतान विफल हो गया है। एक अन्य स्क्रीनशॉट में चीफ मैनेजर कह रहे हैं, "हमारे बार-बार फॉलो-अप के बावजूद, शाखाएं बीमा के लिए लोन खातों से डेबिट कर रही हैं।" इस संदेश से साथ एक शाखा के उन खातों की सूची दी गई है जो बीमा के लिए डेबिट के कारण अपने लोन की किश्त नहीं भर सके। द कलेक्टिव ने यह सूची देखी है।
हमें यह स्क्रीनशॉट मुहैया कराने वाले एसबीआई के कर्मचारी ने बताया कि चूंकि इसके चलते कुछ ग्राहक अपनी ईएमआई नहीं भर पाते, इसलिए उनके सिबिल स्कोर (कर्ज लेने की योग्यता) पर भी असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि उनकी शाखा में जो ग्राहक इससे प्रभावित हुए उनमें से कई किसान और सेना के जवान थे।
कई बैंक कर्मचारियों का आरोप है कि जब खातों से बीमा प्रीमियम अवैध रूप से डेबिट किया जाता है, तो कोई पॉलिसी जारी नहीं की जाती है और ग्राहक को इनके बारे में तभी पता चलता है जब उनकी ईएमआई डिफ़ॉल्ट होती है। यानि कि खाताधारक बिना किसी लाभ के उनकी सहमति के बिना बीमा कंपनियों को भुगतान करते हैं।
बड़ौदा उत्तर प्रदेश ग्रामीण बैंक के एक रीजनल मैनेजर द्वारा शाखा प्रबंधकों को भेजे गए दो पत्रों से यह स्पष्ट होता है कि लोन अकाउंट से गुप्त रूप से बीमा प्रीमियम डेबिट करके ग्राहकों को अवैध रूप से बीमा बेचे जाने का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है।
दोनों पत्र इंडियाफर्स्ट लाइफ इंश्योरेंस की सेल्स कैंपेन से संबंधित हैं और इनके अंत में एक चेतावनी दी गई है: “किसी भी लोन अकाउंट से बीमा प्रीमियम डेबिट नहीं किया जाना चाहिए।”
द कलेक्टिव द्वारा बैंक ऑफ बड़ौदा को सवाल भेजे जाने के एक दिन बाद, इसके मुख्य कार्यालय ने आंतरिक रूप से दो सर्कुलर जारी किए। "बीमा उत्पादों की गलत बिक्री" विषय के अंतर्गत सभी शाखाओं को भेजे गए एक सर्कुलर में नियमों का कड़ाई से अनुपालन करने का आह्वान किया गया है और जोर देकर कहा गया है कि कोई भी बिक्री जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए। सभी क्षेत्रीय प्रमुखों को भेजे गए दूसरे सर्कुलर में माना गया है कि "गलत बिक्री पर सवाल उठाए जा रहे" हैं और 31 मार्च तक सभी बिज़नेस कैंपेन और रिवॉर्ड प्रोग्राम रोकने का आह्वान किया गया है।
दोनों सर्कुलर बैंक के वेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज के प्रमुख वीरेंद्र सोमवंशी द्वारा साईन किए गए हैं। उनका नाम भी बैंक के दो इंश्योरेंस पार्टनर्स द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उपस्थित लोगों की सूची में है, जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के एक प्रवक्ता ने हमें बताया: "हमारे जीवन बीमा पार्टनर द्वारा किसी भी ग्राहक को शामिल करने के दौरान ग्राहक की सहमति ली जाती है। इसके बाद पॉलिसी की एक कॉपी ग्राहक के पंजीकृत पते पर भेज दी जाती है।”
"बैंक ने एक व्यापक आचार संहिता और दिशानिर्देश लागू किए हैं और इनको लगातार मजबूत किया जा रहा है जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि हमारे फील्ड कर्मचारी ग्राहकों को बीमा प्रोडक्ट बेचते समय इन दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने के महत्व को समझें।"
बीमा उत्पादों की जबरन या अनैतिक बिक्री की समस्या इतनी बढ़ चुकी है और इसका प्रभाव इतना गंभीर है कि अब ऐसे संगठन आ गए हैं जो पीड़ितों को इन मुद्दों से निपटने में मदद करते हैं। ऐसे ही एक संगठन इंश्योरेंस एंजल्स के संस्थापक और आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस के पूर्व कर्मचारी नितिन बालचंदानी ने कहा कि सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के ग्राहकों ने उन्हें धोखाधड़ी से बीमा बेचे जाने की सूचना दी है।
“[बैंक] में हर किसी को इसकी जानकारी है लेकिन वे आंखें मूंद लेते हैं क्योंकि आखिरकार बैंक बीमा कंपनियों से कमीशन प्राप्त करके कमाते हैं और कर्मचारियों को अप्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं जैसे प्रारंभिक पदोन्नति और पुरस्कार या बीमा कंपनियों द्वारा आयोजित बीमा प्रतियोगिताएं जीतकर मान्यता,” उन्होंने कहा।
इंश्योरेंस फ्रॉड के पीड़ितों की मदद करने वाली एक अन्य कंपनी इंश्योरेंस समाधान की सह-संस्थापक शिल्पा अरोड़ा ने कहा कि इस धोखाधड़ी से गृहणियां और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि इन वर्गों के लोगों में वित्तीय समझ कम है और इसलिए वे सबसे अधिक असुरक्षित हैं।
“हमने देखा है कि बुज़ुर्गों को उनके परिवारों ने छोड़ दिया क्योंकि उन्हें गलत तरीके से [बीमा] बेच दिया गया था और अब परिवार उनसे नाराज़ है। उन्होंने अपना सारा पैसा गंवा दिया है। बुजुर्ग लोग हमारे पास रोते हुए आते हैं,” उन्होंने कहा।
सरकार को है जानकारी
ऐसा नहीं है कि सरकारी अधिकारी बीमा बेचने के लिए रिवॉर्ड, रिश्वत देने या गलत/जबरन बिक्री के इन क्रियाकलापों से अनजान हैं। लेकिन इनमें सुधार के लिए किए जा रहे उपाय बहुत सतही हैं।
2019 में सरकारी स्वामित्व वाले पंजाब एंड सिंध बैंक के अधिकारियों को बैंक के बीमा पार्टनर अवीवा इंश्योरेंस से रिश्वत लेने का दोषी पाया गया था। न्यूज़क्लिक के एक आर्टिकल के अनुसार, एक जांच से पता चला कि बैंक अधिकारियों को 2 लाख रुपए से लेकर 22 लाख रुपए तक का कमीशन दिया गया था, जिसके बदले में उन्होंने बैंक के ग्राहकों को बीमा खरीदने के लिए मजबूर किया था।
2020 में आरबीआई की एक रिपोर्ट में माना गया कि "असुरक्षित ग्राहक अभी भी अनपेक्षित उत्पादों की बिक्री से पीड़ित हैं"।
नवंबर 2022 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) ने सभी बैंकों को पत्र लिखकर कहा कि उसे गलत तरीके से बीमा बेचे जाने की शिकायतें मिली हैं और बैंकों को इन अनैतिक कृत्यों से बचने के लिए कदम उठाने चाहिए।
भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने बैंक कर्मचारियों को इंसेंटिव देने और प्रशिक्षण की आड़ में विदेश यात्राएं आयोजित करने के लिए कई मौकों पर (यहां, यहां, यहां) बीमा कंपनियों पर जुर्माना लगाया है।
लेकिन यह किकबैक कल्चर अभी भी प्रचलित है और बीमा की अनैतिक बिक्री भी जारी है।
इंश्योरेंस समाधान की सह-संस्थापक अरोड़ा ने बताया कि कैसे बेईमान बीमा एजेंट और/या बैंक कर्मचारी आईआरडीएआई द्वारा शुरू किए गए धोखाधड़ी-रोकथाम के इस कदम को दरकिनार कर देते हैं। उन्होंने कहा कि आईआरडीएआई ने बीमा कंपनियों को अनिवार्य रूप से ग्राहकों को कॉल करने, उनके द्वारा ली गई पॉलिसी की विशेषताओं के बारे में बताने, ग्राहकों की सहमति लेने और उसके बाद ही पॉलिसी एक्टिवेट करने को कहा है। हालांकि, उन्होंने कहा कि बीमा एजेंट और बैंक कर्मचारी ग्राहकों को इस बात के लिए तैयार करते हैं कि वे इस कॉल को महज औपचारिकता मानें और हर सवाल का जवाब हां में दें। उन्होंने कहा कि कभी-कभी ग्राहकों को यह कॉल भी नहीं आती क्योंकि उनका फॉर्म भरने वाला एजेंट/कर्मचारी नामांकन फॉर्म में अपना फोन नंबर दे देता है।
इंश्योरेंस एंजल्स के बालचंदानी ने कहा कि उनके पास ऐसे कई फॉर्मों की प्रतियां हैं जिनमें मोबाइल नंबर फर्जी हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हैं जब उन्होंने धोखे से की जाने वाली ऐसी बिक्रियों पर बीमा कंपनियों को चुनौती दी, लेकिन कंपनी ने दावा किया कि पॉलिसी फोन पर ग्राहक की सहमति प्राप्त करने के बाद ही शुरू की गई थी। उन्होंने कहा कि कॉल रिकॉर्डिंग प्राप्त करने पर उन्हें पता चला कि टेलीफोनिक सत्यापन पूरा करने वाला 'ग्राहक' वास्तव में एक कोई और था।
यह लेख सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी, दिल्ली की स्मितु कोठारी फ़ेलोशिप 2023 के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ है।