Agriculture ministry

संसद की अवहेलना

 मध्य प्रदेश में किसानों की हत्या पर रिपोर्ट देने का वादा करके टाल-मटोल करती रही सरकार

घटना के सात साल बाद भी मोदी सरकार ने अभी तक संसद को यह रिपोर्ट नहीं दी है कि मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने आंदोलन कर रहे छह किसानों की हत्या करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है, और किसानों की समस्या को कम करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

त्तासीन नेता संसद में बैठ कर जनता को कई आश्वासन देते हैं। इस श्रृंखला में द कलेक्टिव इस बात की जांच कर रहा है कि उन आश्वासनों का क्या हुआ, क्योंकि हमने अपने पाठकों से वादा किया है कि हम शक्तिशाली लोगों की जवाबदेही तय करेंगे।

नई दिल्ली: साल 2017: मध्य प्रदेश पुलिस ने कृषि नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोली चलाई, जिसमें छह प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। इस घटना के बाद देशभर में आक्रोश फैल गया, जो जल्द ही संसद तक भी पहुंच गया।

घटना पर लोकसभा में चर्चा हुई। राज्यसभा में एक सवाल उठाया गया जिसमें केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से पूछा गया कि क्या उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार से किसान आंदोलन के कारणों पर रिपोर्ट मांगी है, क्या उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है जिन्होंने गोलियां चलाईं और पुलिस हिंसा का सामना करने वाले किसानों को क्या राहत दी गई?

तत्कालीन कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने राज्यसभा को बताया कि हत्या पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है। 

संसद ने इसे एक आश्वासन माना, यानी अब रिपोर्ट के निष्कर्षों को सदन के पटल पर रखना सरकार के लिए जरूरी था।

कृषि मंत्रालय ने संसद को आश्वासन दिया कि किसानों के आंदोलन पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है। स्रोत: डिजिटल संसद

हमने अपनी खोजी श्रृंखला 'पार्लियामेंट डिफाइड' (संसद की अवहेलना) के इस हिस्से में हमने सरकार के इस आश्वासन की समीक्षा की, और पाया कि जून 2017 में गोलीबारी के सात साल बाद भी, केंद्र सरकार ने उक्त रिपोर्ट पेश नहीं की है। इसके बजाय, सरकार ने आश्वासन को पूरी तरह से खत्म करने का प्रयास करके संसद को रिपोर्ट मांगने से रोकने की कोशिश की।

हालांकि सरकारी आश्वासनों पर राज्यसभा की समिति इस मामले पर नरम नहीं पड़ी। यह समिति एक वाचडॉग है जो सदनों में किए गए वादों पर जवाबदेही तय करती है। लेकिन शिवराज सिंह चौहान अब केंद्रीय कृषि मंत्री हैं और अब उनके पास संसद के माध्यम से जनता के सामने मुख्यमंत्री के रूप में खुद की ही जवाबदेही तय करने की जिम्मेदारी है।

इसकी संभावना कम है कि चौहान को किसी परेशानी या शर्मिंदगी का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि दोनों सदनों के अंदर किए गए वादों के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए बनी विस्तृत प्रक्रियाएं बुरी तरह विफल रही हैं।

वैसे तो भारत की जनता नेताओं के ऐसे बड़े-बड़े वादों की आदी हो चुकी है जिनको पूरा करना संभव नहीं लगता, लेकिन संसद में दिए गए आश्वासनों का एक आदर और महत्व होता है, जिसे सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करने की प्रणाली द्वारा बरकरार रखा जाता है। "पार्लियामेंट डिफाइड" यानि "संसद की अवहेलना" हमारी खोजी श्रृंखला है जिसमें हम इन संसदीय वादों पर प्रकाश डालते हैं और उनके परिणामों का पता लगाते हैं।

पिछले पांच सालों में 55 मंत्रालयों को कवर करने वाली हजारों पन्नों की 100 से अधिक संसदीय रिपोर्टों के विस्तृत विश्लेषण के बाद, हमारे संवाददाताओं  ने सरकारी आश्वासनों की असलियत को उजागर किया है।

खोजी श्रृंखला के इस तीसरे भाग में हम देखेंगे कि कैसे सरकारें अक्सर नागरिकों के प्रति जवाबदेही से बचने के लिए दो तरह के जवाब देकर मामले को टाल देती हैं --  "हमने एक रिपोर्ट मांगी है" और "हमने एक समिति का गठन किया है"। और यह भी देखेंगे कि इस मामले में केंद्र सरकार किसानों की हत्याओं की जिम्मेदारी तय करने की मांग को कितनी आसानी से दबाने में सफल रही।

क्या था पूरा मामला

खेती करने के संघर्ष में मध्य प्रदेश के किसान कई समस्याओं से जूझ रहे थे, जिनमें से कई केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों के कारण उत्पन्न हुईं थीं।

मई 2016 में केंद्र सरकार ने राज्य की प्रमुख फसल दालों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। उसी साल भारत में दालों की रिकार्ड फसल हुई। जबकि सरकार ने 6.6 मिलियन टन दालों का आयात किया। एक ओर निर्यात पर प्रतिबंध और दूसरी ओर एक दशक में सबसे अधिक आयात, किसान अपनी फसल घरेलू व्यापारियों को औने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर हो गए।

नवंबर 2016 में और बुरी खबर आई। सरकार ने रातोंरात नोटबंदी कर 500 और 1,000 के नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया और 80% नकदी अवैध हो गई, जिससे नकदी पर पनपने वाली कृषि अर्थव्यवस्था को और नुकसान पहुंचाया। जून 2017 आते-आते घरेलू बाजार में दालों से लेकर गेहूं तक मध्य प्रदेश में उगाई जाने वाली फसलों के दामों में भारी गिरावट आई।

एक के बाद एक झटके से किसान उबर नहीं पा रहे थे। राज्य की किसान यूनियनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और किसान अपनी मांगों को लेकर सडकों पर उतर आए। किसान चाहते थे कि सरकार उनकी फसलों के लिए ज्यादा पैसे दे। किसान चाहते थे कि सरकार वह कीमतें दे जिनका सुझाव एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले 2006 के राष्ट्रीय किसान आयोग ने दिया था। उन्होंने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की तर्ज पर किसानों का कर्ज माफ करने की भी मांग की।

विरोध बढ़ने पर तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ के सदस्यों से मुलाकात की। इस बैठक के बाद सरकार ने दावा किया कि किसानों ने उनके साथ एक 'समझौते' पर हस्ताक्षर किए हैं और उसमें सुझाए गए उपायों से संतुष्ट हैं।

हालांकि दूसरे किसान संघों ने राज्य भर में आंदोलन जारी रखा, और सरकार से कहा कि उनकी कम से कम दो मुख्य मांगे मानी जाएं -- कर्ज माफी और फसलों के लिए लाभकारी मूल्य। लेकिन चौहान सरकार टस से मस नहीं हुई, और विरोध बढ़ता गया।

प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुईं जिसमें किसान और पुलिसकर्मी दोनों घायल हुए, जिसके बाद चौहान ने सार्वजनिक रूप से चेतावनी दी कि किसानों के आंदोलन में घुसपैठ करने वाले "असामाजिक" तत्वों से "कड़ाई" से निपटा जाएगा। उन्होंने यह जरूर कहा कि जो वास्तव में किसान हैं उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा।

लेकिन 6 जून को पुलिस ने छह किसानों की गोली मारकर हत्या कर दी और छह अन्य को घायल कर दिया।

सरकार ने इस घटना को स्थानीय "प्रशासनिक विफलता" का परिणाम बताया और "स्थनीय लोगों का विश्वास जीतने के लिए" जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक का तबादला कर दिया।

जुलाई 2017 में सांसद रंजीब बिस्वाल और रीताब्रता बनर्जी ने कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय से सवाल किया कि क्या उसने हत्याओं और किसानों को दी गई राहत पर राज्य से रिपोर्ट मांगी थी और क्या हत्याओं में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी।

सरकारी आश्वासनों पर समिति ने कृषि मंत्रालय द्वारा आश्वासन हटाने के अनुरोध को खारिज कर दिया। स्रोत: सरकारी आश्वासनों पर समिति की 75वीं रिपोर्ट

जवाब में तत्कालीन मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, ''किसान आंदोलन पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी गई है"।

इस बयान को संसद को दिया गया एक आश्वासन माना गया। अब केंद्र सरकार के लिए आवश्यक था कि वह मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार से रिपोर्ट हासिल करे और उसका विवरण सदन को दे। समय बीतने के साथ जैसे जैसे लोगों का गुस्सा कम हुआ और हत्याओं से जुड़ी खबरें मीडिया से गायब हो गईं, सरकार ने संसद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को नजरअंदाज कर दिया।

लगभग चार साल बाद जब आश्वासन समिति ने सरकार को रिपोर्ट सौंपने के वादे की याद दिलाई, तो सरकार ने इस आश्वासन को समीक्षा से हटाने के लिए कहा, जिसका मतलब था कि दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है या संकटग्रस्त किसानों की मदद के लिए क्या कदम उठाए हैं, इसपर किसी जानकारी की सरकार से उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।

लेकिन समिति ने सरकार की बात नहीं मानी। फरवरी 2021 में समिति ने मंत्रालय को राज्य सरकार से आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के लिए कहा। एक साल से अधिक समय बीत गया, लेकिन केंद्र सरकार ने राज्यसभा की आश्वासन समिति की बात नहीं सुनी।

पांच साल तक टाल-मटोल करने के बाद, सरकार ने 2022 में समिति को कार्यान्वयन रिपोर्ट सौंपी, लेकिन उसमें वही कहा जो पूरा देश 2017 में ही भली-भांति जान चुका था।

रिपोर्ट में कहा गया, "उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जून, 2017 में मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान छह वयस्क पुरुष मारे गए और छह वयस्क पुरुष घायल हो गए।"

इसमें यह भी कहा गया कि “समिति तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पूरी करेगी और मध्य प्रदेश सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी।"

केंद्रीय मंत्रालय ने सरकारी आश्वासनों पर समिति को वह डेटा दिया जो पहले से ही सार्वजनिक रूप से ज्ञात था। मंत्रालय ने इसकी मदद से सिद्ध करना चाहा कि उसने  अपना आश्वासन पूरा कर दिया है। स्रोत: सरकारी आश्वासनों पर समिति की 76वीं रिपोर्ट

यह स्पष्ट नहीं है कि केंद्र सरकार किस समिति का जिक्र कर रही थी। पूरी संभावना है कि यहां पुलिस फायरिंग की जांच के लिए 2017 में सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जेके जैन की अध्यक्षता में राज्य द्वारा गठित समिति का जिक्र किया जा रहा था। सरकार ने रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है। लेकिन मीडिया में कथित रूप से लीक हुई जानकारी से पता चलता है कि समिति ने पुलिस को दोषों से बरी कर दिया है।

केंद्र सरकार ने खानापूर्ति के लिए जो घिसा-पिटा जवाब दिया, वह समिति को यह बताने का एक तरीका था कि उसे किसानों की हत्याओं पर अब और परेशान न किया जाए।

लेकिन राज्यसभा की आश्वासन समिति नहीं झुकी। उसने केंद्र सरकार की आलोचना की।

समिति ने कहा कि "उसका का मानना ​​है कि शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस द्वारा गोलीबारी जैसी अत्यधिक दंडात्मक कार्रवाई करना बिल्कुल भी उचित नहीं है और दोषी अधिकारियों से जवाब मांगा जाना चाहिए और इस तरह के अपराध के लिए उनपर मुकदमा चलाया जाना चाहिए"।

आश्वासन समिति ने किसानों की हत्याओं के संबंध में दिए गए आश्वासन से पीछे हटने के केंद्र सरकार के प्रयासों की आलोचना की। स्रोत: सरकारी आश्वासनों पर समिति की 76वीं रिपोर्ट

किसानों की हत्या के सात साल बाद, नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर वापस आ गए हैं। शिवराज चौहान अब उनके कृषि मंत्री हैं

सात साल पुराना आश्वासन कि सरकार हमें किसानों की हत्या और उनकी समस्याओं को कम करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताएगी, अभी भी लंबित है।

यह वादे भी नहीं हुए पूरे
 बिना अध्ययन के नीति निर्माण

2020-21 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक योजना शुरू की, जिसमें रासायनिक उर्वरकों या कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता और जो स्थानीय स्तर पर प्राप्त जैव इनपुट पर टिकी है। मोदी सरकार में योजनाओं की रीपैकेजिंग का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए, इस योजना के भी कई नाम रखे गए: जीरो बजट प्राकृतिक खेती, भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति और बाद में नेशनल मिशन ऑन नेचुरल फार्मिंग।

2022 में तत्कालीन सांसद नागा नागेश्वर राव ने सरकार से पूछा कि क्या उसने जीरो बजट प्राकृतिक खेती की सफलता का आकलन करने के लिए कोई अध्ययन किया है, क्योंकि इस पद्धति के भी कई आलोचक रहे हैं।

मंत्रालय ने संसद को आश्वासन दिया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद प्राकृतिक खेती का मूल्यांकन कर रहा है और अध्ययन जारी है।

साल भर से अधिक बीतने के बाद, अगस्त 2023 में सरकार ने समिति से आश्वासन को छोड़ देने की सिफारिश की। सरकार ने कहा कि अध्ययन करने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं। 19 दिसंबर, 2023 को आश्वासन आधिकारिक तौर पर हटा दिया गया, जबकि योजना चलती रही।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इस आधार पर आश्वासन छोड़ने की अपील की कि विश्लेषण के लिए पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं है। स्रोत: सरकारी आश्वासनों पर समिति की 93वीं रिपोर्ट
बीज पर एक विधेयक जो अंकुरित नहीं हुआ

2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज मुहैया कराने के लिए एक बीज विधेयक पेश किया। अन्य प्रावधानों के अलावा, विधेयक में बीज खराब होने की स्थिति में किसानों को मुआवजा देने का भी प्रावधान था। विधेयक 2011 में एक संसदीय स्थायी समिति ने उठाया था लेकिन यह कभी पारित नहीं हुआ।

संसदीय आश्वासन सरकारों के साथ ख़त्म नहीं होते। हालांकि भाजपा ने 2014 में यूपीए सरकार की जगह ले ली, लेकिन बीज विधेयक पर एक दशक पहले दिए गए आश्वासन को लेकर समीक्षा जारी रही।

2017 में जब सरकार से विधेयक की स्थिति के बारे में संसद में सवाल किया गया, तो उसने आश्वासन दिया कि विधेयक अभी भी विचाराधीन है।

चार साल और बीत गए। सत्रह सालों तक 'विचाराधीन' रहने के बाद मंत्रालय ने बिल को ख़त्म किए बिना उससे अपना पल्ला झाड़ लिया। उसने आश्वासन समिति को बताया कि विधेयक अभी भी राज्यसभा में लंबित है और इसलिए यह मंत्रालय के नियंत्रण से बाहर है।

आश्वासन समिति ने विधेयक लाने के सरकारी आश्वासन को रद्द कर दिया। यह आश्वासन किसानों को निराश करनेवाले खराब बीज जैसा ही साबित हुआ।

कृषि मंत्रालय ने समिति से यह कहते हुए आश्वासन रद्द करने का अनुरोध किया कि विधेयक अभी भी राज्यसभा में लंबित है।  स्रोत: सरकारी आश्वासनों पर समिति की 46वीं रिपोर्ट

आश्वासनों का डाटाबेस

जीरो बजट प्राकृतिक खेती

◍ ड्रॉप किया गया

कृषि अनुसंधान में सफल नतीजे पाने में 3-5 साल लगते हैं और फील्ड में परिक्षण 2020 के खरीफ सीजन के दौरान शुरू किए गए थे और विश्लेषण के लिए केवल 2 वर्षों का डेटा उपलब्ध है।

आश्वासन कब दिया गया:15.03.22

समिति ने इसे कब हटाया:09.02.23

सदन :लोकसभा

कुल लंबित अवधि: 11 महीने

जीएम प्रौद्योगिकी अनुबंध दिशानिर्देशों के लिए लाइसेंसिंग और प्रारूप

◍ ड्रॉप किया गया

विभाग को किसानों, बीज एसोसिएशन, कॉर्पोरेट घरानों आदि विभिन्न हितधारकों की टिप्पणियां मिलीं और अधिकांश बीज एसोसिएशन, कॉर्पोरेट घराने और डीपीआईटी दिशानिर्देशों के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना ​​है कि इससे कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान और नई तकनीकों की खोज प्रभावित होगी, जो एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है। यह दिशानिर्देश लंबे समय में किसानों के हित में नहीं होंगे और व्यापार करने में आसानी को भी प्रभावित करेंगे। इसे भी पहले ही रद्द किया जा चुका है।

आश्वासन कब दिया गया : 19.07.16

समिति ने कब हटाया :23.03.22

सदन :लोकसभा

कुल लंबित अवधि: 68 महीने

नारियल विकास बोर्ड में भ्रष्टाचार

◍ ड्रॉप किया गया

आश्वासन को पूरा करने के लिए समय मांगा गया क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन था। हालांकि, यह महसूस किया गया है कि चूंकि अदालती मामलों में फैसले आमतौर पर लंबे समय बाद होते हैं और भारत सरकार के नियंत्रण से परे होते हैं, इसलिए आश्वासन को पूरा करने में लंबा समय लग सकता है।

आश्वासन कब दिया गया:09.07.19

समिति ने इसे कब हटाया:03.08.21

Houseसदन: : लोकसभा

कुल लंबित अवधि : 25 महीने

Illustrations by : Saloni Thakur

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Project Lead
Shreegireesh Jalihal

Reporter

Authors & Researchers
Saras Jaiswal

Intern

Swapnil Ghose

Intern

Editors
Anoop George Philip

Editor

Nitin Sethi

Founder

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